शीर्ष प्रशासन की निष्ठाओं और ईमानदारी पर उठेंगे सवाल
शिमला/शैल। कांग्रेस ने चुनावों में वायदा किया था कि वह जयराम द्वारा पिछले छः माह में लिये गये फैसलों की समीक्षा करेगी। सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने विधायकों की एक कमेटी बनाकर इन फैसलों की समीक्षा करवाई। इस समीक्षा में विभागों से ऐसे फैसलों की सूची लेकर प्रशासनिक सचिवों और वित्त विभाग से जानकारी ली गयी जो फैसले प्रशासनिक अनुमति और बजट प्रावधानों के बिना लिये गये थे। उन्हें अन्ततः रद्द करने का फैसला लिया गया। इस सैद्धान्ति फैसले के बाद बिना प्रावधानों के खोले गये कार्यालयों/संस्थानों को बन्द करने के आदेश जारी किये गये हैं। इनमें बिजली बोर्ड और लोक निर्माण तथा शिक्षा विभाग प्रभावित हुए हैं। सुक्खू सरकार के इन फैसलों को बदले की भावना से की गई कारवाई करार देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इन फैसलों को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती देने की घोषणा की है। जयराम ठाकुर ने यह भी कहा है कि इन फैसलों के लिये सभी वांछित अनुमति ली गयी है।
जयराम ठाकुर के इस ब्यान से स्थिति रोचक हो गयी है क्योंकि सुक्खू सरकार को वित्त विभाग ने यह जानकारी दी है कि इन फैसलों की अनुपालना करने के लिये बजट ही नहीं है। जयराम ठाकुर इसमें सारी औपचारिकताएं पूरी होने का दावा कर रहे हैं और इसी आधार पर इन फैसलों को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती देकर बदले की भावना से की जा रही कारवाई करार देना चाहते हैं। यह अपने में ही रोचक स्थिति हो जाती है कि जो वित्त विभाग इन फैसलों को बिना बजट के लिये गये करार दे रहा है उसी के सामने जयराम सरकार ने यह फैसले लिये हैं। ऐसे में किसका दावा कितना सही है इसका सच तो अदालत में ही सामने आयेगा। इसी के साथ यह भी स्पष्ट हो जायेगा कि प्रशासन राजनेताओं को कितनी सही जानकारी और राय देता है। क्योंकि जयराम शासन में बहुत सारे अधिकारियों को शीर्ष पदों पर बैठाने के लिये बहुत सारे नियमों/कानूनों को ताक पर रखा गया था। आज यदि उन अधिकारियों द्वारा दी गयी राय और जानकारी सही नहीं निकलती है तो इसके प्रभाव दूरगामी होंगे यह तय है।