Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

मुख्यमंत्री का चेहरा कौन इस सवाल से कांग्रेस की एकजुटता पर होगा प्रहार

शिमला/शैल। हिमाचल कांग्रेस ने वर्तमान विधायकों अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले पदाधिकारियों और पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष को टिकट देने की घोषणा करके भाजपा तथा आप पर जो पहल हासिल कर ली थी उससे जनता में यह सन्देश गया था कि पार्टी पूरी इमानदारी से एकजुट होकर वर्तमान सरकार से पीछा छुड़ाने के लिए कार्यरत है। लेकिन एकजुटता का यह सन्देश उस समय ध्वस्त हो गया था जब पार्टी की वरिष्ठ नेता पूर्व सांसद विपल्व ठाकुर का यह ब्यान आ गया कि अभी किसी का भी टिकट फाइनल नहीं हुआ है और इस ब्यान का कोई खण्डन भी नहीं आया। इससे पहले आनन्द शर्मा चुनाव संचालन कमेटी से त्यागपत्र देकर पार्टी की एकजुटता पर प्रश्नचिन्ह लगा चुके हैं। अब प्रदेश के कई चुनाव क्षेत्रों से एक दूसरे का विरोध होने के समाचार लगातार आने शुरू हो गये हैं। इसमें अब मण्डी से आश्रय शर्मा का भी नाम जुड़ने से स्थिति और जटिल हो गयी है। आश्रय ने भी प्रदेश नेतृत्व पर अनदेखी के आरोप लगाते हुए अपना त्यागपत्र दिल्ली भेज दिया है। यही नहीं शिमला तक में कई टिकटार्थीयों ने यह ऐलान कर दिया है कि यदि उन्हें टिकट न मिला तो वह निर्दलीय होकर चुनाव लड़ेंगे। कुछ ने तो चुनावी पोस्टर तक शहर में चिपका दिये हैं। लेकिन पार्टी नेतृत्व ऐसे लोगों के ऐसे कृत्यों के बारे में खामोश चला हुआ है और यही नेतृत्व की कमजोरी बनती जा रही है। इस समय कांग्रेस का मुकाबला सिर्फ जयराम की सरकार और सुरेश कश्यप के संगठन से ही नहीं बल्कि दिल्ली बैठे नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह की नीतियों और भाषण बाजी से भी होगा यह मानकर चलना होगा। इसके लिये अभी तक कांग्रेस की कोई बड़ी तैयारी सामने नहीं आ रही है। क्योंकि नरेन्द्र मोदी की जुमलेबाजी के प्रभाव से ही 2014 में स्व. वीरभद्र सिंह के मुख्यमंत्री होते हुये भाजपा प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें जीत कर ले गयी थी तथा 2019 में इस जीत के अन्तर को और बढ़ा दिया था। वीरभद्र और सुखराम का सहयोग भी इसमें सेंध नहीं लगा पाया था। यह ठीक है कि उसके बाद इसी भाजपा और जयराम सरकार से कांग्रेस नेे चारों उपचुनाव छीन लिये थे। लेकिन उस जीत में प्रदेश से ज्यादा राष्ट्रीय स्थितियों का बड़ा योगदान था और आज की तरह अपने घर में ऐसे विरोध के स्वर नहीं के बराबर थे। आज बहुत सारा विरोध प्रायोजित भी होगा और इसको पहचानना पार्टी की प्राथमिकता होनी चाहिये। इस समय राष्ट्रीय परिदृश्य जिस तरह के दौर से गुजर रहा है उससे राजनीति के सारे मानक बदल गये हैं। संविधान को बदलने के अपरोक्ष में प्रयास शुरू हो गये हैं। आर्थिकी लगातार कमजोर होती जा रही है और इसके कारण महंगाई तथा बेरोजगारी नियन्त्रण से बाहर जा चुकी है। लेकिन इसे विभिन्न योजनाओं के लाभार्थीयों की हर जगह परेड करवाकर जन चर्चा से बाहर रखने का प्रयास किया जा रहा है। यह लाभार्थी खड़ा करने के लिये आम आदमी को किस तरह कर्ज के गर्त में धकेल दिया गया है इसे चर्चा में नहीं आने दिया जा रहा है। इस समय इन योजनाओं का असली चेहरा और कर्ज की वास्तविकता आम आदमी के सामने रखने की आवश्यकता है लेकिन इस दिशा में कांग्रेस के प्रयास नहीं के बराबर हैं। इसी कारण से आज भी कुछ लोग प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व को कोस कर कांग्रेस छोड़ने के बहाने तलाश रहे हैं। ऐसे लोगों को चिन्हित करके उनके प्रति कड़ा रुख अपनाने की आवश्यकता है। इस समय जो लोग टिकट न मिलने की सूरत में बगावती होकर चुनाव लड़ने की घोषणाएं कर रहे हैं उन्हें समय रहते बाहर का रास्ता दिखाने की आवश्यकता है। आज जो लोग मण्डी में वहां की सांसद के दखल का ही विरोध करने पर उतर आये उन्हें संगठन का शुभचिंतक किस गणित से माना जा सकता है। इस समय प्रदेश नेतृत्व को सरकार के प्रति जितना आक्रामक होना चाहिये उसमें अभी बहुत कमी है। संगठन के बड़े चेहरों को सामूहिक एकजुटता का सन्देश देना सबसे बड़ी आवश्यकता है। क्योंकि सता पक्ष इस एकजुटता को मुख्यमंत्री का चेहरा कौन के प्रश्न से उलझाने का प्रयास करेगी।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search