हिमाचल सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप जिस तर्ज पर नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर लगा रहे हैं उससे सरकार के आत्मनिर्भरता और अग्रणी राज्य बनने के दावों पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री के मुताबिक सुक्खू सरकार केंद्र द्वारा वित्तपोषित योजनाओं में नियमों को तोड़ मरोड़ कर भ्रष्टाचार को आमंत्रण दे रही हैं। फिन्ना सिंह सिंचाई परियोजना केंद्र से वित्त पोषित है और इसमें सरकार नियमों को तोड़ मरोड़ भारी भ्रष्टाचार को अंजाम देने जा रही है। यह आरोप अपने में ही बड़ा आरोप हो जाता है जब केंद्र द्वारा वित्त पोषित योजनाओं के नियमों में राज्य सरकार अपने स्तर पर बदलाव करने लग जाये। केंद्र सरकार इसका कड़ा संज्ञान लेकर कोई भी कदम उठा सकती है जिसका प्रदेश के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। राज्य सरकार ने अभी तक इस आरोप का कोई जवाब देकर इसका खण्डन नहीं किया है। यह चर्चा उठाना इसलिये महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सुक्खू सरकार हर माह कर्ज पर आश्रित हो गयी है। अपने संसाधन बढ़ाने के नाम पर प्रदेश की जनता पर लगातार परोक्ष/अपरोक्ष में करों का भार बढ़ाती जा रही है। वर्ष 2023-24 में प्रदेश का कर राजस्व 11835.29 करोड़ था जो अब 2025-26 में 16101.10 करोड़ अनुमानित है। इसका अर्थ है कि इस सरकार ने अब तक 5000 करोड़ से ज्यादा का करभार बढ़ा दिया है। जबकि विद्युत, वानिकी, खनन एवं खनिज और अन्य संसाधन जिनमें उत्पादन हो रहा है उन क्षेत्रों का करेतर राजस्व जो 2023-24 में 3020.88 करोड़ था अब 2025-26 में 4190.37 करोड़ अनुमानित है। करेतर राजस्व में केवल 1000 करोड़ की वृद्धि हो रही है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है की सरकार के करेतर राजस्व में जब तक वृद्धि नहीं होगी तब तक प्रदेश आत्मनिर्भर होने का सोच भी नहीं सकता।
जब सरकार की सारी सोच जनता पर करभार बढ़ाकर ही राजस्व जुटाने तक सीमित हो जाये तो वह प्रदेश के लिये एक बड़े खतरे का संकेत बन जाता है। सरकार ने हर बजट कर मुक्त बजट प्रचारित और घोषित किया है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब बजट कर मुक्त थे तो फिर कर राजस्व में पांच हजार करोड़ की वृद्धि कैसे हो गयी? स्वभाविक है कि जनता के साथ गलत ब्यानी हुई है। सरकार की कर और करेतर राजस्व से सिर्फ बीस हजार करोड़ की आय हो रही है जबकि इस आय के मुकाबले सरकार का राजस्व व्यय ही 48733.04 करोड़ जो कि आय के दो गुणा से भी अधिक है। यह राजस्व व्यय लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि पूंजीगत व्यय जो 2023-24 में 9252.24 करोड़ था वह 2024-25 में 10276.98 करोड़ था अब 2025-26 में घटकर 8281.27 करोड़ रह गया है। पूंजीगत व्यय शुद्ध विकासात्मक व्यय होता है। इस व्यय का घटना इस बात का प्रमाण है कि इस वर्ष विकास कार्यों पर बहुत ही कम खर्च होगा। आंकड़ों से स्पष्ट है कि इस सरकार में विकास कार्यों पर खर्च लगातार कम होता जा रहा है।
बजट के इन आंकड़ों से यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब विकास कार्यों पर खर्च ही लगातार कम होता जा रहा है तो सरकार के आत्मनिर्भरता के दावों पर कैसे विश्वास किया जा सकता है? क्योंकि आत्मनिर्भरता तो तब बनेगी जब विकास पर खर्च बढ़ेगा। दूसरी ओर जब सरकार का कर राजस्व कर लगाने से बढ़ रहा है और कर्ज का आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है तो फिर सरकार की स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सेवाएं क्यों कुप्रभावित हो रही है। कर्मचारियों के एरियर का भुगतान अब तक नहीं हो पाया है। मेडिकल बिल लम्बे अरसे से लंबित चल रहे हैं। ठेकेदारों के भुगतान नहीं हो रहे हैं। जब वित्त विभाग को ट्रेजरी ही बन्द करनी पड़ी है और जिन कार्यों के लिये प्रतिमाह सब्सिडी का भुगतान किया जाता था उनमें अब वार्षिक आधार पर यह भुगतान करने के आदेश करने से यह कार्य प्रभावित हो जायेंगे। मनरेगा के कार्य काफी अरसेे से बन्द चल रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यह करों और कर्ज का पैसा कहां खर्च हो रहा है? सरकार इस सवाल पर लगातार चुप्पी बनाये हुये है। जबकि भ्रष्टाचार को बड़े स्तर पर संरक्षण दिया जा रहा है यह मुख्य सचिव के सेवा विस्तार पर उच्च न्यायालय में आयी याचिका से स्पष्ट हो जाता है। भ्रष्टाचार के बड़े मुद्दों पर सरकार खामोश चल रही है विपक्ष मूक दर्शक बनकर तमाशा देख रहा है। इस उम्मीद में बैठा है कि कांग्रेस के बाद सत्ता उसी के पास आनी है। लेकिन यदि कोई तीसरा राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा के इस खेल को बेनकाब करते हुये सामने आ जाये तो किसी को कोई हैरत नहीं होनी चाहिये। जब जनता की दशा पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों रस्म अदायगी से आगे नहीं बढ़ते हैं तभी विकल्प के उभरने की जमीन तैयार होती है।