शिमला/शैल। हिमाचल में जयराम ठाकुर की सरकार ने पूरी तरह से काम संभाल लिया है। मन्त्रिमण्डल की दो बैठकें भी हो चुकी है। धर्मशाला में नई विधानसभा का पहला सत्र होने जा रहा है। इस सत्र में विधानसभा का नया अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी चुन लिया जायेगा। राज्यपाल सत्र को संबोधित भी करेंगे और उनके संबोधन से भी काफी कुछ संकेत मिले जायंेगे कि उनकी सरकार आगे किस तरह से काम करने जा रही है। मुख्यमन्त्री ने प्रशासनिक फेरबदल को भी अजांम दे दिया है। इस तरह नयी सरकार को अपना काम सुचारू रूप से चलाने के लिये प्रशासनिक स्तर पर जो कुछ वांच्छित था उसे पूरा कर लिया गया है। 44 सीटें जीतकर यह सरकार सत्ता में आयी है। इसलिये राजनीतिक स्तर पर उसेे किसी तरह का कोई खतरा नही है। अब सरकार का कामकाज ही जनता में उसकी छवि का आंकलन करने का आधार बनेगा।
लेकिन अभी पूर्व मुख्यमन्त्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल ने एक ब्यान जारी करके स्पष्टीकरण दिया है कि आरएसएस उनकी हार के लिये कतई भी जिम्मेदार नही है। उन्होने संघ/भाजपा के प्रति आभार व्यक्त किया है कि आज उन्हें जो भी मान सम्मान मिला है वह केवल संघ/भाजपा के कारण ही है। धूमल ने जोर देकर कहा है कि संघ तो सदैव राष्ट्रनिमार्ण के कार्य में संलग्न रहा है। राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में धूमल के इस स्पष्टीकरण के कई अर्थ निकाले ज रहें है। यह अर्थ क्यों निकाले जा रहे हैं और यह चर्चा क्यों और कैसे उठी कि संघ कुछ लोगों की हार के लिये जिम्मेदार है। भाजपा की इस बड़ी चुनावी जीत के बाद संघ के हवाले से मीडिया में यह रिपोर्ट आयी कि इन चुनावों में संघ के तीस हजार कार्यकर्ता सक्रिय रूप सेे चुनाव के कार्य में लगे हुए थे। आज प्रदेश का कोई भी विधानसभा क्षेत्र ऐसा नही है जहां संघ की शाखाएं न लगती हों। संघ परिवार की हर इकाई विधानसभा क्षेत्रवार स्थापित है इस दृष्टि से चुनावों में संघ कार्यकर्ताओं की सक्रिय भूमिका होने के दावे को नकारा नही जा सकता है। इस परिदृश्य में यह प्रश्न हर राजनीतिक कार्यकर्ता के सामने खड़ा होता ही है कि इतनी बड़ी जीत में भाजपा के यह बड़े नेता कैसे अपने क्षेत्रों में हार गये? भाजपा के जो भी बेड़े नेता हारे हैं क्या उनके क्षेत्रों में संघ के चुनावी कार्यकर्ताओं की सक्रियता कम थी या उन क्षेत्रों से इन कार्यकर्ताओं को हटा ही लिया गया था। भाजपा बड़े नेताओं की हार के कारणों का आंकलन क्या करती है इसका खुलासा तो आने वाले समय में ही होगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि इन बडे नेताओं की हार के बाद पार्टी के आन्तरिक समीकरणों में काफी बदलाव आये हैं। यह बदलाव आने वाले लोकसभा चुनावों में क्या प्रभाव दिखाते हैं यह तो चुनावों में ही पता लगेगा। परन्तु यह तो स्पष्ट है कि यदि यह बड़े नेता अपने -अपने कारणों से चुनाव हारे हैं तो फिर इनके स्थान पर नये नेताओं का चयन पार्टी को अभी से करने की आवश्यकता होगी क्योंकि इस हार से हमीरपुर, ऊना और बिलासपुुर में काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जिसका असर हमीरपुर लोकसभा सीट पर भी पड़ सकता है।
पार्टी अभी से 2019 के लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुट गयी है। इसके लिये मिशन मोदी 2019 के नाम से एक मंच का भी गठन हो चुका है। 24-11-17 को शिमला के होटल हिमलैण्ड ईस्ट में हुई बैठक में इसकी 25 सदस्यीय प्रदेश ईकाई का भी गठन कर दिया गया है। इस गठन के मौके पर नागपुर स्थित संघ मुख्यालय के प्रतिनिधियों सहित देश के अन्य भागों से भी नेता शामिल रहे हैं। मिशन मोदी 2019 को मोदी सरकार की नीतियों और उसके बडे फैसलों की मार्किटिंग की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। यह मिशन प्रदेश के हर भाग में इन फैसलों और नीतियों को जनता तक ले जाने के लिये बैठकों और सैमिनारों का आयोजन करेगा। जहां पार्टी 2019 के लोकसभा चुनावों के लिये अभी से इतनी सतर्क और सक्रिय हो गयी है वहीं पर धूमल जैसे बड़े नेता को इस तरह से स्पष्टीकरण देने पर आना इन सारी तैयारीयों के लिये एक गंभीर सवाल भी खड़ा कर जाता है जबकि यह मिशन इसपर भी जन मानस को टटोलेगा कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने के बारे में आम आदमी की राय क्या रहती है। क्योंकि एक समय तक तो यह दोनो चुनाव एक साथ होते ही रहे हैं। यदि आम आदमी की राय का बहुमत दोनो चुनाव एक साथ करवाने की ओर होता है तो हो सकता हैं कि मोदी सरकार इस आश्य का संसद में संशोधन लाकर यह बड़ा फैसला ले ले। यह फैसला जो भी रहेगा वह तो आने वाले समय में सामने आ ही जायेगा लेकिन इस परिदृश्य में धूमल के स्पष्टीकरण के राजनीतिक मायने और गंभीर हो जाते हैं।