राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद प्रदेश भाजपा में बड़े बदलाव के संकेत
नड्डा और अनुराग दोनों के प्रभावित होने की संभावना
पार्टी की हार से जयराम के सारे प्रतिद्वन्दी हुए प्रभावहीन
शिमला/शैल। हिमाचल में भाजपा और जयराम सरकार के हार के कारणों पर अभी तक पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक विश्लेषण सामने नही आया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार जो अब मार्गदर्शक मण्डल के सदस्य हैं उन्होंने एक ब्यान में अवश्य कहा है कि भाजपा को भाजपा ने ही हराया है। पूर्व मुख्यमन्त्री और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर भी भीतरघात की बात कर चुके हैं। पूर्व मन्त्री और पूर्व अध्यक्ष रहे चुके सुरेश भारद्वाज भी पार्टी के चुनाव प्रबन्धन तथा अन्तिम क्षणों में चुनाव क्षेत्रों को बदलने जैसे फैसलों पर सवाल उठा चुके हैं। पार्टी की परिवारवाद की अवधारणा पर भी सवाल उठाते हुये हार के कारणों के विश्लेषण की आवश्यकता पर जोर दे चुके हैं। लेकिन इस सबके बावजूद अभी तक औपचारिक रूप से कुछ भी सामने नहीं आ रहा है। इस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल के बिलासपुर से ताल्लुक रखते हैं। इसी हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मन्त्री अनुराग ठाकुर ताल्लुक रखते हैं। इस संसदीय क्षेत्र में ही सत्रह में से केवल पांच पर भाजपा को जीत हासिल हुयी है। मण्डी संसदीय क्षेत्र को छोड़कर शेष पूरे प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन शर्मनाक रहा है। अब नड्डा का राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा होने से पहले पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होने जा रही है। माना जा रहा है कि इस बैठक के बाद प्रदेश संगठन में भारी बदलाव देखने को मिलेगा बल्कि नड्डा और अनुराग ठाकुर पर भी इसका असर पड़ने की संभावना है। हिमाचल की हार के कारण नड्डा को अभी दूसरा कार्यकाल मिलना कठिन माना जा रहा है।
लेकिन दूसरी और प्रदेश में हार के बाद नेता प्रतिपक्ष के लिये जयराम ठाकुर की जगह सतपाल सत्ती और विपिन परमार के नाम चर्चा में आ गये थे। परन्तु जयराम ठाकुर ने विधायकों की शपथ से पहले ही अपने को नेता प्रतिपक्ष चुने जाने की सफल व्यूह रचना कर डाली। बल्कि नेता प्रतिपक्ष की मान्यता तक हासिल कर ली। यही नहीं अपने विश्वस्त रहे अधिकारियों की ताजपोशी भी कांग्रेस सरकार में करवा ली। मन्त्रीमण्डल बनने से पहले ही सरकार के फैसलों पर प्रदेश भर में धरने प्रदर्शनों का विषय बना दिया। मामले को उच्च न्यायालय तक पहुंचा दिया। इस समय विपक्ष सरकार पर लगातार प्रभावी भूमिका में चल रहा है। मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति को भी उच्च न्यायालय में ले जाने की तैयारी हो रही है। कांग्रेस को बतौर विपक्ष जयराम की सरकार पर प्रभावी होने के लिए लम्बा समय लगा था। लेकिन जयराम को पहले ही दिन मुद्दे मिल गये हैं। अब इन मुद्दों को लगातार जिन्दा रखना कठिन नहीं होगा।
दूसरी और पार्टी की हार के लिये जयराम से ज्यादा जगत प्रकाश नड्डा और अनुराग पर आरोप लगने लग गये हैं। क्योंकि हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा हार मिली है। नादौन में अमित शाह की चुनावी जनसभा के बावजूद हार के लिये मण्डल इकाई ने एक पत्र लिखकर सारी जिम्मेदारी यहां से ताल्लुक रखने वाले राज्यसभा सांसद हमीरपुर के नाम लगा दी है और सिकन्दर को अनुराग का करीबी करार दे दिया है।
सुरेश भारद्वाज जैसे नेताओं के अन्तिम क्षणों में चुनाव क्षेत्र बदलने के फैसले राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा के नाम लगा दिये गये हैं। जब सरकार में नेतृत्व परिवर्तन या मन्त्रीयों की छंटनी करने और उनके विभाग बदलने की चर्चाएं उठती थी तो उन्हें नड्डा के नाम पर शान्त करवा दिया जाता था। अन्त में चुनाव क्षेत्र बदलने के शिकार हुये नड्डा के करीबी राकेश पठानिया। स्वयं को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार मानने वाले सुरेश भारद्वाज। पूरे कार्यकाल में हर मुद्दे पर जयराम को गुमराह करने का आरोप झेलते रहे सबसे ताकतवर नेता महेन्द्र सिंह का टिकट काटकर उन्ही के बेटे को टिकट देकर वहां का राजनीतिक गणित बदल गया। क्योंकि शुरू में ही भाई-बहन का राजनीतिक टकराव शान्त करने में ही महेन्द्र सिंह की सारी ताकत लग गयी। इस तरह अनायास ही पार्टी के भीतर बैठे जयराम के सारे प्रतिद्वन्दी अपने-अपने चक्रव्यूह में ही उलझ कर रह गये। जयराम इस शतरंज में कैसे नेता प्रतिपक्ष का पद झटक गये इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं गया और बतौर नेता प्रतिपक्ष वह सरकार को कैसे घेरते हैं और लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन कैसा रहता है यह देखना दिलचस्प होगा।