Friday, 19 September 2025
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प्रदेश में बढ़ी बेरोजगारी देश के टॉप छः राज्यों में आया नाम

सरकार ने 2019 की उद्योग निवेश नीति में किया संशोधन
शिक्षा के अध्यापकों और पशुपालन में डॉक्टरों के पद खाली
2014 में स्वीकृत सीमेंट प्लांट क्यों नहीं लग पाये

शिमला/शैल। हिमाचल में बेरोजगारी किस कदर बढ़ रही है इसका खुलासा भारत सरकार की सी एम आई ई वी रिपोर्ट में हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश की बेरोजगारी दर 12.1% पहुंच गयी है और हिमाचल बेरोजगारी में देश के टॉप 10 राज्यों हरियाणा, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और त्रिपुरा की सूची में शामिल हो गया है। मार्च 2022 में जारी इस रिपोर्ट पर आप प्रवक्ता गौरव शर्मा ने सरकार पर आरोप लगाया है कि जयराम सरकार में नौकरियां सृजित करने की बजाये करीब 2100 पदों को ही समाप्त कर दिया गया है और कई पदों को डाईंगकॉर्डर में डाल दिया है। यह सवाल उठाया है कि प्रदेश के जिस बिजली बोर्ड में 1990 में 42000 कर्मचारी थे वहां अब केवल 17000 कर्मचारी रह गये हैं। 2018-19 और 20 में जो कर्मचारी भर्ती प्रतिक्रियाएं शुरू की गयी थी वह आज तक किसी न किसी कारण से पूरी नहीं हो पायी हैं। भर्तियों की प्रतिक्रियाएं शुरू करके केवल बेरोजगार युवाओं को भ्रम में रखा जा रहा है।
बेरोजगारी की स्थिति का सच इससे भी सामने आ जाता है कि जयराम सरकार ने अगस्त 2019 में जो नई औद्योगिक नीति लाकर इन्वेस्टर मीट के बड़े-बड़े आयोजन करके प्रदेश में एक लाख करोड़ का निवेश आने और हजारों लोगों को रोजगार मिलने का जो दावा किया था अब उस दावे का खोखलापन अप्रैल 2022 में उस नीति में संशोधन करके सामने आ गया है। सरकार ने इस नीति में संशोधन करते हुए निवेश के मानक पर उद्योगों को तीन श्रेणियों ए बी और सी में बांट दिया है। 200 करोड़ का निवेश और 200 हिमाचलीयों को रोजगार देने वाले उद्योगों को ए, 150 करोड़ निवेश 150 रोजगार बी और 100 करोड का निवेश तथा 100 हिमाचलीयों को रोजगार देने वाले उद्योगों को सी श्रेणी में रखा गया है। इसी के अनुसार उद्योगों को सुविधाएं देने की घोषणा की गयी है। यह उद्योग नीति 16 अगस्त 2019 को अधिसूचित की गयी थी जिसे अब कार्यकाल अंतिम वर्ष में चुनावों से कुछ माह पहले संशोधित करने से स्पष्ट हो जाता है कि इस नीति के इतने बड़े स्तर पर हुये आयोजन और प्रचार-प्रसार के परिणाम उल्लेख लायक भी नहीं रहे हैं। अन्यथा चुनावी संध्या पर तो सरकार की सफलताओं के बयानों के स्थान पर उपलब्धियों के श्वेत पत्र जारी होने चाहिये थे। सरकार की प्राथमिकताएं क्या रही हैं और आवश्यक सेवाओं के प्रति कितनी गंभीरता रही है इसका अंदाजा विधानसभा के बजट सत्र के दौरान 15 मार्च को आशा कुमारी द्वारा पूछे प्रश्न के आये जवाब से पता चल जाता है। प्रश्न था कि सरकार ने 3 वर्षों में जेबीटी अध्यापकों के कितने पद बैच वॉइस और कितने एच पी एस एस वी के माध्यम से भरे हैं तथा कितने खाली हैं। इसके जवाब में बताया गया कि केवल बैच वाइज 762 पद भरे गये हैं। बोर्ड के माध्यम से कोई भर्ती नहीं हुई है और 3301 पद खाली हैं। इससे शिक्षा जैसे अहम विषय पर सरकार की संवेदनशीलता का पता चल जाता है। इसी तरह इंद्र दत्त लखन पाल और पवन काजल ने पूछा था कि 3 वर्षों में पशु चिकित्सकों के कितने पद भरे गये और कितने खाली हैं। इसके जवाब में बताया गया कि 3 वर्षों में केवल 27 पद भरे गये और 107 पद खाली चल रहे हैं। सरकार के सभी विभागों में लगभग यही स्थिति है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बयानों और प्रैस विज्ञप्तियों के माध्यम से जनता को जो कुछ परोसा जाता है उस पर कितना विश्वास किया जाना चाहिये। मार्च 2014 में जो सीमेंट प्लांट एकल खिड़की योजना में स्वीकृत हुये थे उनका अंत क्या हुआ है वह पाठकों के सामने हम पहले ही रख चुके हैं। उसमें एक शिकायत तक भी आ चुकी है। लेकिन इस पर मुख्यमंत्री अभी तक खामोश हैं। मुख्यमंत्री की यह चुप्पी सवालों के घेरे में है।

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