सुरेश भारद्वाज के इस ब्यान से पार्टी में बढ़ी हलचल
जयराम की धूमल और अनुराग से बैठकें चर्चा में
शिमला/शैल। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर संगठन के मण्डल मिलन कार्यक्रमों के तहत जब हमीरपुर और कांगड़ा के दौरे पर आये तो पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के साथ हुई उनकी बैठक को लेकर प्रदेश के राजनीतिक हलकों में एक बार फिर चर्चाओं का दौर चल पड़ा है। इस दौर से पहले वह दिल्ली भी गये थे कुछ केंद्रीय नेताओं से मिलने। दिल्ली के दौरे में भी पहले अनुराग ठाकुर को मिले और फिर उनको साथ लेकर अन्य नेताओं से मिले। धूमल और अनुराग से जयराम का यह मिलना इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि पिछले दिनों हुए उपचुनाव में चारों सीटें हारने का ठीकरा जयराम से जुड़े एक वर्ग ने सीधे धूमल के सिर फोड़ा था। उपचुनाव की हार के बाद यह लगातार प्रचारित किया गया कि सरकार और संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव हो रहा है। चार-पांच मंत्रियों को बदले जाने की चर्चाएं चली। लेकिन आज तक यह चर्चाएं अमली शक्ल नहीं ले पायी। इसी बीच स्वास्थ्य मंत्री ने एक पत्रकार वार्ता बुलाई। हॉलीडे होम में रखी यह वार्ता सफल नहीं हो पायी। क्योंकि पहले पत्रकार नहीं पहुंचे और जब कुछ पत्रकार पहुंचे तब आयोजकों में से कोई नहीं था। इसके बाद शहरी विकास मंत्री ने वार्ता आयोजित कि उन्होंने अपने संबोधन में यह कहा कि 2017 में जो सरकार जयराम ठाकुर के नेतृत्व में बनी थी वह पुराने नेतृत्व नीयत और नेता सभी को खत्म करके बनी थी।
सुरेश भारद्वाज के इस ब्यान को राजनितिक हलकों में इस तरह देखा जा रहा है कि क्या उस समय घूमल की हार प्रायोजित थी। भारद्वाज के इस ब्यान से पूरी पार्टी शिमला से लेकर दिल्ली तक हिल गयी है। स्मरणीय है कि 2017 में भाजपा ने प्रेम कुमार धूमल को नेता घोषित करके प्रदेश का चुनाव लड़ा था और सत्ता में पहुंची थी। यह सही है कि उस समय धूमल अपना चुनाव हार गये थे। उनके विश्वस्त माने जाने वाले कुछ अन्य भी चुनाव हार गये। लेकिन यह भी सच है कि यदि उस समय धूमल को नेता न घोषित किया जाता तो भाजपा सत्ता में ना आती। उस समय धूमल के हारने के बाद भी विधायकों का बहुमत उनको मुख्यमंत्री बनाना चाहता था और दो तीन लोगों ने उनके लिये सीट खाली करने की पेशकश भी कर दी थी। लेकिन धूमल ने जनता के निर्णय को स्वीकार करते हुये अपने को नेता की दौड़ से किनारे कर लिया। लेकिन उसके बाद जंजैहली प्रकरण को लेकर जो कुछ घटा वह भी सबके सामने है। लेकिन इस बीच एक बार भी यह सामने नहीं आया कि धूमल की ओर से सरकार को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष में असहज करने के लिए कुछ किया गया। जयराम ठाकुर के नेतृत्व को कहीं से कोई चुनौती वाली स्थिति नहीं आयी। लेकिन मुख्यमंत्री के अपने ही गिर्द कुछ ऐसे लोगों का जमावड़ा हो गया जो शायद सत्ता के बहुत ज्यादा पात्र नहीं थे। यह लोग सत्ता से जुड़े लाभों को ऐसे बटोरने लगे कि आपस में ही इनके हितों में टकराव आना शुरू हो गया। यही टकराव पत्र बम्बों के रूप में उठना शुरू हुआ। इसका नजला हर किसी पर गिराना शुरू हो कर दिया। इन पत्र बम्बों को लेकर पुलिस तक मामले बनाये गये। कुछ लोगों पर निशाना साधना जारी रहा। लेकिन यह लोग इतने मदान्ध हो गये कि यह भी भूल गये कि वह अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। कुछ मामले तो ऐसे खड़े कर लिये गये जिनकी जांच से शायद मुख्यमंत्री भी नहीं बच पायेंगे।
इस तरह इन लोगों ने एक ऐसा वातावरण खड़ा कर दिया कि यह लोग निरंकुश हो गये। यह इसी निरंकुशता का परिणाम है कि उपचुनावों में चारों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। अब जिस तर्ज में शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज ने 2017 में पुराने नेतृत्व नेता और नीयत को हटाकर नया नेता लाने की बात की है उससे पार्टी के एक वर्ग में फिर से रोष पनपने की संभावनायें उभरने लग पड़ी हैं। इस परिदृश्य में यह माना जा रहा है कि पार्टी हाईकमान इन ब्यानों और इन से उपजी स्थितियों का संज्ञान लेकर नेतृत्व के प्रश्न पर नये सिरे से विचार करने के लिये बाध्य हो जायेगा। पांच राज्यों के चुनाव के बाद नेतृत्व के सवाल के उभरने की पूरी संभावनायें बन रही हैं। क्योंकि जयराम ठाकुर को इन चुनावों के लिए हाईकमान ने उत्तराखंड भेजा था लेकिन वहां पर उनकी जनसभा में लोगों का होना जब नहीं के बराबर होकर रह गया तो उसे हाईकमान पुनःविचार के लिए बाध्य हो रहा है। अन्यथा यह माना जा रहा है कि जिस तरह से 2017 के नेतृत्व और उसकी नियत पर निशाना साधा गया है उससे पार्टी में धरूवीकरण बढ़ने की संभावना फिर बनना शुरू हो गयी है।