शिमला/शैल। चार राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा है। केवल केन्द्र शासित पांड़िचेरी में कांग्रेस को जीत हासिल हुई है। इन राज्यों में पहले केरल और असम में कांग्रेस की सरकारें थी। इन राज्यों में कांगे्रस न केवल हारी है बल्कि शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। इन राज्यों में हुए चुनावों से पूर्व बिहार विधान सभा के चुनाव हुए थे और वहां पर कांग्रेस आर जे डी और जे डी यू मिलकर भाजपा को सत्ता से बाहर रखने में सफल हो गये थे। बिहार में भाजपा को मिली हार के बाद यह राजनीतिक चर्चा चल पड़ी थी कि अब गैर भाजपा दल मिलकर भाजपा का आगे आने वाले चुनावों में सत्ता से बाहर रखने में सफल होते जायेंगे। बिहार की जीत के बाद नीतिश कुमार ने भी राष्ट्रीय राजनीति में आने के संकेत दे दिये। नीतिश के संकेतों के साथ ही कांग्रेस ने उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सेवाएं लेकर उनको यू पी की जिम्मेदारी सौंप दी है। लेकिन इन चार राज्यों के चुनावांे में भाजपा ने असम में शानदार जीत के साथ सरकार बनाने के साथ ही अन्य राज्यां में अपना वोट बैंक प्रतिशत बढाया है। इस चुनाव में भाजपा की असम जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल है कांग्रेस की हार।
कांग्रेस आज भी भाजपा से बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है। देश के हर गांव मंे उसका नाम जानने और लेने वाला मिल जायेगा। क्योंकि देश की अग्रेंजी शासन से स्वतन्त्राता का सारा श्रेय आज भी उसी की विरासत माना जाता है। देश की स्वतन्त्राता के समय यहां की सामाजिक स्थितियां क्या थी और उनसे बाहर निकाल कर आज के मुकाम तक पहुंचाने में कांग्रेस के गांधी-नेहरू पीढ़ी के नेताओं का जो योगदान रहा है उसे आसानी से भुलाया नही जा सकता। भले ही आज नेहरू का नाम स्कूली पाठ्यक्रमों से बाहर रखने का एक सुनियोजित ऐजैन्डा और उस पर अमल शुरू हो गया है लेकिन आज केवल गांधी-नेहरू विरासत के सहारे ही चुनाव नही जीते जा सकते है। देश को आजादी मिले एक अरसा हो गया है। आज सवाल यह है कि इस अरसे में देश पहंुचा कहां है? आज देश की मूल समस्याएं क्या हैं। आज भी सस्ते राशन के वायदे पर चुनाव लडा और जीता जा रहा है। दो रूपये गेहूं और तीन रूपये चावल के चुनावी वायदे अपने में बहुत खतरनाक हंै। इनके परिणाम आने वाले समय के लिये बहुत घातक होंगे। क्योंकि इस सस्ते राशन के लिये धन कहां से आयेगा? फिर क्या किसान इस कीमत पर अनाज बेच सकता है। लेकिन आज इन सवालों पर कोई सोचने तक को तैयार नही है। आज चुनाव खर्च इतना बढ़ा दिया गया है कि आम आदमी चुनाव लड़ने का साहस ही नही कर सकता हैं बल्कि चुनाव की इच्छा रखने वाले हर व्यक्ति को राजनीतिक दलों के पास बंधक बनने के लिये विवश होने जैसी स्थिति बन गयी है। आज जिस तरह के चुनावी वायदे राजनीतिक दल करते आ रहे हैं और उनको पूरा करने की कीमत आम आदमी को कैसे चुकानी पड़ रही है उस पर अभी किसी का ध्यान नही है। लेकिन जब यह सवाल आम बहस का विषय बनेगें तब इसका परिणाम क्या होगा इसकी कल्पना से भी डर लगा है।
इस परिदृष्य में आज कांगे्रस जैसे बड़े दल का यह दायित्व है कि वह इन चुनाव परिणामों की समीक्षा अपनी विरासत की पृष्ठ भूमि को सामने रखकर करे। आज भ्रष्टाचार बेरोजगारी और मंहगाई ही देश की सबसे बड़ी समस्यायें और इनका मूल चुनावी व्यवस्था है। कांग्रेस पिछले लोकसभा चुनावों से लेकर अब तक जो कुछ खो चुकी है उसके पास शायद अब और ज्यादा खोने को कुछ नही रह गया है पंजाब और यू पी के चुनावों में भी कांग्रेस के लिये बहुत कुछ बदलने वाला नही है। ऐसे में यदि कांग्रेस अपने अन्दर बैठे भ्रष्ट नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा देती है तो उसकी स्थिति में बदलाव आ सकता है अन्यथा नही।