Friday, 19 September 2025
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कोरोना के बढ़ते आंकड़ों में स्कूल खोलने का फैसला घातक होगा

शिमला/शैल। इस समय प्रदेश में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 25000 से पार जा चुका है। आने वाले सर्दियों के दिनों में यह आंकड़ा और बढ़ेगा यह तय है। इससे निपटने के लिये सरकार की तैयारियां सारे दावों के बावजूद इतनी नहीं है कि वह हर जिले में इससे एक साथ निपट सके। क्योंकि जितने वैन्टीलेटर सरकार के पास उपलब्ध है शायद उन्हें आप्रेट करने के लिये उतने प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं है। यह सारे आंकड़े एक याचिका में प्रदेश उच्च न्यायालय के सामने भी आ चुके हंै। इसके टैस्ट बढ़ाने के लिये भी पैरा मैडिकल स्टाॅफ और नर्सिंग स्टाॅफ को अब प्रशिक्षण देने की तैयारी हो रही है। दवाई आने में कितना समय और लगेगा यह कहना भी अभी कठिन है। आयूष का काढ़ा भी हर स्थान पर सुगमता से उपलब्ध नहीं है क्योंकि इस ओर कोई अलग से प्रयास किये ही नहीं गये हैं। प्रदेश की आयूष फारमैसियों के पास जितना भी काढ़ा उपलब्ध था उसे शुरू मे ही विभाग ने लेकर मन्त्रिायों, अधिकारियों तथा कोरोना उपचार में तैनात स्टाॅफ को बांट दिया था। अब भी विभाग जो काढ़ा मंगवा पाता है उसे इसी तरह कुछ विशेष लोगों को बांट दिया जाता है। आम आदमी के हिस्से में अब भी कुछ नहीं आ पाता है। आज कोरोना के लिये न तो कोई दवाई और न ही यह काढ़ा तक उपलब्ध है केवल बचाव का उपाय ही एक मात्रा विकल्प बचा है। इस बचाव में व्यवहारिक रूप से देह दूरी और मास्क पहनना ही प्रमुख रूप से आता है।
इस परिदृश्य में स्कूल खोलना और बच्चों को स्कूल भेजने के लिये अभिभावकों की लिखित अनुमति अनिवार्य करने का अर्थ है कि सरकार अपने ऊपर कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। ऐसी वस्तुस्थिति में सरकार के इस फैसले पर सवाल उठना स्वभाविक है। जब से स्कूल खोलने और बच्चों का स्कूल आना शुरू हुआ है तब से अध्यापकों और छात्रों में कोरोना संक्रमण का आंकड़ा प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। प्रदेश का हर जिला इससे प्रभावित हो रहा है और यह बढ़ेगा ही यह भी तय है। इसलिये यह सवाल और भी प्रसांगिक हो जाता है कि सरकार ने स्कूल खोलने का फैसला क्यांे लिया। क्या सरकार का कोरोना को लेकर आकलन सही नहीं रहा है? क्या प्रशासन ने वस्तुस्थिति को गंभीरता से नहीं लिया है। जब सरकार ने बहुत अरसे से आॅनलाईन पढ़ाई शुरू कर रखी है और पाठ्यक्रम में भी कमी कर रखी है तब स्कूल खोलने की आवश्यकता और औचित्य क्या रह जाता है। मार्च से नवम्बर तक स्कूल बन्द रहे हैं। आठ माह स्कूल बन्द रखने के बाद अब सर्दीयों के मौसम में जब वैसे ही सर्दी, जुकाम का प्रकोप रहता है तब सरकार के इस फैसले को व्यवहारिक कैसे कहा जा सकता है।
कोरोना काल में जब आॅनलाईन पढ़ाई शुरू की तब बच्चों और अभिभावकों को स्मार्ट फोन लेना अनिवार्य हो गया था। इसके लिये नेटवर्क आवश्यक हुआ और यह बीएसएनएल की जगह जियो से लेना पड़ा। जियो ने नेटवर्क का शुल्क भी बढ़ा दिया। लेकिन इस व्यवस्था में स्कूल अध्यापक और बच्चे के बीच तीसरा कोई नहीं था। लेकिन अब जब इस व्यवस्था में सरकार ने बाकायदा एक एमओयू साईन करके जियो को बीच में लाकर खड़ा कर दिया है तब स्थिति बदल जाती है। जियो नेटवर्क सर्विस प्रदाता है और सामान्यतः उसकी भूमिका इससे अधिक हो ही नहीं सकती है तब क्या जियो को नेटवर्क प्रदान करने के लिये भी सरकार पैसा देगी? छात्रा जितना नेटवर्क प्रयोग करेंगे उसकी कीमत तो वह स्वयं देंगे फिर सरकार जियो को किस बात के लिये पैसा देगी। यह सवाल अभी तक अनुतरित है ऐसे में सवाल उठना स्वभाविक है कि जब तक नियमित रूप से स्कूल नही खुलेंगे और छात्रा नहीं आयेंगे तब तक जियो को भुगतान करना आसान नहीं होगा। जियो के कारण ही छात्रों की फीस आदि में बढ़ौत्तरी की गयी है। इस फीस बढ़ौत्तरी को लेकर रोष चल रहा है क्योंकि इसी के कारण प्राईवेट स्कूलों को भी पूरी फीस वसूल करने का मौका मिल गया है। इस फीस बढ़ौत्तरी के अतिरिक्त बिजली, पानी और बस किराया तक कोरोना काल में बढ़ा दिया गया है। वाहनों का पंजीकरण दस प्रतिशत कर दिया गया है। इस तरह हर ओर से आम आदमी में रोष व्याप्त हो रहा है। ऐसे में जब बच्चों में संक्रमण के बढ़ने के आंकड़े सामने आते जायेंगे तब उसी अनुपात में जनता में रोष बढ़ता जायेगा और यह रोष कोई भी शक्ल ले लेगा।
ऐसे परिदृश्य में व्यवहारिक यही होगा कि स्कूल खोलने का फैसला छोड़कर इस सत्रा में बच्चों को वैसे ही प्रोमोट कर दिया जाना चाहिये। क्योंकि जब तक कोरोना को लेकर आम आदमी में बैठा डर दूर नही होगा तब तब अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने के लिये तैयार नही हो पायेंगे।

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