शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में जय राम ठाकुर सरकार के 6 महीनों का कार्यकाल असफलताओं से परिपूर्ण रहा और प्रदेश की जनता को महज निराशा ही हाथ लगी है। सरकार का सारा समय अपने को स्थापित करने के प्रयासों में ही निकल रहा है और प्रदेश में हर तरफ अराजकता का माहौल बन रहा है। जहां यह सरकार प्रदेश में कानून-व्यवस्था स्थापित करने में नाकाम रही है, वहीं यह सरकार वित्तीय कुप्रबंधन का शिकार हो रही है। वर्तमान सरकार अपने चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वायदों को पूरा करने से पीछे हट रही है और खासतौर पर बेरोजगारी दूर करने के लिए कोई भी ठोस नीति या कार्यक्रम बनाने में यह सरकार असफल रही है। सरकार का अभी तक का समय केवल जश्न मनाने, प्रशासनिक तबादलों और दौरों में ही बीत गया है।
मुख्यमंत्री प्रदेश के विकास को लेकर गंभीर नहीं लगते इसलिए प्रदेश में सत्ता के कई केंद्र बन गए हैं। हारे-नकारे लोग अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अधिकारियों/कर्मचारियों पर अनुचित दबाव डाल रहे हैं। मुख्यमंत्री पूरी तरह से RSS और ABVP के प्रभाव में काम कर रहे हैं, नतीजन प्रशासनिक अमला पटरी से उतर गया है।
हिमाचल प्रदेश में सबसे बड़ा मसला कानून-व्यवस्था का है। गत 6 महीनों में प्रदेश में आए दिन हत्याएं और बलात्कार हो रहे हैं जिससे यह देवभूमि शर्मसार हुई है। प्रदेश में 100 से अधिक बलात्कार और 35 के करीब हत्याएं इस दौरान हो चुकी हैं। इतने अल्प समय में यह आंकड़ा अपने आप में गंभीर चिंता का विषय है। और मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि इन घटनाओं से बहुत कुछ सीखने को मिला है, यह अपने आप में हास्यास्पद टिप्पणी है। कसौली में दिन-दिहाड़े एक अधिकारी एवं कर्मचारी की गोली मार कर हत्या कर दी जाती है और पूरा प्रशासन त्वरित कार्रवाई करने की बजाय मूक दर्शक बनकर इस घटना को देखता रह गया। यह भी सरकार की असफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। पहले भाजपा शोर मचाती थी कि कांग्रेस शासन में माफिया सक्रिय है लेकिन प्रदेश में हर तरह का माफिया सरकार के संरक्षण में दनदना रहा है। यह 6 महीने का समय महज जश्न और घोषणाओं का समय ही रहा और इन 6 महीनों में सरकार विकास के नाम पर एक ईंट भी नहीं लगा सकी।
आर्थिक मोर्चे पर सरकार पूरी तरह से पिट गई है। केंद्र में भाजपा की सरकार सत्तासीन होने के बावजूद और मुख्यमंत्री के 6 महीनों में दर्जनों दिल्ली के दौरे लगभग सभी केंद्रीय मंत्रियों के दरवाजों पर दस्तक दे चुके हैं परंतु इसके बावजूद भी आर्थिक पैकेज लाने में नाकाम रहे हैं। मुख्यमंत्री यह दलील दे रहे हैं कि हिमाचल प्रदेश को कर्जे की बैसाखियों से बाहर निकालना मुश्किल है और खुद सरकार अब तक लगभग 3 हजार करोड़ रुपये का कर्जा लेकर काम चला रही है।
प्रदेश की राजधानी और अंतराष्ट्रीय पर्यटन स्थल शिमला में लोगों को पीने-का-पानी मुहैया करवाने में भी आपातकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई। जहां इससे पर्यटन के क्षेत्र में नुकसान हुआ वहीं अंतराष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल प्रदेश की साख को भी बट्टा लगा है। ऐसा किसी भी प्रदेश में नहीं हुआ होगा कि मुख्य न्यायाधीश को स्वयं आधी रात को पानी की सप्लाई सुचारु रूप से चलाने के लिए स्कीमों का निरीक्षण और व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए बाहर निकलना पड़ा हो। ऐसा प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ है।
मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष करते हुए लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले बनाए गए। इस दौरान प्रदेश में प्रशासनिक अराजकता का माहौल खड़ा हो गया और हजारों कर्मचारियों के तबादले राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से किए गए। यहां तक की प्रदेश में बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए पूरा-पूरा कॉडर का ही अब तक स्थानांतरण हो चुका है। एक ही अधिकारी का तबादला कई दफा करके अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा को पूरा किया जा रहा है। प्रदेश सरकार RSS के प्रभाव में काम कर रही है और इस समय सत्ता के कई केंद्र स्थापित हो चुके हैं, जिससे अफसरशाही भी परेशानी के आलम में है। सत्ता में RSS और ABVP का बोलबाला है और ये लोग तांडव मचाए हुए हैं।
नेशनल हाईवे के नाम पर भी राज्य की जनता से धोखा हुआ है। केंद्र सरकार के द्वारा राज्य में नेशनल हाईवे के लिए करोड़ों रुपये की घोषणा की गई है परंतु अभी तक फूटी-कौड़ी भी प्रदेश को प्राप्त नहीं हुई। यह स्वयं एक प्रश्न है और इसके लिए कौन जिम्मेवार है? प्रदेश में आए दिन सड़क दुर्घटनाएं हो रही है जोकि चिंता का विषय है। इन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए वर्तमान सरकार गंभीर नजर नहीं आ रही क्येंकि सरकार के द्वारा अभी तक कोई भी ठोस नीति इस दिशा में नहीं बनाई गई है।
प्रदेश में सबसे बड़ा वायदा पिछले चुनावों के दौरान किया गया था कि सरकार बेरोजगारी को दूर करेगी। आज सरकार ने बेरोजगारी को दूर करने के लिए कोई भी पुख्ता कार्यक्रम नहीं बनाया है और यह मात्र कोरी घोषणा ही साबित हुई है। आज प्रदेश का बेरोजगार अपने आप को ठगा-सा महसूस कर रहा है। सरकार बेरोजगारों से पीछा छुड़ाने का प्रयास कर रही है और युवाओं को नौकरी देने की बजाये उन्हें दुकानें आदि स्थापित करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जोकि प्रदेश की युवा पीढ़ी के साथ एक भद्दा मजाक है। युवाओं को रोजगार का छलावा देने वाली भाजपा विपक्ष में रहते हुए पूरे पांच वर्ष रिटायर्ड और टायर्ड का रोना रोती रही है। आज आलम यह है कि भाजपा सरकार खुद रिटायर्ड टीचर्ज को पुनर्नियुक्ति देने की बात कर रही है। जोकि प्रदेश के डिग्रीधारक बेराजगार युवाओं के साथ धोखा है।
RUSSA को समाप्त करने की घोषणा से भी सरकार पीछे हट रही है। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। मौजूदा नेतृत्व प्रदेश को प्रगति और विकास की राह पर ले जाने में पूर्णतः असफल साबित हुआ है।