शिमला/शैल। एचपीसीए के खिलाफ दर्ज मामलों को राजनीति से प्रेरित करार दे रही है और इसी आधार पर इन्हे वापिस लेने की बात कर रही है। इस कड़ी के इस प्रकरण में नामज़द दो अधिकारियों दीपक सनान और अजय शर्मा के खिलाफ मुकद्दमा वापिस लेने की अनुमति भी दी जा रही है। संयोगवश एचपीसीए का एक मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी लंबित चल रहा है। स्मरणीय है कि जब वीरभद्र सरकार ने एचपीसीए की लीज़ कैन्सिल करके आधी रात को एचपीसीए की संपत्तियों पर कब्जा कर लिया था। उस समय एचपीसीए ने सरकार के इस कदम को अदालत में चुनौती दी थी और इसमे वीरभद्र सिंह को व्यक्तिगत तौर पर नामित कर दिया था। उस समय एचपीसीए को सर्वोच्च न्यायालय तक जाना पड़ा था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर प्रदेश उच्च न्यायालय को एचपीसीए की याचिकाओं पर पुनः विचार करने तथा इन्हे अपना पक्ष रखने का मौका देने की बात कही थी। एचपीसीए ने उच्च न्यायालय में रजिस्ट्रार कोआपरेटिव सोसायटीज़ आरडी नजी़म को भी व्यक्तिगत तौर पर पार्टी बनाने की गुहार लगायी थी। इस तरह सरकार ने अदालत में चल रही कारवाई के दौरान ही लीज़ रद्द करने का फैसला वापिस ले लिया था। इससे एचपीसीए की अपनी संपत्तियां तो वापिस मिल गयी लेकिन वीरभद्र सिंह का नाम प्रतिवादियों की सूची में आज तक चलता आ रहा है।
अब जब वीरभद्र सिंह व्यक्तिगत तौर पर इसमें प्रतिवादी चल रहे हैं तब उनके पास इस मामले में अपना पक्ष रखने का हक हासिल हो जाता है। सर्वोच्च न्यायालय कई मामलों में यह स्पश्ट कह चुका है कि एक बार मुकद्दमा चलाने के लिये दी गयी अनुमति पर न तो पुनः विचार किया जा सकता है और न ही उसे वापिस लिया जा सकता है। इस समय यह पूरा मामला सर्वोच्च न्यायालय में एक ऐसे मोड़ उपर पहुंचा हुआ है कि यदि इसमें वीरभद्र सही में गंभीरता दिखायेंगे तो इसका फैसला गुणदोष के आधार पर होकर ही रहेगा क्योंकि इस मामले के चालान में जो तथ्य रिकार्ड पर आ चुके हैं उन्हे नज़रअन्दाज कर पाना आसान नही होगा।
स्मरणीय है कि एचपीसीए को वर्ष 2002 में 49118.25 वर्ग मीटर भूमि लीज़ पर दी गयी थी। उसके बाद 2009 में 3.28 हैक्टेयर ज़मीन लीज़ पर गयी। लेकिन 1993 और 1998 के लीज़ रूल्ज़ के तहत किसी भी खेल संघ को दो वीघा से अधिक ज़मीन देने का कोई प्रावधान ही नही था। लीज़ रूल्ज़ में 2012 में संशोधन किया गया और इसमें ज़मीन देने की कोई सीमा तय नही की गयी। यह नियम सचिव स्तर पर ही मन्त्री परिषद् की अनुमति के बिना ही संशोधित कर दिये गये। इस संशोधन को भी कानून विभाग ने अनुमोदित नही किया था क्योंकि 28.1.11 को सर्वोच्च न्यायालय ने जगपाल सिंह बनाम स्टेट आॅफ पंजाब में कामन लैण्ड के आंवटन पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देश जारी किये हैं और उन्हे समय - समय पर इस संद्धर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को सूचित रखने को भी कहा है। फिर यदि 2012 के संशोधन को सही भी मान लिया जाये तो भी उसे 2002 और 2009 से लागू नही किया जा सकता।
इसी तरह चालान में एक यह भी आरोप है कि मन्त्री परिषद् ने एचपीसीए को ज़मीन अपनी 27.5.2002 की बैठक में दे दी। लेकिन यह ज़मीन लीज़ पर लेेने के लिये आवेदन 1.6.2002 को आया। लीज़ एक रूपये पर दी गयी जबकि रेट के लिये एचपीसीए की ओर से कोई आवेदन ही नही आया। इसलिये आज वीरभद्र सिंह के पास यह सारे तथ्य नये सिरे से अदालत के सामने लाने का मौका है। सर्वोच्च न्यायालय में वीरभद्र की ओर से पी चिदाम्बरम और अनुप जाॅर्ज के पेश होने की संभावना है। इसी के साथ यह भी महत्वपूर्ण होगा कि यदि विजिलैन्स ने अपनी ओर सेे ही बिना साक्ष्यों के इतना बड़ा झूठा मामला खड़ा कर दिया है तो उनके खिलाफ भी सरकार और अदालत को कड़ा संज्ञान लेना पड़ेगा।