Sunday, 21 December 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

क्या भ्रष्टाचार को संरक्षण देना भाजपा की संस्कृति है

शिमला/शैल। क्या भ्रष्टाचार को संरक्षण और इसके खिलाफ आवाज उठाने और सवाल पूछने वालों की आवाज बंद करवाने का प्रयास करना भाजपा सरकारों की संस्कृति है? यह सवाल शांता कुमार द्वारा अपनी आत्मकथा में भ्रष्टाचार की सनसनी खेज खुलासा करने और इसके कारण मंत्री पद छीने जाने के बाद भी भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार करने से उठ खड़ा हुआ है। क्योंकि जयराम सरकार की स्कूल के बच्चों को सरकार शिक्षा विभाग के माध्यम से हर वर्ष वर्दी देने का काम कर रही है। शिक्षा विभाग ने यह जिम्मेदारी निदेशक प्राईमरी शिक्षा को दी गई है। शिक्षा विभाग के लिए वर्दी खरीद का काम सरकार की नागरिक आपूर्ति निगम करती है। 2015 में वर्दी खरीद में घपला होने के आरोप लगे थे। विधानसभा में इस आशय के सवाल पूछे गए थे। यह सवाल उठने के बाद सरकार ने इस खरीद की जांच करने के आदेश दिए थे। जांच के लिए 2 अतिरिक्त मुख्य सचिवों की अध्यक्षता में दो कमेटियों का गठन हुआ था। एक कमेटी ने 2012-13 में और 2013-14 में खरीद की जांच की और दूसरी ने 14-15 की जांच की। 2012-13 में हुई खरीद में कोई घपला नहीं पाया गया। परंतु 2013-14 की खरीद में गड़बड़ी पाई गई और इसके लिए सप्लायरों पर 1.52 करोड का जुर्माना लगाया गया। 2014-15 की खरीद में भी घपला पाया गया और कमेटी ने इसके लिए 3.88 करोड़ का जुर्माना लगाया। कमेटियों की यह रिपोर्ट आने के बाद सप्लायर आर्बिट्रेशन में चले गए और वहां पर इस आधार पर उनको राहत मिल गई कि वर्दियां सप्लाई हो चुकी हैं और बच्चों ने इस्तेमाल भी कर ली। आर्बिट्रेशन का फैसला 2017 के अंत तक आया। तब चुनावी प्रतिक्रिया भी चल पड़ी थी। इसलिए इस फैसले पर ज्यादा कार्यवाही ना हो सकी। इसी दौरान सरकार बदल गयी। नई सरकार में शिक्षा मंत्री के सामने जब यह मामला आया तब यह पाया गया कि शिक्षा विभाग ने इसमें आर्बिट्रेशन के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का नागरिक आपूर्ति निगम से आग्रह किया था । क्योंकि यह खरीद टेंडर इसी निगम के माध्यम से जारी हुआ था। इसको उच्च न्यायालय में ले जाने के लिए नागरिक आपूर्ति निगम ही अधिकृत था। शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज ने भी फाइल पर इस मामले को उच्च न्यायालय में ले जाने की संस्तुति की हुई है। नागरिक आपूर्ति निगम ने शिक्षा विभाग के आग्रह को सीधे-सीधे नजरअंदाज कर दिया। नागरिक आपूर्ति निगम ने किसके दबाव में उच्च न्यायालय जाने का साहस नहीं किया यह आज तक रहस्य बना हुआ है। सप्लायरों का पैसा निगम के पास पड़ा हुआ था। जिसे बाद में दे दिया गया। इससे सरकार को करीब 6 करोड़ का नुकसान हुआ है और यह भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का सीधा मामला बनता है।

इसी तरह हाइड्रो कालेज के निर्माण में करीब 10 करोड़ का नुकसान हुआ है। और यह नुकसान भी भारत सरकार के उपक्रम एनपीसीसी के माध्यम से हुआ है। क्योंकि निर्माण के लिए भारत सरकार की एजेंसी का चयन हुआ था। और ठेकेदार आमंत्रित करने का टेंडर इस एजेंसी ने जारी किया। इसमें जो निविदायें आई उनमें न्यूनतम रेट 92 करोड था। परंतु एजेंसी ने काम 103 करोड़ का रेट देने वाले को दे दिया। हिमाचल का तकनीकी विभाग इस पर खामोश रहा। यह तर्क दिया कि भारत सरकार की एजेंसी काम करवा रही है। विभाग यह भूल गया कि पैसा तो हिमाचल सरकार का है। कांग्रेस विधायक रामलाल ठाकुर दो बार सदन में सवाल रख चुके हैं। परंतु यह सवाल लिखित उत्तर तक ही रह गया। सरकार ने अपने स्तर पर इसमें कोई कार्रवाई करना ठीक नहीं समझा। यह दोनों मामले 2018 में इस सरकार के आते ही घट गए थे । इन मामलों में अफसरशाही हावी रही है या राजनीतिक नेतृत्व के भी सहमति रही है इस पर अब तक रहस्य बना हुआ है परंतु करोड़ों का चूना लग गया यह स्पष्ट है।

FY 2013-14







FY 2014-15



 

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search