Friday, 19 September 2025
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कर्ज लेकर खैरात कब तक बांटी जायेगी

प्रदेश के हर आदमी पर है साढ़े आठ लाख का कर्ज
कर्ज के अनुपात में प्रतिव्यक्ति आय है 1,90,407
इस कर्ज के बावजूद आज कुल कर्मचारियों की संख्या है 1,91,278
2002 में कर्मचारियों की संख्या थी 2,27,879
क्या इस स्थिति के बाद भी शगुन आदि की रस्में निभाई जानी चाहिये?

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने वित्तिय वर्ष 2021-22 के बजट में महिला कल्याण और सशक्तिकरण के तहत प्रदेश के बीपीएल परिवारों की बेटियों को शादी के वक्त पर 31 हजा़र का शगुन देने की योजना घोषित की है। इसी के साथ यह भी घोषित किया है कि बीपीएल परिवारों को दो लड़कियों तक अब 21 हज़ार रूपये की "Post Birth" ग्रांट फिक्सड डिपाजिट के रूप में दी जायेगी। इन योजनाओं से इन परिवारों की महिलाओं का कल्याण और सशक्तिकरण कैसे होगा यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। लेकिन इन योजनाओं और ऐसी दर्जनों योजनाओं को जब प्रदेश के बजट के आईने में देखते हैं तब कुछ ऐसे सवाल आते हैं जिनका असर प्रदेश के हर व्यक्ति पर पड़ता है। इस समय प्रदेश की 70 लाख जन संख्या पर 60500 करोड़ से अधिक का कर्ज है जो प्रति व्यक्ति 8.50 लाख रूपये बैठता है। जिसका अर्थ है कि जिस बेटी को शादी के वक्त पर 31000 हज़ार का शगुन दिया जा रहा है उसके सिर पर सरकार की नीतियों के परिणामस्वरूप 8.50 लाख का कर्ज भी है। जिन दो लड़कियों की पैदाईश तक परिवार को 21000 फिक्सड डिपाजिट के रूपे में दिये जायेंगे उस परिवार के चार लोगों के नाम 34 लाख कर्ज आयेगा।
कर्ज की यह स्थिति तब है जब केन्द्र से राज्य का 90ः10 के अनुपात में ग्रांट मिलती है क्योंकि हिमाचल विशेष राज्य की श्रेणी में आता है। परन्तु केन्द्र के बजट की चर्चा के दौरान एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया है कि अब विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने का प्रावधान खत्म कर दिया गया है। प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने राज्य सरकार से इस पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। लेकिन राज्य सरकार ने इसका कोई जबाव नहीं दिया है। वित्त विभाग के सूत्रों के मुताबिक इस आश्य की सूचना राज्य सरकार तक पहुंच चुकी है। शायद इसी कारण से सरकार ने अभी बहुत सारी स्वास्थ्य सेवाओं के दाम बढ़ा दिये हैं। बिजली के दाम बढ़ाने के लिये रैगुलेटरी कमीशन में याचिका डाल दी गयी है और यह रेट बढ़ जाने की सूचना कभी भी जारी हो सकती है। विशेष राज्य का दर्जा समाप्त होने के बाद प्रदेश 90ः10 के अनुपात से 50ः50 के अनुपात पर आ जायेगा। जिसका अर्थ होगा कि राज्य पर कर्ज का बोझ और बढ़ेगा। इस बढ़ते कर्ज के कारण सरकार निवेश करने की स्थिति में नहीं होगी और जब निवेश नहीं होगा तो रोजगार के अवसर भी नहीं होंगे।
वर्ष 2009 -10 में प्रदेश का कर्जभार 23163.74 करोड़ था जो आज 60500 करोड़ से ऊपर जा चुका है। जबकि आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक वर्ष 2002 में सरकार में सभी वर्गों के कर्मचारियों की कुल संख्या 2,27,879 थी जो आज 2020 में 1,91,278 रह गयी है। सरकार के इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि जैसे जैसे सरकार का कर्जभार बढ़ता जाता है उसी अनुपात में सरकार में नियमित रोज़गार कम होता जाता है। इसी कर्ज के कारण मंहगाई होती है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इस कर्ज पर कैसे नियन्त्रण किया जाये। इसके लिये सबसे पहले सरकार की प्रत्येक योजना का व्यवहारिक पक्ष देखना होगा। यह समझना होगा कि जब अमुक योजना नहीं थी तब उससे आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ रहा था और अब योजना आने के बाद क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उदाहरण के लिये सरकार ने बेटियों की शादी पर बीपीएल परिवारों को 31000 का शगुन देने की घोषणा की है। क्या सरकार के पास ऐसी कोई रिपोर्ट थी जिसमें यह कहा गया हो कि इस शगुन के बिना इन बेटियों की शादी नहीं हो पा रही थी और उसके लिये यह सहायता देना आवश्यक था। क्या यह शगुन देकर इन बेटियों को स्वावलम्बी बनने में सहायता मिल पायेगी। यदि निष्पक्षता से इसका आकलन किया जाये तो इससे चुनावों में तो एक वोट बैंक बन जायेगा लेकिन इससे आम आदमी पर कर्ज भी जरूर बढ़ जायेगा।
शगुन देना, पोस्ट बर्थ ग्रांट देना, गैस रिफिल देना आदि वह योजनाएं हैं जिन्हें सरप्लस पैसे से पोषित किया जाना चाहिये। जब सरकार अपने खर्चे कर्ज लेकर चला रही है तब कर्ज लेकर खैरात बांटना कोई समझदारी नहीं कही जा सकती। सरकारें जब अपना वोट बैंक बनाने बढ़ाने के लिये आम आदमी पर कर्ज का बोझ बढ़ाने का काम करती है तो उससे सत्ता में वापसी सुनिश्चित नहीं हो जाती। क्योंकि ऐसे में आम आदमी की नजर सरकार की फिजूल खर्ची और भ्रष्टाचार पर गढ़ जाती है। संयोगवश इस समय में फिजूल खर्ची और भ्रष्टाचार दोनों खुले रूप से चल रहे हैं जिनके खुलासे आने वाले दिनों में सामने आयेंगे। कर्ज लेकर खैरात बांटने की बजाये संसाधन बढ़ाने पर विचार किया जाना चाहिये।

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