Friday, 19 September 2025
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जब सरकार 12000 करोड़ खर्च ही नहीं कर पायी है तो उसे कर्ज लेने की आवश्यकता क्यों पड़ी

हर महीने कर्मचारियों से एक-एक दिन का वेतन क्यों लिया
जी पी एफ पर ब्याज दर क्यों घटाई
 विधायक क्षेत्र विकास निधि स्थगित क्यों की
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने दावा किया है कि उसके पास बारह हज़ार करोड़ रूपया ऐसा है जिसे सरकार खर्च ही नही कर पायी है। बल्कि जलशक्ति मन्त्री महेन्द्र सिंह ने तो मण्डी में एक पत्रकार वार्ता में यहां तक कहा है कि यह राशी बारह हजार करोड़ से भी ज्यादा हो सकती है। उन्होनें यह भी खुलासा किया है कि ऐसा पैसा जो खर्च ही नही किया गया है वह सबसे ज्यादा लोक निर्माण विभाग और ग्रामीण विकास विभागों के पास है। सरकार का यह स्वीकार एक बहुत बड़ा ब्यान है। इस ब्यान की प्रासंगिकता उस समय और भी बढ़ जाती है जब प्रदेश सरकार को एक मीडिया हाऊस से बेस्ट परफारमर का अवार्ड भी मिल चुका है। इस सरकार को सत्ता में आये अढ़ाई वर्ष हो चुके हैं और तीन बजट पेश कर चुकी है। सरकार ने हर वर्ष कर्ज उठाया है। आज कर्ज के चक्रव्यूह की स्थिति यह है कि इस कर्ज का ब्याज अदा करने के लिये भी कर्ज लेना पड़ रहा है। अब जब कोरोना के कारण प्रदेश में कफ्रर्यू लगाना पड़ा और सारी आर्थिक गतिविधियों पर विराम लग गया तब सरकार को संसाधन जुटाने के लिये हर माह कर्मचारियों से एक-एक दिन का वेतन दान में लेना पड़ा है। विधायकों, मन्त्रीयों के वेतन भत्तों में 30% की कटौती करनी पड़ी है। विधायक क्षेत्र विकास निधि स्थगित करनी पड़ी है। यही नही अब कर्मचारियों के जीपीएफ पर करीब 1% ब्याज दर घटानी पड़ी है।
जयराम सरकार को दो वर्षों में केन्द्र से कुल मिलाकर 38018 करोड़ रूपया मिला है। यह जानकारी इस वर्ष के बजट सत्र में विधायक विक्रमादित्य के एक सवाल के जवाब में आयी है। इस परिप्रेक्ष में सरकार के वित्तिय प्रबन्धन की प्रक्रिया को समझना बहुत आवश्यक हो जाता है। क्योंकि यदि कोई सरकार अपने धन को खर्च ही न कर पाये और उसके बाद भी कर्ज लेती रही तथा कर्मचारियों से भी एक-एक दिन का वेतन ले ले और जीपीएफ पर ब्याज दर घटा दे तो यह सरकार की असफलता और उसमें फैली अराजकता का सबसे बड़ा प्रमाण बन जाता है। क्योंकि उसको यह पता भी तीसरा बजट पेश करने के भी तीन माह बाद चल रहा है। सरकार ने यह खुलासा नही किया है कि यह बिना खर्च किया पड़ा पैसा किस काल का है। क्या यह वीरभद्र सरकार के समय से पड़ा हुआ पैसा है या फिर इसी सरकार के समय का है। यह पैसा किसी भी काल का रहा हो अपने में एक बड़ा अपराध है क्योंकि आप पैसा होते हुए भी प्रदेश की जनता पर कर्ज का बोझ डाल रहे थे। फिर इस अपराध के लिये अभी तक किसी को भी दण्डित न किया जाना और भी गंभीर हो जाता है।
सरकार के वित्तिय प्रबन्धन की जिम्मेदारी सरकार के वित्त और योजना विभाग की होती है। इसी जिम्मेदारी के कारण सरकार के हर विभाग को हर कार्य के लिये जहां प्रशासनिक अनुमति की आवश्यकता होती है वहीं पर वित्त विभाग से वित्तिय स्वीकृति लेना भी अनिवार्य होती है। सारे सार्वजनिक उपक्रमों के बोर्डो की बैठकों में भी वित्त विभाग का प्रतिनिधि इसी कारण से उपस्थित रहता है।
इतनी प्रबन्धकीय प्रक्रिया के बाद एजी आफिस की जिम्मेदारी आती है और इसके तहत विभागों में आन्तरिक आडिट और सार्वजनिक उपक्रमों में सीए की तैनाती की व्यवस्था रहती है। अन्त में आडिटर जनरल हर वर्ष सरकार के वित्तिय प्रबन्धन का आडिट करता है। इस आडिट के बाद इसकी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी जाती है और राज्यपाल सुनिश्चित करते हैं कि यह रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर भी चर्चा के लिये रखी जाये। फिर इसके बाद सदन की लोक लेखा समीति कैग रिपोर्ट पर अगली कारवाई सुनिश्चित करती है। यदि कोई पैसा इतनी विस्तृत जांच पड़ताल के बाद भी नज़रअन्दाज रह जाये तो यह एक बड़ा सवाल बन जाता है। क्योंकि जिस तरह से सरकार ने इस पैसे का रहस्य उद्घाटन किया है उससे यही संदेश उभरता है कि इस पैसे की किसी को जानकारी ही नही थी और अचानक सरकार के सामने यह सच प्रकट हुआ है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि जब कैग की रिपोर्ट तैयार होती है तो उसमें यह विभाग दर्ज रहता है कि उसे कितने पैसे का आवंटन हुआ था और क्या उसी आवंटन में उसका काम निपट या उसे और पैसा लेना पड़ा या उसके पास पैसा बच गया जो उसने सरण्डर कर दिया। फिर हर खर्च किये हुए पैसे का उपयोगिता प्रमाणपत्र सौंपना होता है। कैग रिपोर्ट में यह दर्ज रहता है कितने उपयोगिता प्रमाणपत्र विभागों को सौंपना होता है। कैग रिपोर्ट में यह दर्ज रहता है कितने उपयोगिता प्रमाणपत्र विभागों से आ चुके हैं। कितने लंबित है और कितने ऐसे हैं जो ओवरडयू हो चुके हैं। इस तरह कैग में दर्ज सरण्डर रिपोर्ट और उपयोगिता प्रमाणपत्रों की रिपोर्ट से सरकार के वित्तिय प्रबन्धन की सारी तस्वीर सामने आ जाती है। अभी तक कैग की रिपोर्ट 31 मार्च 2018 तक के वित्तिय वर्ष की ही आयी है। जयराम सरकार के कार्यकाल की अभी तक कोई रिपोर्ट नही आयी है। 31 मार्च 2018 तक की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017-18 में 1,92,603.26 लाख के कुल प्रावधान में से 1,53,909.11 लाख सरण्डर किया गया था। इसी तरह कुछ विभागों में वर्ष 2010-11 के उपयोगिता प्रमाणपत्र अभी तक नही आये। वर्ष 2017-18 तक 531740.33 लाख के उपयोगिता प्रमाणपत्र लंबित हैं और 27,99,73.86 लाख के आऊटस्टैण्डिंग हो चुके हैं। लेकिन सारे उपयोगिता प्रमाणपत्र और सरण्डर का सारा पैसा जोड़ दिया जाये तो यह बारह हज़ार करोड़ नही होता है।  इस परिदृश्य में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि फिर यह बारह करोड़ रूपया कौन सा है जो आज तक खर्च ही नही हो पाया है। 31 मार्च 2018 तक की कैग रिपोर्ट आ चुकी है और उसके मुताबिक इतना पैसा सरण्डर तथा लंबित उपयोगिता प्रमाण पत्रों का नही बनता है। ऐसे में या तो इतने पैसे के फर्जी उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी कर दिये गये हैं और वास्तव में पैसा खर्च ही नही हुआ है। इस स्थिति में यह एक गंभीर अपराध बन जाता है जिसकी जांच होना  आवश्यक हैं या फिर यह पैसा इसी  सरकार के कार्यकाल का है जिसे सरकार खर्च नहीं पायी है। इस सरकार के कार्यकाल की कैग रिपोर्ट अभी तक आयी नहीं है और जब तक ये रिपोर्ट न आ जाये तब तक यह कहना आसान नहीं होगा कि वास्तविक स्थिति क्या है
 वैसे चर्चा है कि सरकार ने सभी विभागों से यह पूछा था कि उन्हे पिछले बीस वर्षों में कितना-कितना पैसा मिला है और उसमें से वह कितना खर्च कर चुके हैं। इसी के साथ यह भी पूछा गया था कि उनका एकाऊंट किस किस बैंक में है और उनमें कितना पैसा है। यह सूचना तैयार करते हुए यह सामने आया कि जिन विभागों के पास दूसरे विभाग का डिपाॅजिट वर्क आता है तब उस काम के लिये आवंटित धन भी साथ ही दे दिया जाता है। लेकिन जब व्यहारिक रूप से काम शुरू किया जाता है तब यह सामने आता है कि उसमें आवश्यक कुछ अनुमतियां अभी तक नही मिल पायी हैं और इस कारण से संबंधित कार्य वहीं पर रूक जाता है और उसके लिये आवंटित धन खर्च नही हो पाता है। संभव है कि यह बारह हजार करोड़ वैसा ही पैसा हो। लेकिन इसमें अब यह सवाल आयेगा कि क्या इस पैसे को कहीं और खर्चा जा सकता है। जिन कार्यो के लिये मूलतःयह पैसा आया था क्या सरकार उन कार्यों का अब बन्द कर पायेगी।

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