शिमला/शैल। खली प्रकरण में निश्चित रूप से सरकार की फजीहत हुई है और इसमें सबसे बड़ा योगदान शीर्ष तन्त्र का रहा है। खली का इवैन्ट सूचित खेल सूची में नही आता है। यह जानकारी सरकार को बजट सत्र के दौरान ही हो गयी थी। इस जानकारी के बाद जयराम के दो मन्त्री पंजाब में खली की अकादमी देखने गये थे इसके बाद खली मनाली आये वहां उन्होने एक आयोजन में भाषण भी दिया। इस भाषण में खली ने भाजपा की जमकर तारीफ की और कांग्रेस को खुब कोसा। खली के इस भाषण के बाद यह संकेत भी उभरे कि वह कभी भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं। इसी संकेत संदेश को आगे बढ़ाते हुए खली के आयोजन का पूरा खर्च सरकार द्वारा उठाने के प्रयास भी हुए। लेकिन जब यह प्रयास सफल नही हुए तब यह ऐलान भी हो गया कि सरकार इसमें कोई योगदान नही कर रही है बल्कि मण्डी के खेल मैदान के किराये का बिल भी खली को थमा दिया गया। सरकार के सहयोग न करने के फैसले से खली इस कदर आहत हुए कि उन्होने यहां तक कह दिया कि उनके पास तो कुर्सीयां लगाने तक के पैसे भी नही बचे हैं। उन्होने स्वयं रिंग में न उतरने तक की घोषणा कर दी और पूरा शो मुफ्त में दिखाने का फैसला ले लिया। शो मे लोगों की भीड़ जुटाने के लिये खली ने मण्डी और सुन्दरनगर रोड़ शो तक किये। इस आयोजन में मुख्यमन्त्री को बतौर मुख्य अतिथि होना प्रचारित किया गया था। जब सरकार अधिकारिक तौर पर खली के शो को आर्थिक सहायता देने का प्रयास कर रही थी और शीर्ष प्रशासन वरिष्ठ अधिकारियों से बैठकें करके आयोजन को सफल बनाने में लग गया था तथा पूरा मामला मन्त्रीमण्डल की बैठक तक पंहुचा दिया गया। लेकिन मन्त्रीमण्डल इस पर फैसला नही ले पाया। सरकार शो के लिये कभी हां तो कभी न की दुविधा में फस गयी थी इसी बीच सरकार के अनिर्णय और प्रयासों पर कांग्रेस विधायक दल के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने पूरे दस्तावेजी प्रमाणों के साथ ऊना में पत्रकार वार्ता करके सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। मुकेश अग्निहोत्री की पत्रकार वार्ता के बाद खली और सरकार के लिये यह आयोजन करवाना प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया। खली ने
5000 ka cheque dana e in c ka kam hai
खली के आयोजन तक सरकार के पास इतना पर्याप्त समय था कि वह इसके लिये खेल नियमों में संशोधन कर सकती थी। मल्लयुद्ध देश की संस्कृति का हिस्सा रहे हैं और राज्याश्रित थे। आज प्रदेश के गांव -गांव में होने वाली छिंज इसी का अपभ्रंश रूप है। इस सबको एक बड़े फलक पर लाकर एक बड़ा रूप दिया जा सकता था। लेकिन इस दिशा में एकदम वैचारिक शून्यता का ही परिचय दिया गया। इसी तरह की वैचारिकता जंजैहली प्रकरण में सामने आयी। अब मण्डी के बल्ह क्षेत्र में प्रस्तावित एयर पोर्ट पर जिस तरह का शेष बल्ह के निवासियों के सामने आया है वह भी इसी दिशा में संकेत करता है। सेवानिवृत अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन को स्टडी लीव दिया जाना एकदम अपराध की श्रेणी में आता है। एचपीसीए के प्रकरण में भी सरकार की नीयत और नीति पर सवाल उठने जैसी स्थिति बन गयी है। इस मामले का मूल पक्ष कि एच पी सी ए सोसायटी है या कंपनी आरसीएस के पास पिछले पांच वर्षों से लंबित चला आ रहा है। अब आरसीएस के पास 20 जुलाई को पेशी लगी है। यहां डा. अजय शर्मा को आरसीएस लगाकर ऐसी कानूनी दुविधा में खड़ा कर दिया गया है कि इस मामले की सुनवाई करना उनके लिये संभव नही होगा। वहां फिर अगली पेशी लगना ही विकल्प बचता है और इस तरह न चाहते हुए भी लम्बे समय तक यह मामला और लटक जायेगा। ऐसे और भी कई मामले ऐसे हैं जहां सरकार की स्थिति हास्यास्पद हो जाती है।
इस समय प्रदेश के प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में प्रशासनिक सदस्यों के दोनों पद लम्बे अरसे से खाली चले आ रहे हैं लेकिन इन पदों को भरने में सरकार की ओर से कोई ठोस प्रयास नही किये जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि यह सरकार की प्राथमिकता का विषय ही नही रह गया है। कर्मचारी न्याय के लिये परेशान हो रहे हैं बल्कि इस कदर रोष उभर रहा है कि यदि सरकार ट्रिब्यूनल के पक्ष में नही हैं तो इसे बन्द करके कर्मचारियों के मामले फिर से उच्च न्यायालय को ही भेज दिये जायें। यह मांग कभी भी उठ सकती है। इन सारे मामलों का लोकसभा चुनावों पर असर पडेगा यह तय है।