Friday, 19 September 2025
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अदालत के फैसले पर अमल करने के आग्रह का परिणाम है शैल के खिलाफ राजस्व के मामले में एफ आई आर

एफ आई आर के मुताबिक शिकायत 21-8-2020 को गयी
नगर निगम ने 16-5-2020 को ही आर टी आई में शिकायत की कापी दे दी
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल को भेजी शिकायत में न तो कोई तारीख और न ही कोई फोन नम्बर
शिकायतकर्ता विजय कुमार के पत्ते पर कोई संदीप उपाध्याय रहता है
प्रदेश उच्च न्यायालय और दो बार नगर निगम की अदालत से जीतने के बाद विजिलैन्स में जमीन के मामले में एफ आई आर
शिमला/शैल। क्या किसी मामले में प्रदेश उच्च न्यायालय और उसके बाद दो बार नगर निगम शिमला की अदालत से जीतने के बाद फैसले पर अमल करने के आग्रह का परिणाम व्यक्ति के खिलाफ विजिलैन्स में आपराधिक मामला दर्ज किया जाना हो सकता है? यह कमाल मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर की विजिलैन्स ने किया है और वह भी उस समय जब मुख्यमन्त्री स्वयं पत्रकार अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी को लोकतन्त्र के लिये घातक और चैथे सतम्भ की आजा़दी पर सीधा प्रहार करार दे रहे हों। संपादक शैल के खिलाफ बनाया गया मामला भाजपा सरकार और संगठन के इसी चेहरे को उजागर करता है। यह मामला क्या है क्यों बनाया गया है और कैसे बनाया गया यह जानकारी पाठकों के सामने रखा जाना इसलिये आवश्यक हो जाता है ताकि आम आदमी को सरकार के चरित्र की जानकारी हो सके। यह पता चल सके कि प्रशासन किस तरह की राय सरकार को देता है या सत्ता के आगे कैसे घुटने टेक देता है।
शैल ने प्रकाशन के लिये अपनी प्रिन्टिंग प्रैस लगाने हेतु 1990 में हिमाचल सरकार और शिमला स्थित पंजाब वक्फ बोर्ड से ज़मीन मांगी थी। सरकार ने तो इस आग्रह का कोई जवाब नही दिया लेकिन वक्फ बोर्ड ने इसे स्वीकार करते हुए शिमला के लक्कड़ बाजा़र स्थित मुस्लिम कालोनी ईदगाह में करीब 70 वर्ग गज़ जगह लीज पर दे दी। जून 1990 में मिली इस ज़मीन पर निर्माण शुरू किया जो बरसात में नाला बन्द होने के कारण आये तेज पानी के कारण गिर गया। करीब दो लाख का नुकसान हो गया। निर्माण बन्द करना पड़ा। बरसात के बाद जब पुनः निर्माण शुरू करने की तैयारी की तो वहां पर सार्वजनिक शौचालय का निर्माण हो चुका था। शौचालय बन जाने के कारण वहां पर प्रैस लगाना संभव नही रह गया था। शौचालय बना दिये जाने की जानकारी वक्फ बोर्ड को दी गयी। वक्फ बोर्ड से जानकारी मिली की यह नगर निगम द्वारा बनाये गये हैं और उससे मामला उठाया जाये। शौचालय बन जाने के कारण वहां पर प्रैस लगाना संभव नही रह गया था और लीज़ को रिन्यू करवाकर खाली ज़मीन का किराया भरने का भी कोई औचित्य नही था। नगर निगम से शौचालय को लेकर पत्राचार चलता रहा। नगर निगम के कारण 70 वर्ग गज़ ज़मीन चली गयी और लाखों का नुकसान हो गया। 1999 में नगर निगम ने माना कि शौचालय मेरे प्लाट की 13 वर्ग गज़ जगह पर बने हैं। इसके बदले में लक्कड़ बाज़ार बस स्टैण्ड पर स्थित रेनशैलटर के नीचे की 13 वर्ग गज़ लीज़ पर दे दी जिसे शैल ने अपने खर्चे पर बनाना था और यह खर्च एडवांस किराया के रूप में एडजैस्ट किया जाना था। दिसम्बर 1999 में नगर निगम के साथ लीज हुई और 2000 में यहां पर निर्माण शुरू किया। जब निर्माण शुरू किया तो एक अरूण कुमार ने इस पर एतराज उठाया और प्रदेश उच्च न्यायालय से स्टे करवा दिया। नोटिस होने पर जब उच्च न्यायालय में पक्ष रखा तब स्टे हटा दिया गया और 2006 में हमारे हक में फैसला भी आ गया। लेकिन इसी बीच 2003 में सरकार बदल गयी। वीरभद्र सरकार में नगर निगम ने हमारे खिलाफ वहां से हटाये जाने के लिये अपनी अदालत में मामला दायर कर दिया। इसका फैसला 2007 में हमारे हक में हुआ। इस फैसले की 2009 में मण्डलायुक्त के पास निगम ने अपील दायर कर दी। 2010 में मण्डलायुक्त ने यह मामला नये सिरे से सुनवाई करने के लिये नगर निगम को भेज दिया। 2016 में इसका फैसला फिर हमारे पक्ष में आया। अब जब इस फैसले पर अमल करने के लिये नगर निगम से आग्रह किया गया तब यह आपराधिक मामला खड़ा कर दिया गया। वैसे सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दे रखी है कि ऐसे राजस्व से जुड़े विषयों पर आपराधिक मामले न बनाये जायें।
यह मामला बनाये जाने के लिये एक शिकायतकर्ता विजय कुमार प्रधानमन्त्री, मुख्यमन्त्री और राज्यपाल को शिकायत भेजता है कि वक्फ बोर्ड की जिस ज़मीन के बदले में नगर निगम ने हमे रेनशैलटर के नीचे ज़मीन दी है उसे वक्फ बोर्ड और नगर निगम की जानकारी के बिना हमने चार आदमीयों को बेच दिया है तथा इस तरह से गलत ब्यानी करके निगम से जगह ले ली। वर्ष 2000 से यह मामला लगातार अदालतों में चल रहा है और नगर निगम ही हमारे खिलाफ अदालत में गया है। जब नगर निगम अदालत के फैसले को लागू न करे तो उससे निगम की नीयत कोई भी समझ सकता है। लेकिन जो आरोप विजय कुमार ने लगाया है यह आरोप कभी किसी अदालत में बीस वर्षो में नही लगा है। यदि सही में ऐसा होता तो यह आरोप कभी का अदालत के रिकार्ड पर लाकर हमें बाहर कर दिया जाता। 2003 में जब नगर निगम हमारे खिलाफ अदालत में गया तब एक समय पीठासीन अधिकारी की गैर हाजिरी में रीडर ही हमारे खिलाफ मामले की सुनवाई कर रहा था और जब लिखित में मौके पर प्रोटैस्ट किया तब सुनवाई रूकी। यह सब रिकार्ड पर उपलब्ध है।
अब विजय कुमार की शिकायत पर कोई तारीख नही है लेकिन विजिलैन्स ने एफ आई आर में शिकायत की तारीख 21.08.2020 कही है। लेकिन नगर निगम से एक डाॅ. बन्टा ने आर टी आई में शिकायत की कापी 16.05.2020 को प्राप्त कर रखी है। एफ आई आर में विजय कुमार का नाम नही दिखाया गया है। शिकायत में विजय कुमार ने जो पता दिखाया है वहां पर कोई संदीप उपाध्याय रहता है। शिकायत पर कोई तारीख और फोन नम्बर का न होना शिकायत और शिकायतकर्ता दोनों की प्रमाणिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। लेकिन विजिलैन्स ने इस शिकायत को सही मानते हुये एफ आई आर दर्ज कर ली है। एफ आई आर में ही 30-11-95 को इस जमीन की वक्फ बोर्ड द्वारा डिमारकेशन किये जाने का जिक्र है। क्या इस डिमारकेशन से वक्फबोर्ड को जमीन का सही संज्ञान नही हो गया? फिर 25-4-99 को इस जमीन का निरीक्षण नगर निगम की टीम करती है और इसकी रिपोर्ट भी एफ आई आर के मुताबिक रिकार्ड पर लगी है। इन दोनों रिपोर्टों में हम शामिल नही हैं। हमें तो निगम ने दिसम्बर 1999 में जगह दी। तब सब कुछ निगम के संज्ञान में था। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हैै कि विजिलैन्स ने कैसे अपराधिक माामला दर्ज कर लिया। इस परिदृश्य में यह स्पष्ट हो जाता है कि शैल की आवाज़ दबाने के लिये जबरदस्ती यह मामला खड़ा किया गया है। शैल के किस लिखने से सरकार को परेशानी हुई है इसका खुलासा अगले अकों में किया जायेगा।

अदालतों के फैसले

 

नगर निगम की कारवाई

































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