Friday, 19 September 2025
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क्या राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रैजन्टेशन देने से ही जीत सुनिश्चित हो जायेगी

क्या शांता और धूमल मार्गदर्शक की भूमिका से बाहर आयेंगे
मुख्य सूचना आयुक्त फूड कमिश्नर और लोक सेवा आयोग में होने वाली नियुक्तियां भी महत्वपूर्ण संकेतक होगी

शिमला/शैल। पिछले दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की हैदराबाद में दो दिन बैठक हुई। इस बैठक के बाद यह वक्तव्य आया है कि आने वाले तीस-चालीस वर्ष भाजपा के ही होंगे। स्वभाविक है कि इस बैठक के बाद यह तो बयान आना नहीं था कि देश महंगाई और बेरोजगारी से बहुत ज्यादा परेशान है तथा पार्टी ने सरकार से इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने को कहा है। इसी वर्ष गुजरात और हिमाचल विधानसभा के चुनाव होने हैं। इन चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन भी कर चुकी है। लेकिन हिमाचल में ऐसा नहीं हुआ है। जबकि इस आश्य के समाचार लगातार छपते रहे हैं। हिमाचल में नेतृत्व परिवर्तन की दिशा में कोई भी कदम शायद इसीलिये नहीं उठाया जा सका है क्योंकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा इसी प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। जेपी नड्डा का पूरा समर्थन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के साथ है। यह सब जानते हैं पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और शांता कुमार अब मार्गदर्शक की भूमिका तक ही रह गये हैं यह भी व्यवहारिक रूप से सभी जानते हैं। नड्डा-जयराम के धूमल के साथ कितने मधुर रिश्ते हैं यह भी जगजाहिर है। बल्कि जिस ढंग से निर्दलीय विधायकों होशियार सिंह, प्रकाश राणा को पार्टी में शामिल करवा कर धूमल के निकटस्थों रविन्द्र रवि तथा गुलाब सिंह ठाकुर को साइडलाइन किया गया उससे इन सियासी रिश्तों पर मोहर लग गई है। हिमाचल में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर उठती हुई अटकलों को नड्डा के कारण ही मन्त्रीमण्डल में फेर बदल यहां तक कि मन्त्रियों के विभागों में बदलाव तथा संगठन में भी चर्चाओं के बावजूद कोई बदलाव न हो पाना सब कुछ राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम ही लगता आया है। बल्कि अब तो सत्ता में पुनः वापसी हो पाने या न हो पाने की भी पहली जिम्मेदारी नड्डा के ही नाम लगने वाली है। क्योंकि जयराम सरकार के कामकाज से जनता कितना खुश है इसका फतवा तो चार नगर निगमों और फिर चार उप चुनावों के परिणामों से सामने आ ही चुका है। दीवार पर इस साफ लिखे को भी पढ़ कर नजरअन्दाज कर देने की ताकत नड्डा के अतिरिक्त और किसी में नहीं है। इस परिदृश्य में राज्य सरकार के कामकाज पर हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सामने दी गयी प्रैजैन्टेशन को प्रदेश के नेतृत्व और नड्डा के फैसले पर मोहर लगवाना माना जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इतने खुले समर्थन के बाद भी सरकार सत्ता में वापसी कर पाती है या नहीं। यह सवाल इस परिदृश्य में इसलिये महत्वपूर्ण हो जाता है कि अभी चुनाव के लिए तीन से चार माह का समय शेष है। फिर इसी दौरान सी आई सी, फूड कमिश्न और लोक सेवा आयोग में नियुक्तियां होनी है। यह नियुक्तियां पार्टी के नेताओं में से न होकर दूसरे वर्गों में से होनी है। इन नियुक्तियों में यह देखना काफी रोचक और संकेतक हो जाता है कि कौन लोग नियुक्त हो पाते हैं। कई अधिकारी तो केंद्र में जाने के जुगाड़ भिड़ाने में लग गये हैं। अभी सूचना आयोग में जिस तरह से अन्तिम क्षणों में मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति रुक गयी है उसको लेकर भी कई चर्चाओं का बाजार गर्म है। कुछ हलकों में तो मुख्य सचिव को हटाने की भी अटकलें चल पड़ी हैं। मुख्यमंत्री के प्रधान निजी सचिव द्वारा सूचना आयोग और फूड कमीशन के लिये आवेदक होने पर भी कई विश्लेषकों को हैरत है। क्योंकि प्रधान मुख्य सचिव से अधिक विश्वस्त मुख्यमंत्री का और कोई नहीं होता। फिर लोक सेवा आयोग के लिये भी एक दर्जन के करीब आवेदन आ चुके होने की चर्चा सचिवालय के गलियारों में कहीं भी सुनी जा सकती है। बल्कि प्रदेश के डीजीपी का नाम ही संभावितों में माना जा रहा है। चर्चा है कि यहां पर कई विश्वस्तों के हितों में आपसी टकराव होगा। यह नियुक्तियां भी सरकार के सत्ता में वापसी के कई संकेत सूत्र छोड़ जायेगी यह तय है। फिर आने वाले दिनों में जब मुख्यमंत्री से लेकर नीचे मंत्रियों तक के विभागों की कारगुजारीयां आम जनता के सामने आयेंगी तब पता चलेगा कि महंगाई और बेरोजगारी के दंश झेलती हुई जनता इसी सरकार की वापसी के लिये कितना तैयार हो पाती है।

 

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