स्वास्थ्य विभाग में
शिमला/शैल। एक आडियो के सामने आने से स्वास्थ्य विभाग जिस तरह से सवालों और आक्षेपां के घेरे में आ खड़ा हुआ था उसका पहला शिकार विभाग का निदेशक डा.गुप्ता हुआ था। सेवानिवृति से दस दिन पहले उनकी गिरफ्तारी हो गयी। इस आडियो के दूसरे शिकार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा.राजीव बिन्दल हुए। उन्हें अध्यक्ष पद से त्याग पत्र देना पड़ा जो चुनाव प्रभाव से राष्ट्रीय अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया। इस तुरन्त स्वीकार से यह यह सन्देश दिया गया कि भाजपा भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टाॅलरैन्स के लिये प्रतिबद्ध है। डा. बिन्दल ने यह त्यागपत्र भी नैतिकता के आधार पर दिया क्योंकि यह आरोप लगा था कि डा. गुप्ता से आडियो किल्प में बातचीत करने वाला व्यक्ति एक भाजपा नेता का करीबी है। इस चर्चित आडियो किल्प के आधार पर विजिलैन्स ने डा.गुप्ता के खिलाफ 20 तारीख को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत एफआईआर दर्ज की गयी। Dr.Ajay Kumar Gupta
Vs. State of H.P.
Bail application No. 163/2020
Bail petition under Section 439 of the Criminal Procedure Code 1973 in FIR No. 4/2020 dated 20.05.2020 U/Ss 7 and 8 of Prevention of Corruption (Amended) Act 1988, registered at Police Station S.V. & A.C.B., Shimla. उसी रात करीब दो बजे डा. गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद आईजीएमसी अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हे स्वास्थ्य कारणों पर दाखिल कर लिया। अस्पताल में डा. गुप्ता 26 तारीख तक रहे और फिर अदालत में पेश किये गये। अदालत से पांच दिन की पूछताछ के लिये कस्टडी मिल गयी और अब 31.5.20 को नियमित जमानत मिल गयी क्योंकि अदालत की नजर में विजिलैन्स ऐसा कुछ सामने नही ला पायी जिसके आधार पर जमानत न दी जाती। सरकारी वकील ने अदालत में यह स्वीकारा है कि 16. In the present case learned Public Prosecutor has candidly submitted that as of date the only evidence incriminating the accused is the audio clip wherein the accused is reflected as demanding bribe of Rs.5 lacs. There is no evidence that the alleged bribe money was paid to the accused. However, further interrogation in this regard is stated to be required. जिस ढंग से यह आडियो सामने आया और सरकार ने इसे विजिलैन्स को तथा विजिलैन्स ने इस पर उसी दिन एफआईआर दर्ज करके रात को ही निदेशक को गिरफ्तार कर लिया उससे प्रदेश के राजनीतिक तथा प्रशासनिक हल्कों में तूफान की स्थिति पैदा होनी ही थी। क्योंकि महामारी के दौर में जब स्वास्थ्य विभाग के निदेशक के खिलाफ ही पांच लाख की रिश्वत मांगने का मामला सामने आयेगा तो हर आदमी उस पर रोष में आयेगा ही यही हुआ भी। भाजपा के ही प्रदेश के वरिष्ठतम नेता शान्ता कुमार ने इस पर गंभीर चिन्ता जताते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा को पत्र लिख दिया। भाजपा के ही पूर्व मन्त्री सोफत ने भी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। विपक्षी दल कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और राष्ट्रीय सचिव पूर्व मन्त्री सुधीर शर्मा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर सहित सभी नेताओं ने इसकी जांच सीबीआई उच्च न्यायालय के न्यायधीश या कोर्ट की निगरानी में एसआईटी से करवाने की मांग कर दी। सीपीएम नेता विधायक राकेश सिंघा ने भी विजिलैन्स से हटकर निष्पक्ष जांच की मांग की है। विपक्ष ने इस पर नैतिकता के आधार पर मुख्यमन्त्री से भी त्यागपत्र की मांग की है क्योंकि पिछले पांच माह से स्वास्थ्य मन्त्री का कार्यभार भी मुख्यमन्त्री के पास ही है। यह स्पष्ट है कि इस मामले में डा. बिन्दल के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र के साथ ही मुख्यमन्त्री की अपनी नैतिक जिम्मेदारी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। क्योंकि आडियो संवाद में आये दूसरे व्यक्ति पृथ्वी सिंह को बिन्दल का करीबी बताया जा रहा था। लेकिन पृथ्वी सिंह को विजिलैन्स गिरफ्तार नही कर पायी है जिसका अर्थ है कि विजिलैन्स के सामने ऐसा कोई सक्ष्म आधार आया ही नही जिस पर यह गिरफ्तारी हो पाती।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब विजिलैन्स के पास पृथ्वी सिंह की गिरफ्तारी के लिये ही पर्याप्त आधार नही बन पाये तो उसी पृथ्वी सिंह के कारण डा. बिन्दल का त्यागपत्र क्यों और कैसे। डा. गुप्ता की जमानत याचिका पर सुनवायी के दौरान विजिलैन्स ने माना है कि उसके पास दस दिन की जांच के बाद भी डा. गुप्ता के खिलाफ आॅडियो किल्प के अतिरिक्त और कोई विशेष साक्ष्य नही हैं। ऐसे में यह जानना आवश्यक हो जाता है कि जब कोरोना के कारण 24 मार्च से प्रदेश में कफ्र्यू लग गया तब उसके बाद स्वास्थ्य विभाग में कोरोना के संद्धर्भ में क्या खरीददारी हुई और कैसे हुई। इसमें सबसे पहले सरकार ने 3 अप्रैल को वित्त विभाग से एक अधिसूचना जारी करके वस्तुओं और सेवाओं की खरीद से जुड़े नियमों में संशोधन कर दिया। इस संशोधन में एचपीएफआर के नियम 94, 94A की अनिवार्यता नियम 103 और 104 के लिये नही रखी।
इस संशोधन के बाद विभाग ने अप्रैल माह में ही पीपीई किटस की खरीद की। पहले पंजाब के मोहाली स्थित कंपनी वायो एड से 6000 किट्स 1400 रूपये प्रति किट की दर से 84 लाख में खरीदी। इसके बाद दूसरी बार कुरूक्षेत्र स्थित कंपनी बंसल कारपोरेशन से 7000 किट्स 1050 रूपये प्रति किट की दर से 73.5 लाख में खरीदी। इसके बाद 21 अप्रैल को भी यह पीपीई किट्स की खरीद के लिये निविदायें आमन्त्रित की गयी थी जिन्हे बाद में रद्द कर दिया गया था। इसके बाद सरकारी उपक्रम एचएलएल से खरीद का निर्णय लिया गया। यहां पर विभागीय सूत्रों के मुताबिक कुरूक्षेत्र की जिस कंपनी बंसल कारपोरेशन से 73.5 लाख की खरीद की गयी है वह शायद इस नाम से वहां पर मौजूद ही नही हैं। कुरूक्षेत्र में बंसल सेल्ज कोरपोरेशन और बंसल पालीमर्ज नाम से दो और कंपनीयां हैं जो पीपीई किट्स का काम ही नही करती हैं। अब जब विजिलैन्स इस मामले की जांच कर रही थी तब वायो एड के जी एस कोहली से तो पूछताछ की गयी है लेकिन बंसल कारपोरेशन को लेकर कोई पूछताछ नही हुई है जबकि दोनांे के रेट में 350 रूपये प्रति किट्स का अन्तर है। फिर बंसल कारपोरेशन के होने पर ही सन्देह व्यक्त किया जा रहा है। यदि सही में ही यह बंसल कारपोरेशन मौजूद ही नही है और इससे 73.5 लाख की खरीद कर ली गयी है तो यह अपने में एक बहुत बड़ा मुद्दा बन जाता है। इससे उन सारे आरोपों को स्वतः ही बल मिल जाता है जिनको लेकर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री विधानसभा में सरकार पर हमलावर रहे हैं।
संशोधित खरीद नियम