भ्रष्टाचार के हमाम में सब बराबर के नंगे है
शिमला/शैल। कांग्रेस ने जयराम सरकार के खिलाफ आरोप पत्र लाने की घोषणा की है। यह दावा किया है कि आरोप पत्र तैयार है और पूरे दस्तावेजी परमाणों से लैस है। कांग्रेस का यह दावा कितना सही निकलता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इस दावे पर मुख्यमंत्री की अपरोक्ष में यह प्रतिक्रिया आना कि वह पूर्व की कांग्रेस सरकार के खिलाफ आये भाजपा के आरोप पत्र की जांच सीबीआई को सौंपने से परहेज नहीं करेंगे। यह सही है कि अब तक न तो कोई आरोप पत्र कांग्रेस ने जयराम सरकार के खिलाफ सौंपा है और न ही इस सरकार ने अपनी ही पार्टी द्वारा रस्मी औपचारिकता निभाते हुए पूर्व कि कांग्रेस के खिलाफ सौंपे गये आरोप पत्रों पर कोई कारवाई की है। जबकि भाजपा ने तो चुनाव प्रचार की शुरुआत ही हिमाचल मांगे जवाब पोस्टर जारी करके की थी। अब इस संभावित आरोप को लेकर जो प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री की इस तरह से आयी है उससे स्पष्ट हो जाता है कि भ्रष्टाचार को लेकर यह सरकार कतई गंभीर नहीं है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि तुम मेरे बारे में चुप रहो मैं तुम्हारे बारे मुह बन्द रखूंगा। वरना कोई भी मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से इस तरह का ब्यान देने की हिम्मत नहीं कर सकता। वैसे तो भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस और भाजपा सरकारों का चलन एक बराबर रहा है। किसी के भी खिलाफ व्यक्तिगत स्तर पर स्कोर सैटल करने के अतिरिक्त कोई भी सरकार आगे नहीं बढ़ी है। यह भी बराबर रहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों पर दोनों दलों की सरकारों ने एक बराबर कारवाई की है। भ्रष्टाचार के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने की रस्म को जयराम सरकार ने भी पूरी तरह निभाया है। भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस के दावे केवल जनता को भ्रमित करने के लिये होते हैं। स्मरणीय है कि 31 अक्तूबर 1997 को तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जन सहयोग मांगते हुए एक इनाम योजना अधिसूचित की थी। इसमें वायदा किया गया था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आयी हर शिकायत पर एक माह के भीतर प्रारंभिक जांच की जायेगी। यदि इस जांच में शिकायत में लगाये गये आरोप संज्ञेय पाये जाते हैं तब इस पर नियमित जांच की जायेगी और प्रारंभिक जांच के बाद ही 25% इनाम राशि शिकायतकर्ता को दे दी जायेगी। लेकिन सरकारी रिकॉर्ड यह है कि इस योजना के तहत आयी एक भी शिकायत पर एक माह के भीतर प्रारंभिक जांच नहीं हो पायी है।
बल्कि इस अधिसूचित हुई योजना के तहत बनाये जाने वाले नियम आज 25 वर्षों में भी सरकार नहीं बना पायी है। न ही इस योजना को सरकार आज तक वापस ले पायी है। आज भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरैन्स के दावे/वायदे करना केवल जनता को गुमराह करने से अधिक कुछ नहीं रह गये हैं। गौरतलब है कि आज जयराम सरकार भी इस हमाम में बराबर कि नंगी हो गयी है। क्योंकि 31 अक्तूबर 1997 को अधिसूचित हुई इस योजना के तहत 21 नवंबर 1997 को ही कुछ शिकायतें सरकार के पास आ गई थी। पर इन पर किसी भी सरकार में योजना के अनुसार कारवाई न होने पर यह मामला 2000 में प्रदेश उच्च न्यायालय में भी पहुंच गया। उच्च न्यायालय ने भी तुरंत जांच पूरी करने के निर्देश दिये। जिन पर आश्वासनों से अधिक कुछ नहीं हुआ। संयोगवश उसके बाद इसी पर शिकायत का मसौदा एसजेवीएनएल के एक प्रकरण में सर्वाेच्च न्यायालय पहुंच गया। सर्वाेच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 18 सितम्बर 2018 को इस पर फैसला देते हुये दोषियों के कृत्य को फ्रॉड करार देते हुये इसमें दिये गये लाभों को 12% ब्याज सहित रिकवर करने के निर्देश दिये। जयराम सरकार ने तत्कालीन सचिव सतर्कता संजय कुंडू को फैसले की कॉपी लगाकर प्रतिवेदन सौंपा गया। जिस पर कारवाई होना तो दूर प्रतिवेदन का जवाब तक नहीं दिया गया है। यह प्रसंग पाठकों के सामने इसलिये रखा जा रहा है कि आज जो कांग्रेस को सीबीआई का डर दिखाकर चुप करवाने का प्रयास किया जा रहा है वह जनता को भ्रमित करने से अभी कुछ नहीं है। क्योंकि कांग्रेस और सरकार दोनों को पता है कि आज जो आरोप पत्र सौंपा जायेगा उसका मकसद चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने से अधिक कुछ नहीं होगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन किसको कितना नंगा कर पाता है।