जी एस टी राहत के बाद...

Created on Wednesday, 15 November 2017 10:44
Written by Shail Samachar

जीएसटी परिषद् ने 177 वस्तुओं को 28% के दायरे से बाहर करके 18% के दायरे में ला दिया है। यह फैसला अभी 15 नवम्बर से ही लागू हो जायेगा और इससे इन वस्तुओं की कीमतों में कमी आयेगी यह माना जा रहा है। जीएसटी जब से लागू हुआ था तभी से व्यापारियों का एक बड़ा वर्ग इसका विरोध कर रहा था। व्यापारी इस कारण विरोध कर रहे थे कि इससे कर अदा करने में प्रक्रिया संबधी सरलता के जो दावे किये जा रहे थे वह वास्तव में सही नही उतरे। लेकिन व्यापारी के साथ ही आम आदमी भी उपभोक्ता के रूप में इससे परेशान हो उठा  क्योंकि खरीददारी के बाद कुल बिल पर जब जीएसटी के नाम पर कर वसूला जाने लगा तो उसे इस जीएसटी के कारण मंहगाई होने का अहसास हुआ। इससे पहले भी वह यही खरीददारी करता था परन्तु उस समय उसे जीएसटी के नाम से अलग अदायगी नही करनी पड़ती थी आज जब जीएसटी अलग से बिल में जुड़ता है तब वह इसका विरोध नही कर पाता है। जीएसटी को लेकर जब लोगों में नाराज़गी उभरी तब इस पर भाजपा के ही पूर्व वित्त मन्त्री रहे यशवंत सिन्हा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा, पूर्व मन्त्री अरूणी शौरी जैसे बड़े नेताओं के विरोधी स्वर भी उभर कर सामने आ गये। राहुल गांधी ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स की संज्ञा दे दी। हिमाचल के चुनाव प्रचार अभियान में जब भाजपा के केन्द्रिय नेता प्रदेश में आयेे और पत्रकार वार्ताओं के माध्यम से मीडिया से रूबरू हुए तब उन्हे जीएसटी पर भी सवालों का समाना करना पड़ा। जीएसटी पर उठे सवालों के जवाब में भाजपा नेताओं का पहली बार यह स्टैण्ड सामने आया कि इसके लियेे मोदी सरकार नही बल्कि जीएसटी काऊंसिल जिम्मेदार है। भाजपा नेताओं ने इसके लिये कांग्रेस को भी बराबर का जिम्मेदार कहा और सवाल किया कि इसे वीरभद्र सरकार ने अपने विधानसभा में क्यों पारित किया?
जीएसटी नोटबन्दी के बाद दूसरा बड़ा आर्थिक फैंसला मोदी सरकार का रहा है। नोटबंदी को लागू हुए पूरा एक वर्ष हो गया है। विपक्ष ने 8 नवम्बर 2016 को काले दिवस के रूप में स्मरण किया है। पूर्व प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को आर्थिक आतंक करार दिया है। नोटबंदी को लेकर मनमोहन सिंह ने जो चिन्ताएं देश के सामने रखी थी वह सब सही साबित हुई है। नोटबंदी के बाद आर्थिक विकास दर में 2% की कमी आयी है इसे रिजर्व बैंक ने भी स्वीकार कर लिया है। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में पहले ही मोदी को नेता घोषित कर दिया था। लोकसभा का चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया था। 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व स्वामी राम देव और अन्ना आन्दोलनों के माध्यम से देश के भीतर भ्रष्टाचार और कालेधन को लेकर जो तस्वीर सामने रखी गयी थी वह एकदम भयानक और गंभीर थी। देश का आम आदमी उस स्थिति से छुटकारा पाना चाहता था। चुनावांे में उसे भरोसा दिलाया गया था कि मोदी की सरकार बनने से अच्छे दिन आयेंगे। इस भरोसे पर विश्वास करके ही जनता ने मोदी के नेतृत्व में भाजपा को प्रचण्ड बहुमत दिलाकर सत्तासीन किया। लेकिन सरकार बनने के आज चैथे साल भी वह अच्छे दिनों का वायदा पूरा नही हो पाया है। आम आदमी के लिये अच्छे दिनों का पहला मानक मंहगाई होती है। मंहगाई के मुहाने पर मोदी सरकार बुरी तरह असफल रही है आज आम कहा जा रहा है कि कांग्रेस के शासनकाल में मंहगाई की स्थिति यह नही थी। आज रसोई गैस की कीमत यूपीए शासन के मुकाबलेे में दोगुनी हो गयी है। पेट्रोल डीजल और सारे खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी वृद्धि आम आदमी के सामने है। बेरोजगारी कम होने की बजाये नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैंसले से और बढ़ी है।
कालेधन और भ्रष्टाचार के जो आंकड़े 2014 के लोकसभा चुनावों से पूर्व देश के सामने थे वह आज भी वैसे ही खड़े है। मोदी और उनके सहयोगी जो यह दावा करते आ रहे थे कि उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार का कोई बड़ा काण्ड सामने नही आया है। उनका यह दावा आज अमितशाह और अजित डोभल के बेटों पर लगे आरोपों से एकदम बेमानी हो जाता है। जिन बानामा पेपर्ज में नाम आने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ वहां के सुप्रीम कोर्ट का फैंसला आने के बाद पद से भी हटाये जा चुके हैं। वहीं पर भारत सरकार उन पेपर्ज में जिन लोगों के नाम आये हैं उनकेे खिलाफ कोई मामला तक दर्ज नहीं कर पायी है। अब पैराडाईज़ पेपरज़ में तोे मोदी के मन्त्राी और एक राज्य सभा सांसद तक का नाम आ गया है। लेकिन इसपर भी कोई कारवाई नही होगी यह माना जा रहा है। क्योंकि जिस लोकपाल के गठन को लेकर अन्ना का इतना बड़ा आन्दोलन यह देश देख चुका है आज मोदी सरकार इतनेे बड़े बहुमत के बाद भी उस मुद्दे पर पूरी तरह चुप्प बैठी हुई है। इसी से सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ ईनामदारी और नीयत का पता चल जाता है। यही कारण है कि काॅमन वैल्थ गेम्ज़ और 2 जी जैसे मामलों पर चार वर्षों में कोई एफआईआर तक दर्ज नही हो पायी है।
आज जब जीएसटी पर सरकार ने नये सिरे से विचार करके 177 आईटमो को 28% से बाहर करने का फैंसला लिया है भले ही यह फैंसला गुजरात चुनावों के कारण लिया गया है। फिर भी यह स्वागत योग्य है इसी तर्ज में अब सरकार को चाहिये कि नोटबंदी के बाद कैश लैस और डिजिटल होने के फैसलों को ठण्डे बस्ते में डालकर काॅरपोरेट सैक्टर पर नकेल डालनेे का प्रयास करें। इस सैक्टर के पास जो कर्ज एनपीए के रूप में फंसा हुआ है उसे वसूलने में गंभीरता दिखायेे अन्यथा हालात आने वाले दिनों में सरकार के कन्ट्रोल से बाहर हो जायेगा यह तय है।