घोषणा पत्रों की विश्वसनीयता

Created on Monday, 06 November 2017 07:50
Written by Shail Samachar

प्रदेश विधानसभा के लिये नौ नवम्बर को मतदान होगा। इस बार यह मुकाबला प्रदेश के दो बड़े राजनीतिक दलों के बीच ही होने जा रहा है क्योंकि राजनीतिक विकल्प के रूप में कोई तीसरा दल चुनाव मैदान में उपलब्ध नहीं है। दोेनों  राजनीतिक दलों के प्रत्याशीयों  के अतिरिक्त भी 212 उम्मीदवार बतौर आज़ाद या कुछ छुटपुट दलों के नाम पर उपलब्ध हैं लेकिन इन्हें एक कारगर विकल्प के रूप में नही लिया जा सकता। फिर निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका चुनाव जीतने के बाद क्या रहती है यह हम पिछले चुनाव के बाद देख चुके हैं। इन लोगो ने कैसे सत्ता के साथ जाने का खेल खेला और फिर अन्त में भाजपा की ओर आ गये। इनके दलबदल कानून के तहत कारवाई किये जाने की याचिका विधानसभा अध्यक्ष के पास भाजपा ने दायर की थी जिस पर आज तक कोई फैसला नही आया है और यह फैसला आने के लिये अन्त में भाजपा ने भी कोई प्रयास नही किया क्योंकि यह लोग पासा बदलकर उसी में शामिल हो गये थे। हमारे विधानसभा अध्यक्ष की राजनीतिक नैतिकता ने उन्हे फैसला करने नही दिया। ऐसे में निर्दलीयों पर कितना और क्या भरोसा किया जा सकता है इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
इसलिये चयन दोेनों  ही बडे़ दलों में से ही किया जाना है यह राजनीतिक विवश्ता है। यह ठीक है कि मतदाता के पास नोटा के अधिकार का विकल्प है परन्तु इस विकल्प का प्रयोग करने केे बाद भी यह स्थिति उभरने की स्थिति नही है कि मतदाताओं का बहुमत नोटा को मिल जाये और चुनाव रद्द होकर नये सिरे से चुनाव करवाने की स्थिति आ जाये। इसलिये नोटा का विकल्प भी कोई सही नही रह जाता है। इससे भी यही स्थिति उभरती है कि दोनों दलों में से ही किसी एक को चुना जाये। लेकिन दोनों में से ही बेहत्तर कौन है इसका चनय कैसे किया जाये यह बड़ा सवाल है। दलों का आंकलन करने के लिये इनके चुनाव घोषणा पत्रों को  खंगालना और समझना पड़ता है। दोनो दलों के घोषणा पत्र जारी हो चुके हैं। दोनो ने ही जनता को लुभाने के लिये लम्बे चैडे़ वायदे कर रखे हैं लेकिन वायदों को पूरा करने के लिये संसाधन कहां से आयेंगे इसका जिक्र किसी के भी घोषणा पत्र में नही है। इस समय प्रदेश पर 50,000 करोड़ के करीब कर्ज है। यह कर्ज जी एस डीपी का 40% और राज्य की कुल राजस्व प्रतियों से 29% अधिक है। जिस प्रदेश की माली हालत यह हो वहां पर चुनाव लड़ रहे दलों को अपने-अपने चुनाव घोषणा पत्र जारी करते हुए इस स्थिति का ध्यान रखना चाहिये लेकिन ऐसा हुआ नही है। इस प्रदेश को एक समय विद्युत राज्य प्रचारित-प्रसारित करते हुए यह दावा किया गया था कि अगले विद्युत की आय से ही प्रदेश खुशहाल हो जायेगा। परन्तु आज का कड़वा सच यह है कि विद्युत से हर वर्ष आय में कमी हो रही है। राज्य विद्युत बोर्ड के स्वामित्व वाले से प्रौजैक्टों में रिपेयर के नाम पर हर वर्ष लगातार हजारों घन्टों का सुनिश्चित शटडाऊन हो रहा है। निजि प्रौजैक्टों से पावर परचेज एग्रीमैन्टो के तहत जो बिजली खरीदनी पड़ रही है वह पूरी बिक नही पा रही है। यह प्रदेश की सबसे गंभीर समस्या है और इसकी ओर किसी भी दल ने अपने घोषणा पत्र में जिक्र तक नही किया है। स्वभाविक है कि घोषणा पत्रों को वायदों को पूरा करने के लिये या तो और कर्ज उठाया जायेगा या फिर केन्द्र की सहायता से ही यह संभव हो पायेगा।
इसके अतिरिक्त दोनो दलों को आंकने के लिये दोनो के शासनकालों को देखा जा सकता है। क्योंकि दोनो ही दल सत्ता में रह चुके हैं। दोनों ही दलों ने जो अपने-अपने मुख्यमन्त्री के चेहरे घोषित किये वह पहले भी मुख्यमन्त्री रह चुके हैं। आज कांग्रेस सत्ता में है और वीरभद्र उसके मुख्यमन्त्री हैं लेकिन वीरभद्र कार्यालय पर आज जो सबसे बड़ा आरोप लग रहा है कि यह कार्यालय सेवानिवृत अधिकारियों का एक आश्रम बन कर रह गया है। मुख्यमन्त्री का प्रधान निजि सचिव और प्रधान सचिव दोनों सेवानिवृत अधिकारी है और उन्हे इन पदों पर तैनाती देने के लिये अलग पदनामों का सहारा लिया गया है, क्योंकि शायद नियमों के मुताबिक सेवानिवृत अधिकारियों को यह पद दिये नही जा सकते थे। फिर प्रधान निजि सचिव की पत्नी को जिस ढंग से पहले शिक्षा के रैगुलेटरी कमीशन का सदस्य और लोकसेवा आयोग का सदस्य लगाया गया है उससे यह संदेश गया है कि शायद मुख्यमन्त्री का काम इस परिवार के बिना नही चल सकता। यह परिवार शायद मुख्यमन्त्री की मजबूरी बन गया है। यदि मुख्यमन्त्री पुनः सत्ता में आते हैं तो यही परिवार फिर सत्ता का केन्द्र होगा। इसी के साथ वीरभद्र के इस कार्यकाल में जिस तरह से प्रशासन के शीर्ष पर हर विभाग में नेगीयों को बिठाया गया है उससे भी प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में अच्छा संकेत नही गया है। बल्कि यही माना जा रहा है कि सत्ता में पुनः वापसी का अर्थ फिर सेे इन्ही लोगों को सत्ता सौंपना होगा। दूसरी ओर यदि धूमल सत्ता में आते हैं तो उनसे अभी यह आंशका नही है कि उनका कार्यालय भी वृ़द्धाश्रम बन कर रह जायेगा। क्योंकि उनके पिछले कार्यकालों में ऐसा देखने को नही मिला है। फिर जो आर्थिक स्थिति प्रदेश की आज है उसमें केन्द्र का आर्थिक सहयोग इनके माध्यम से ज्यादा मिल पायेगा जो आज प्रदेश की आवश्यकता है।