Thursday, 18 September 2025
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हिमाचल की खुशहाली व आर्थिक सम्पन्नता का प्रतीक ‘सेब’

 शिमला। विविध कृषि-जलवायु, स्थलाकृतिक विविधता एवं विभिन्न उंचाई वाले क्षेत्रा, उपजाऊ, गहरी एवं शुष्क मिट्टी जैसी अनुकूल परिस्थितियां हिमाचल प्रदेश को शीतोष्ण एवं उष्ण-कटिबंधीय फलों के उत्पादन के लिये एक उपयुक्त स्थल बनाती हैं। राज्य सरकार द्वारा बागवानी क्षेत्रा में दिए जा रहे विशेष बल के फलस्वरुप आज प्रदेश में 2.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्रा को फलोत्पादन के अंतर्गत लाया जा चुका है, जबकि वर्ष 1950-51 में महज 792 हेक्टेयर क्षेत्रा बागवानी के अधीन था। इसी प्रकार, वर्ष 1950-51 में फलों का उत्पादन केवल 1200 टन था, जो आज बढ़कर 8.19 लाख टन तक पहुंच गया है।
हालांकि राज्य में प्रगतिशील एवं मेहनती उत्पादकों द्वारा विभिन्न प्रकार की फल फसलें उगाई जाती हैं, लेकिन सेब राज्य के सात जिलों की लगभग 1.70 लाख परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन है। प्रदेश में फल उत्पादन के अंतर्गत कुल क्षेत्रा में से 49 प्रतिशत सेब के अधीन है, जो कुल फल उत्पादन का 85 प्रतिशत है। सेब का उत्पादन मुख्यतः शिमला, कुल्लू, किन्नौर, मण्डी, चम्बा तथा सिरमौर जिलों में किया जाता है। जनजातीय जिला लाहौल-स्पिति के लोग भी अब बड़े पैमाने में सेब के पौधों का रोपण कर रहे हैं। वर्ष 1950-51 में सेब के अधीन 40 हेक्टेयर क्षेत्रा था, जबकि वर्ष 1960-61 में 3,025 हेक्टेयर क्षेत्रा में सेब की खेती की जाती थी, जो वर्ष 2014-15 में बढ़कर 1,09,553 हेक्टेयर हो गई है। यह दर्शाता है कि राज्य की अधिकांश आबादी सेब की फसल पर निर्भर है।
हिमाचल प्रदेश की लगभग 3500 करोड़ रुपये की सेब आर्थिकी न केवल राज्य की खुशहाली की रीढ़ है, बल्कि इससे प्रदेश तथा अन्य राज्यों के हजारों हितधारक जैसे ट्रांसपोटरों, कार्टन निर्माताओं, नियंत्रित वातावरण भण्डारण/शीत भंडारण मालिकों, थोक फल बिक्रेताओं, फल विधायन इकाइयों के मालिकों के अतिरिक्त लाखों लोगों को प्रत्यक्ष अथवा अपरोक्ष रोजगार मिलता है। सेब आर्थिकी ने प्रदेश के लोगों का अभूतपूर्व तरीके से जीवन स्तर में बदलाव लाया है, जिसका श्रेय मेहनतकश सेब उत्पादकों के साथ-साथ राज्य सरकार द्वारा उठाये गए विभिन्न कदमों जैसे बागवानों को उच्च पैदावार किस्मों के सेब तथा बेहतर विपणन के लिये प्रदान की जा रही अधोसंरचना को जाता है।
राज्य सरकार सेब उत्पादकों के विभिन्न समस्याओं का समग्र समाधान करने के लिए वचनब( है। प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों में उत्पादकों के हितों को सुरक्षित रखने के लिये राज्य सरकार ने उनके कल्याण के लिए अनेक योजनाएं लागू की हैं। प्राकृतिक आपदाओं से बागवानों की मूल्यवान फसलों को सुरक्षित रखने के लिए राज्य में मौसम आधारित फसल बीमा योजना शुरू की गई है। आरम्भ में यह योजना सब फसल के लिए 6 खण्डों तथा आम की फसल के लिए 4 खण्डों में लागू की गई है। इस योजना की लोकप्रियता को देखते हुए इसके दायरे राज्य के अन्य खण्डों में भी बढ़ाया जा रहा है। वर्ष 2015-16 के दौरान यह योजना सेब के लिए 36 खण्डों, आम फसल के लिए 41 खण्डों, किनू के लिए 15 खण्डों, पलम के लिए 13 खण्डों तथा आडू फसल के लिए 5 खण्डों में कार्यान्वित की गई है।
इसके अतिरिक्त, ओलावृष्टि से सेब की फसल को बचाने के लिए इस योजना के अन्तर्गत राज्य के 17 खण्डों में अतिरिक्त कवर प्रदान किया गया है। वर्ष 2014-15 के रबी की फसल के दौरान मौसम आधारित फसल बीमा योजना के तहत सेब के लिए 97,246 उत्पादकों को लाया गया है। सेब उत्पादकों ने अपने 61,69,865 सेब पौधों का बीमा करवाया है, जिसके लिए प्रदेश सरकार 25 प्रतिशत प्रीमियम की अदायगी पर 9.22 करोड़ रुपये का अनुदान वहन करेगी। योजना के अन्तर्गत 34.50 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति प्रदान कर 92,423 किसानों को लाभान्वित किया गया है।
राज्य में विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित 1115 करोड़ रुपये की हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना भी कार्यान्वित की जा रही है। सात वर्षों की अवधि तक कार्यान्वित की जाने वाली इस परियोजना के अन्तर्गत फसल उत्पादन में वृ(ि करने एवं क्षमता निर्माण के लिए बागवानों को नई तकनीक प्रदान करने पर बल दिया जाएगा। फल फसलों विशेषकर सेब को ओलावृष्टि से बचाने के लिए राज्य सरकार ने एंटी हेलनेट पर अनुदान को 80 प्रतिशत तक बढ़ाया है।
किसानों को उनके उत्पादों की बिक्री के लिए बेहतर विपणन सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से, राज्य सरकार ने वर्तमान कार्यकाल के दौरान 27.45 करोड़ रुपये की राशि खर्च करके 10 विपणन मण्डियों एवं एकत्राण केन्द्रों को क्रियाशील बनाया है। इनके अलावा, निरमण्ड, घुमारवीं, पालमपुर चरण-2 तथा चरण-1 में चार उप-मण्डियों का निर्माण पूरा किया गया है। कुल्लू जिला के चैरीबेहल, कांगड़ा के फतेहपुर तथा ऊना जिले के भदशाली में तीन उप-मण्डियों का निर्माण कार्य जल्द ही पूरा होगा। अन्य 6 उप-मण्डियों का कार्य प्रगति पर है और राज्य सरकार शिमला जिले के मेंहदली, सुन्नी, टूटू, ढली चरण-2, सोलन जिले के परवाणु तथा कांगड़ा के धर्मशाला में सात उप-मण्डियों की स्थापना कर रही है।
राज्य में सेब एंव फल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों से कृषि अर्थव्यवस्था को नए आयाम मिलेंगे।

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