पुरानी भर्तियों में भी धांधली होने की आशंका के चलते अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का कामकाज निलंबित
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Created on Wednesday, 28 December 2022 09:39
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Written by Shail Samachar
पिछला कुछ समय कैसे परिभाषित होगा?
क्या एसआईटी के गठन से यह दो अलग-अलग मामले नहीं बन जाते
क्या पिछले कुछ समय की जांच रिपोर्टें पन्द्रह दिन में संभव हो पायेगी?
शिमला/शैल। हमीरपुर स्थित अधीनस्थ कर्मचारी सेवा चयन आयोग द्वारा 25 दिसंबर को आयोजित की जाने वाली जेओऐ-आईटी परीक्षा का पेपर लीक होने का मामला सामने आने के बाद इस आयोग के कामकाज को ही अगले आदेशों तक सुक्खू सरकार ने निलंबित कर दिया है। पेपर लीक मामले में आयी शिकायत पर विजिलैन्स ने कारवाई करते हुए मामले के दोषियों को गिरफ्तार कर लिया है। इस गिरफ्तारी में आयोग की एक महिला अधीक्षक को भी गिरफ्तार किया गया है। उसके आवास से इस पेपर लीक के कुछ साक्ष्य मिलने के साथ ही आयोग द्वारा निकट भविष्य में आयोजित की जाने वाली दो अन्य परीक्षाओं के भी पेपर मिलने से पूरे आयोग के कामकाज को ही निलंबित करने की स्थितियां पैदा हुई है। क्योंकि यह एक सामान्य समझ की बात है कि इस तरह के पेपर लीक मामले को अन्जाम देने की औकात अकेले एक अधीक्षक और उनके बेटे की ही नहीं हो सकती। इसमें निश्चित तौर पर कुछ और प्रभावी लोगों की भूमिका होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसके तथ्य जांच से ही सामने आयेंगे और इसके लिये एक गयारह सदस्यों की जांच टीम गठित कर दी गयी है। अभी पुलिस भर्ती पेपर लीक मामले की जांच चल ही रही है और ऐसे में इस आयोग में भी ऐसा मामला घट जाना इस ओर निश्चित संकेत देता है कि प्रदेश में इस तरह का कोई गिरोह एक सुनियोजित ढंग से ऑपरेट कर रहा है। यह भी एक स्थापित सत्य है कि इस तरह का अपराध एक निश्चित संरक्षण के बिना ज्यादा देर तक नहीं चल सकता। इस तरह के अपराध और अपराधियों का पर्दाफाश करना एक बड़ी चुनौती है। इसलिए जहां सरकार के इस कदम की सराहना हो रही है वहीं पर इसमें अपनायी गयी प्रक्रिया को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
पेपर लीक होने की शिकायत जैसे ही विजिलैन्स के पास आयी उसने तुरन्त कारवाई करते हुए आरोपियों को पकड़ लिया। पेपर लीक का मामला था और नई सरकार में घट रहा था इसलिए इस पर चर्चा होना और खबरें बनना स्वभाविक था। ऐसे मामलों की जानकारी तुरन्त मुख्यमंत्री को दी जाती है और होने वाली परीक्षा स्थगित कर दी जाती है। इस प्रकरण में यह सब हुआ जांच एजैन्सियां अपने काम में लग गयी। जांच में एजैन्सी मामले के हर पक्ष तक जायेगी और जांच के दौरान उसे सारे निर्देश भी समय-समय पर दिये जाते रहेंगे। यह हर जांच की एक सामान्य प्रक्रिया रहती है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या इसके लिये पूरे आयोग का कामकाज निलंबित किया जाना आवश्यक था। क्योंकि आयोग में भर्तियों की प्रक्रिया चलती ही रहती है। इसी के लिये इसका गठन किया गया है। आयोग का यह निलंबन कितने समय तक रहेगा इसका निश्चित जवाब किसी के पास नहीं है। क्योंकि निलंबन के आदेश में यह कहा गया है कि यहां पर पिछले कुछ समय से धांधलीयां होने की आशंका है। यह पिछला कुछ समय परिभाषित नहीं है। यह सुविधा अनुसार कम ज्यादा किया जा सकता है और यह कम ज्यादा करना ही आने वाले समय में राजनीतिक चर्चाओं को जन्म देगा।
आयोग के कामकाज को निलंबित किये बिना भी अधिकारियों कर्मचारियों को इधर-उधर किया जा सकता था। उनके खिलाफ कारवाई करने के सारे विकल्प सरकार के पास उपलब्ध थे। नये अधिकारी लगाकर कामकाज चलाया जा सकता था। अब पिछला कुछ समय कहकर जांच का दायरा कुछ भी बढ़ाया जा सकता है। क्योंकि अब यह दो मामले बन गये हैं। एक मामला आई ओ तो वर्तमान पेपर लीक की जांच करेगा। जबकि एसआईटी पिछले कुछ समय के मामलों की जांच करेगी। क्या यह जांच पन्द्रह दिन में संभव हो पायेगी। ऐसा माना जा रहा है कि इस मामले को उलझाने और आगे चलकर राजनीतिक रंग देने की अधिकारियों ने पूरी बिसात बिछा दी है।
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