Friday, 19 September 2025
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सीमेन्ट उत्पादन में घाटा होना चुनाव परिणामों के बाद ही क्यों सामने आया?

हेल्सिम से 82000 करोड़ में खरीद के समय सरकार को कोई टैक्स क्यों नहीं मिला?
प्रशासन इस खरीद पर खामोश क्यों रहा?
प्रतिस्पर्धा आयोग द्वारा 2016 में लगाये गये जुर्माने की भरपाई कौन करेगा?
क्या यह तालाबन्दी सरकार को अस्थिर करने का पहला प्रयोग है?
 
शिमला/शैल। क्या अदानी समूह द्वारा अंबुजा और एसीसी सीमेन्ट कारखानों को अचानक बन्द कर देना कोई साजिश है? यह सवाल इसलिये खड़ा हो रहा है कि प्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम 8 दिसम्बर को आये जिसमें भाजपा हार गयी और सता कांग्रेस को मिल गयी। इन परिणामों के बाद अदानी समूह नेे सरकार के गठन से पहले ही सीमेन्ट के रेट बढ़ा दिये। यह रेट बढ़ाये जाने पर सरकार और जनता में रोष होना स्वभाविक था क्योंकि जनता को सरकार बदलने का ईनाम इस महंगाई के रूप में मिला। जब सरकार ने यह रेट बढ़ाये जाने का कारण पूछा तो अचानक घाटा होने का कवर लेकर इस इन सीमेन्ट कारखानों को बिना किसी पूर्व सूचना के बन्द कर दिया गया। कारखाने अचानक बन्द कर दिये जाने से हजारों लोग एकदम प्रभावित हुये हैं क्योंकि जो लोग यहां पर नौकरी कर रहे थे उनकी नौकरी पर अचानक प्रश्न चिन्ह लग गया है। सीमेन्ट के उत्पादन से लेकर इसकी ढुलाई तक के काम में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हजारों लोग प्रभावित हो गये हैं। एक तरह से अराजकता का माहौल पैदा हो गया है। उत्पादन बन्द कर दिये जाने से सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में चल रहे निर्माण कार्य प्रभावित हुये हैं। सीमेन्ट की ढुलाई में लगे ट्रकों के पहिये एकदम रुक गये हैं। ट्रक यूनियनों और कंपनी प्रबन्धन में हो रही वार्ताएं हर रोज विफल हो रही है। प्रशासन एक तरह से लाचारगी का शिकार हो गया है। कंपनी प्रबन्धन सीमेन्ट उत्पादन में घाटा होने का कवर लेकर ट्रकों से भाड़ा कम करने की मांग कर रहा है तो ट्रक ऑपरेटर तेल की कीमतें बढ़ने और उसी के कारण रखरखाव के दाम बढ़ने का तर्क देकर भाड़ा कम करने में असमर्थता व्यक्त कर रहे हैं। सुक्खू सरकार जनता से रोजगार बढ़ाने के दावा करके आयी है। इस तालाबन्दी से लगे हुये रोजगार पर ही संकट खड़ा हो गया है।
यहां पर यह समझने और ध्यान देने का प्रशन है कि अदानी समूह ने इसी वर्ष अंबुजा और ए सी सी सीमेन्ट स्विट्जरलैण्ड की कंपनी होल्सिम से 82000 करोड़ में खरीदी है। इस सौदे के बाद होल्सिम के सी.ई.ओ. जॉन जेनिश (Jan Jenisch) ने अपने निवेशकों को संबोधित करते हुए कहा है कि यह लेनदेन टैक्स फ्री है और इस सौदे से उन्हें 6.4 अरब स्विस फ्रैंक की शुद्ध आय हुई है। होल्सिम अंबुजा और ए सी सी में किसी भी नुकसान या कर के लिये जिम्मेदार नहीं होगा। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या इस सौदे में देय करों के लिये अदानी समूह जिम्मेदार होगा। अदानी की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। बल्कि राज्य सरकार भी इस पर आज तक खामोश है। प्रधानमंत्री और अदानी के रिश्ते जगजाहिर है? क्या इन रिश्तों के चलते जयराम सरकार और प्रशासन चुप रहा है। क्योंकि अंबुजा को जमीन तो सरकार ने दी है। क्या जमीन देने के साथ ही सरकार के सारे अधिकार समाप्त हो गये हैं? क्योंकि इस 82,000 करोड़ के सौदे में सरकार को टैक्स के रूप में एक पैसा तक नहीं मिला है। यही नहीं 2016 में प्रतिस्पर्धा आयोग ने अंबुजा को 1164 करोड़ और ए सी सी को 1148 करोड़ का जुर्माना लगाया था। इस जुर्माने को अपीलीय कोर्ट में चुनौती दी गयी थी और वहां से हारने के बाद अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। स्वभाविक है कि यह जुर्माना लगने के कारण इन कंपनियों द्वारा कुछ अनियमितताएं करना रहा होगा। लेकिन इस पर राज्य सरकार का चुप रहना कई सवाल खड़े करता है क्योंकि कंपनियां ऑपरेट तो हिमाचल में ही कर रही थी।
इस परिदृश्य में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब अदानी ने 82000 करोड़ में यह खरीद की तो क्या उस समय सीमेन्ट उत्पादन से लाभ-हानि होने का उसे कोई ज्ञान नहीं हुआ होगा। अचानक चुनाव परिणाम आने के बाद ही घाटा क्यों सामने आया? अदानी समूह का आचरण सेब खरीद में भी सवालों में रहता आया है। अदानी के प्रदेश में तीन सी ए स्टोर हैं। सरकार की शर्तों के मुताबिक इन स्टोरों में 20% जगह स्थानीय बागवानों के लिये सुरक्षित रखने का नियम है। लेकिन इस नियम की अनुपालन नहीं हो रही है। इस पर भी सरकार खामोश रही है। सौर ऊर्जा में भी अदानी का एकछत्र साम्राज्य है। ऐसे में यदि अदानी जैसा समूह आज सीमेन्ट में सरकार के लिये इस तरह की परिस्थितियां पैदा कर सकता है तो आने वाले समय में अन्य क्षेत्रों में भी यह सब कुछ घट सकता है। जब अदानी ने इन सीमेन्ट उद्योगों की खरीद की और इसमें प्रदेश को कर के रूप में कुछ नहीं मिला तब प्रशासन इस पर खामोश क्यों रहा? आज भी प्रशासन अदानी के घाटे के तर्क पर खामोश क्यों है? क्योंकि जमीन का अधिग्रहण तो सरकार ने स्थापना के समय छः हजार रूपये प्रति बीघा किया है और यह कीमतें पर तो आगे कभी बढ़ी नहीं है और यही इस उद्योग का कच्चा माल है। स्थापना के समय सौंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक तो शायद उस समय एक बैग की कीमत 35 रूपये रही है। इसलिए आज घाटे का तर्क किसी भी आधार पर मान्य नहीं बनता है। ऐसी आशंकाएं बल पकड़ रही है कि यह तालाबन्दी सरकार को अस्थिर करने का पहला प्रयोग है।

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