हाईड्रो काॅजिल में 92 करोड़ की जगह 100 करोड़ क्यों दिया गया
स्कूल वर्दी मामले में ब्लैक लिस्ट हुई फर्म की रोकी गयी पेमैन्ट क्यों कर दी गयी
राजकुमार राजेन्द्र सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर अमल क्यों नहीं
मकलोड़गंज प्रकरण में दोषीयों को बचाने का प्रयास क्यों?
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने राजीव बिन्दल के जिस मामले को अदालत से वापिस ले लिया था और प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी उस पर कोई एतराज नहीं जताया था उसका आज सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच जाना तथा सरकार सहित सभी को नोटिस जारी हो जाना भ्रष्टाचार को लेकर जयराम सरकार की नीयत और नीति दोनों पर गंभीर सवाल खड़े करता है। क्योंकि मामले की जिस स्टेज पर इसे वापिस लिया गया था इस पर यह न्याय संगत नहीं बनता था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस सम्बन्ध में बड़ी स्पष्ट व्यवस्था दे रखी है। शैल ने उस समय भी इसका स्पष्ट उल्लेख किया था। स्वभाविक है कि जब कानून
को सीधे नज़र अन्दाज करके कोई ऐसा कदम उठाया जाता है तो उसके पीछे राजनीतिक कारण ही प्रभावी रहते हैं। आज जब यह मामला एक अन्तराल के बाद सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा है तो उसके पीछे भी निश्चित रूप से राजनीतिक कारणों के होने को नकारा नहीं जा सकता।
इस मामले का राजनीतिक प्रतिफल क्या होगा इस पर चर्चा करने से पहले यह देखना आवश्यक हो जाता है कि भ्रष्टाचार पर जयराम सरकार का आचरण क्या रहा है इस सरकार ने 2017 दिसम्बर के अन्त में सत्ता संभाली थी। 2018 में हाईड्रो इंजिनियरिंग कालिज के निर्माण के कार्य के लिये ठेकेदारों से निविदायें मांगने का काम भारत सरकार के उपक्रम ने किया। इसमें जो निविदायें आयी उनमें न्यूनतम निविदा 92 करोड़ थी और अधिकतम 100 करोड़ थी। यह काम 92 करोड़ वाले को न देकर 100 करोड़ वाले को दिया गया क्योंकि उसने निविदा की प्रक्रिया पूरी होने से बहुत पहले ही काम शुरू कर दिया था। उसे शायद आश्वासन हासिल था कि काम उसे ही मिलेगा। इस पर कांग्रेस विधायक रामलाल ठाकुर ने एक पत्रकार वार्ता करके इसे उठाया भी था। विधानसभा में भी दो बार यह प्रश्न लगा लेकिन चर्चा तक नहीं आ पाया। यह सौ करोड़ हिमाचल सरकार का है। लेकिन सरकार ने एक बार भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि आठ करोड़ ज्यादा क्यों खर्च किया जा रहा है। यह निर्माण 2019 में ही पूरा होना था। परन्तु 2020 के अन्त तक भी पूरा नहीं हुआ है। निश्चित है कि यह राशी 100 करोड़ से भी बढ़ जायेगी। क्या इसे भ्रष्टचार को संरक्षण देना नहीं माना जाना चाहिये? कांग्रेस के शाासन काल में स्कूल यूनिर्फाम खरीद को लेकर विधानसभा तक में हंगाम हुआ था। बर्दीयों की गुणवत्ता पर आरोप लगा था और सप्लाई करने वाली फर्म को ब्लैक लिस्ट करने के साथ ही जुर्माने के तौर पर 10 करोड़ से अधिक की पैमेन्ट रोक दी गयी थी। इस खरीद पर हंगामा भी भाजपा ने ही किया था। लेकिन भाजपा की सरकार बनते ही बिना किसी जुर्माने के यह पेमैन्ट कर दी गयी। इससे भी भ्रष्टाचार के प्रति इस सरकार की गंभीरता का आकलन किया जा सकता है। खाद्य एवम आपूर्ति निगम में जिस अधिकारी ने यह पेमैन्ट करने में सहयोग किया है उसे सेवानिवृति के बाद पुनः नियुक्ति देकर नवाजा गया है। मकलोड़गंज प्रकरण में तो अदालत ने आधा दर्जन से अधिक विभागों की भूमिका पर गंभीर आक्षेप लगाये हैं। जयराम सरकार ने इस में नामित विभागों के अधिकारियों को संरक्षण देने के लिये अदालत की टिप्पणीयों तक का गंभीर संज्ञान नहीं लिया है। सर्वोच्च न्यायालय पूर्व में भी मकलोड़गंज प्रकरण में सरकार पर भारी जुर्माना लगा चुका है। अब भी जिस तरह का आचरण सरकार ने इस मामले में दिखाया है उससे अब भी शीर्ष अदालत में सरकार पर भारी जुर्माना लगना तय माना जा रहा है। यह सब शायद उस अधिकारी को बचाने के लिये किया जा रहा है मकलोड़गंज प्रकरण के समय परिवहन निगम का प्रबन्ध निदेशक था और आज भी सेवानिवृति के बाद ताजपोशी लेकर बैठा है। वैसे इस सरकार के कार्यकाल में सर्वोच्च न्यायालय कई मामलों में सरकार पर जुर्माने लगा चुका है। लेकिन सरकार एक भी मामले में संवद्ध अधिकारियों की जवाब तलबी तक नहीं कर सकी है।
भ्रष्टाचार को सरंक्षण देने के लिये जो सरकार सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भी अमल करने को टालती रहे उसके बारे में क्या राय बनायी जानी चाहिये इसका फैसला पाठक स्वंय कर सकते हैं। स्मरणीय है कि प्रदेश सरकार ने 31 अक्तूबर 1997 को भ्रष्टाचार के लिखाफ खुली लड़ाई लड़ने के लिये एक रिवार्ड स्कीम अधिसूचित की थी। इसमें आयी शिकायत पर एक माह के भीतर प्रारम्भिक जांच पूरी करने का प्रावधान किया गया था। लेकिन आज तक किसी भी शिकायत पर ऐसा हो नहीं सका है। 1997 की अधिसूचित इस योजना के लिये नियम आज तक कोई सरकार नहीं बना पायी है। इस योजना के तहत एक शिकायत 21 नवम्बर 1997 को राज कुमार राजेन्द्र सिंह को लेकर दायर की गयी थी। उच्च न्यायालय ने भी इस शिकायत की जांच शीघ्र पूरा करने के निर्देश दिये थे। लेकिन यह जांच हो नहीं पायी। अन्ततः यही मामला एक अन्य संद्धर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में इस शिकायत के काफी समय बाद पहुंच गया। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने सितम्बर 2018 में फैसला दिया और साफ कहा कि राजेन्द्र सिंह परिवार का आचरण इसमें पूरा फ्राड रहा है तथा इससे 12% ब्याज सहित सारे मिले लाभों की रिकवरी दो माह के भीतर की जाये। लेकिन अभी तक सरकार इस पर अमल नहीं कर पायी है। जबकि इसमें सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की कापी लगाकर मूल शिकायत कर्ता ने सचिव विजिलैन्स को ज्ञापन सौंप रखा है। लेकिन सरकार इस मामले को आज भी दबाने का प्रयास कर रही है जबकि कायदे से तो फ्राड के लिये अलग से आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिये था।
अभी पिछले दिनों जब पूर्व मन्त्री विजय सिंह मनकोटिया ने जयराम की मंत्री सरवीण चौधरी के परिजनों की जमीन खरीद मामलों पर सवाल उठाये तो यह प्रसंग मन्त्री मेहन्द्र सिंह तक भी जा पहुंचा। सरकार इस मामले में जांच करवाने को तैयार है इस आशय के सामचार तक छप गये। लेकिन इन्त में सरकार एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पायी क्योंकि कई और नेता इस तरह के आरोपों में घिर जायेंगे ऐसी संभावनाएं उभर आयी थी। इस परिदृश्य में यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सरकार भ्रष्टाचार के प्रति कतई गंभीर नही है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की आवाज़ बन्द करने के लिये किसी भी हद तक जा सकती है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि राजीव बिन्दल का मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचाने में राजनीतिक सक्रियता की भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता। अब सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की पैरवी वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण कर रहे हैं इसलिये सबकी नज़रें इस पर लग गयी हैं और इसका असर भाजपा की अपनी राजनीति पर भी पड़ेगा यह तय है। क्योंकि इसी मामले के साथ भ्रष्टाचार के अन्य मामले और उनपर सरकार का आचरण स्वतः ही चर्चा का विषय बन जाता है। इसी के साथ यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या प्रशासन ने इन मामलों की जानकारी मुख्यमन्त्री तक आने भी दी है या नहीं। क्योंकि यदि मुख्यमन्त्री के संज्ञान में होते हुए भी यह सब हो रहा है तो इससे पार्टी की पूरी सोच को लेकर ही सारा आकलन बदल जाता है। क्योंकि आने वाले दिनों में सरवीण चौधरी की तर्ज पर ही बिन्दल की परोक्ष/अपरोक्ष प्रतिक्रियाएं आयेंगी ही यह भी तय है।