Thursday, 18 September 2025
Blue Red Green
Home दुनिया अमित शाह का दौरा रद्द होना प्रदेश नेतृत्व को झटका

ShareThis for Joomla!

अमित शाह का दौरा रद्द होना प्रदेश नेतृत्व को झटका

शिमला/शैल। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का हिमाचल का प्रस्तावित दौरा रद्द हो गया है जबकि प्रदेश भाजपा और जयराम सरकार लम्बे अरसे से इस दौरे की तैयारियों में जुटे हुए थे। बल्कि ज्वालामुखी में आयोजित की गयी दो दिवसीय बैठक भी इन्हीं तैयारियों का एक हिस्सा थी। इस परिदृश्य में शाह के दौरे का स्थगित होना राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बनना स्वभाविक है। लोकसभा के चुनाव अगले वर्ष मई में होना तय है लेकिन इस बात के ठोस संकेत उभरते जा रहे हैं कि चुनाव समय से पूर्व ही हो जायेंगे। क्योंकि इसी वर्ष के अन्त में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव होना तय है। इन राज्यों में लम्बे अरसे से भाजपा की सरकारें हैं। लेकिन इस बार इन राज्यों में हुए कुछ विधानसभा और लोकसभा के उपचुनावों में भाजपा को करारी हार मिली है। इस हार का सबसे बड़ा लाभ भी कांग्रेस को ही मिला है क्योंकि यहां भाजपा का राजनीतिक विकल्प कांग्रेस ही है। फिर लोकसभा चुनाव के लिये सारा विपक्ष एकजुट हो रहा है क्योंकि यदि इकट्ठा होकर विपक्ष भाजपा का सामना करेगा तभी तो बाद में क्षेत्रीय दल अपने अपने राज्यों में अपने वर्चस्व की मांग कर पायेंगे। भाजपा विपक्षी एकता की संभावना से अन्दर से घबरायी हुई है और इसे तोड़ने के लिये भाजपा ने सोशल मीडिया का एकमात्र फोकस राहूल और नेहरू परिवार के खिलाफ कर दिया है कि यदि एक झूठ को सौ बार बोलेंगे तो वह सच्च बन जायेगा लेकिन अब जब सोशल मीडिया की कुछ साईटस का सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लिया है और इस संज्ञान के बाद पोस्टकार्ड मीडिया साईट के संस्थापक की गिरफ्तारी भी हो गयी है इससे सोशल मीडिया पर आधारित होने की धारणा को झटका भी लगा है क्योंकि इन दिनों अमित शाह सबसे अधिक अपने सोशल साईट कार्यकर्ताओं के सम्मेलनों पर ज्यादा फोकस कर रहे थे। हिमाचल में भी इसकी तैयारियां चल रही थी लेकिन यहां आईटी सैल के प्रमुख के त्यागपत्र के कारण यह गणित गड़बड़ा गया है।
इस सारी वस्तुस्थिति को सामने रखते हुए शाह के दौरे का रद्द हो जाना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस समय भाजपा के शीर्ष केन्द्रिय नेतृत्व का पूरा ध्यान लोकसभा चुनाव पर ही केन्द्रित चल रहा है। मोदी शाह की कार्यप्रणाली की जानकारी रखने वाले जानते हैं कि यह लोग अपने सूचना तन्त्र पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं। इस तन्त्र में केन्द्र सरकार की ऐजैन्सीयों के अतिरिक्त और भी कई ऐजैन्सीयां फील्ड में सर्वे में जुटी हुई है। हिमाचल में भी पिछले एक माह में ऐसी दो टीमें प्रदेश का सर्वे कर गयी हैं। उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक इन सर्वों में हिमाचल से चारों सीटें फिर से मिलने की संभावना नही मानी जा रही है। इसमें यह भी सामने आया है कि पिछले लोकसभा चुनावों में प्रदेश में भाजपा के पास वीरभद्र के खिलाफ आयकर, सीबीआई और ईडी में चल रहे मामले एक बड़ा हथियार थे। इन्ही के सहारे यह आरोप लगाये गये थे कि वीरभद्र के तो पेड़ो पर भी पैसे उगते हैं लोकसभा चुनावों के बाद जब विधानसभा चुनाव आये तब वीरभद्र सरकार की कार्यप्रणाली मुद्दा बन गयी जिसमें गुड़िया जैसे प्रकरणों ने आग में घी का काम किया। भ्रष्टाचार को लेकर महामहिम राष्ट्रपति तक को ज्ञापन सौंपे गये और सरकार को भ्रष्टाचार का पर्याय प्रचारित कर दिया गया तथा भाजपा को इतना बड़ा बहुमत मिल गया। लेकिन आज यह कोई भी हथियार भाजपा इस्तेमाल नही कर सकती क्योंकि इन मामलों में भाजपा सरकार की केन्द्र से लेकर राज्य तक करनी उनकी कथनी से एकदम भिन्न रही है। बल्कि आज उल्टे यह मामले भाजपा से जवाब मांगेगे।
ऐसे में इन लोकसभा चुनावों में सबकुछ राज्य सरकार की करनी और मुख्यमन्त्री की अपनी कार्यप्रणाली पर निर्भर करेगा। आज जयराम सरकार के इस दौरान लिये गये फैसलों की निष्पक्ष समीक्षा की जाये तो इनका बहुत ज्यादा सकारात्मक प्रभाव नही दिख पाया है। जयराम किस तरह के सलाहकारों से प्रशासन और राजनीतिक मसलों पर घिरे हुए हैं उस पर तो वीरभद्र की टिप्पणी ही सबसे स्टीक बैठती है। जब उन्होंने यह कहा कि यह लोग गद्दी के लिये खतरा हो सकते हैं। स्वभाविक भी हैं जिस मुख्यमन्त्री को अपने मुख्य सचिव की रक्षा यह कहकर करनी पड़े कि दिल्ली में उनके खिलाफ क्या है इससे उनका कोई सरोकार नही है तो यह टिप्पणी एक तरह से केन्द्र के ही खिलाफ हो जाती है। आज यह आम चर्चा का विषय बना हुआ है कि शीर्ष प्रशासन की निष्ठायें शायद मुख्यमन्त्री से ज्यादा कहीं और हैं खली प्रकरण और दीपक सानन को स्टडी लीव देने जैसे कई मामले आने वाले समय में सरकार से जवाब मांगेगे। लोकसभा प्रत्याशीयों को लेकर भी अभी तक यह स्थिति स्पष्ट नही है कि सभी पुराने जीते हुओं को ही फिर से चुनाव में उतारा जायेगा या इनमे कोई फेरबदल होगा। पार्टी के कार्यकर्ताओं की ताजपोशीयां किसी न किसी कारण से टलती जा रही हैं। ज्वालामुखी की बैठक में शान्ता, धूमल और नड्डा का शमिल न होना एक अलग ही संदेश दे गया है। अभी जयराम ने एक साक्षात्कार में कहा कि वह मन्त्रीयों के रिपोर्ट कार्ड पर बराबर नज़र रख रहे हैं। बल्कि इस कथन के बाद मन्त्रीमण्डल में फेरबदल की अटकलें तक चल पड़ी थी। माना जा रहा था कि शाह के दौरे के दौरान इन अटकलों पर स्थिति साफ हो जायेगी। लेकिन अब शाह के दौरे के दौरान इन अटकलों पर स्थिति साफ हो जायेगी। लेकिन अब शाह के दौरे के रद्द होने से यह भी चर्चा चल पड़ी है कि लोकसभा चुनावों के परिदृश्य में केन्द्र प्रदेश के रिपोर्ट कार्ड पर भी नज़र रख रहा है। सूत्रों की माने तो जिस बैठक में शाह का दौरा रद्द हुआ है उसी बैठक में शान्ता कुमार को भी एक बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने पर भी विचार हुआ है। माना जा रहा है कि 15 अगस्त के बाद प्र्रदेश की भाजपा राजनीति में कई समीकरण बदलेंगे। शाह का दौरा रद्द होना मुख्यमन्त्री के लिये बड़ा झटका माना जा रहा है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook