व्यवस्था परिवर्तन ने पंहुचाया व्यवस्था अतिक्रमण तक

Created on Wednesday, 28 May 2025 18:09
Written by Shail Samachar
सुक्खू सरकार ने जब प्रदेश की सत्ता संभाली थी तब शासन का सूत्र जनता के सामने व्यवस्था परिवर्तन का रखा था। इस व्यवस्था परिवर्तन को कभी भी परिभाषित नहीं किया गया था। जबकि देश की व्यवस्था संविधान के तहत चलती है। जिसमें संसद द्वारा समय-समय पर संशोधन भी हुये हैं। संविधान के तहत स्थापित प्रशासन को बचाने के लिए रूल्स ऑफ बिजनेस बने हुये हैं। जिसमें एक छोटे से छोटे कर्मचारी से लेकर मुख्य सचिव और मंत्री परिषद तक सबके अधिकार क्षेत्र पूरी तरह से परिभाषित है एक स्थापित नियमावली है। फिर इस सबसे ऊपर जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोक लाज सर्वाेपरि रहती है। इस व्यवस्था में से आप क्या बदलना चाहते थे वह अभी तक प्रदेश की जनता को स्पष्ट नहीं हो पाया है उसे समझाने का प्रयास करें। प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को इसलिये सत्ता सौंपी थी वह भाजपा से संतुष्ट नहीं थी। फिर कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान सत्ता में आने के लिये दस गारंटियां दे रखी थी। इस सब पर भरोसा करते हुये जनता ने आपको सत्ता सौंप दी। सत्ता में आते ही आपने प्रदेश की जनता को यह चेतावनी देकर डरा दिया कि राज्य के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। इस चेतावनी से लगा कि यह सरकार किसी भी तरह की फिजुल खर्ची नहीं करेगी। लेकिन व्यवहार में आपके खर्चे पिछली सरकार से कई गुना बढ़ गये। इन खर्चों को पूरा करने के लिये आम आदमी पर परोक्ष/अपरोक्ष करों का बोझ डालने और कर्ज लेने की नीति अपना ली। दो वर्षों में 5200 करोड़ का अतिरिक्त राजस्व प्रदेश की जनता से उगवाया। कर्ज लेने में अब पुरानी सारी सीमाएं लांघ गये। जब आपने सत्ता संभाली थी तब प्रदेश 76000 करोड़ के कर्ज के नीचे था। प्रदेश का कर्ज आज एक लाख करोड़ से बढ़ गया है। यह कर्ज और जनता से वसूला गया राजस्व कहां निवेश हुआ है शायद इसकी कोई जानकारी आपका तंत्र जनता के सामने रखने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि आप कर्मचारियों के हर वर्ग को समय पर वेतन और पैन्शनरों को पैन्शन का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। आज आपको केंद्र से प्रदेश की कर्ज सीमा बढ़ाने का आग्रह करना पड़ रहा है। कंेद्र ने आपको ओ.पी.एस. की जगह यू.पी.एस. अपनाने का सुझाव दिया है। यही स्थिति अन्य गारंटीयों की है हरेक में किन्तु-परन्तु जोड़कर उनका दायरा कम करने का प्रयास किया जा रहा है। बेरोजगारी का मानक बढ़ता जा रहा है। यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस को प्रदेश की वितीय स्थिति की जानकारी नहीं थी? क्या कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिये आम आदमी से झूठ बोला था। क्या जनता में एक भी गारंटी व्यवहारिक शक्ल ले पायी है शायद नहीं। सारी मंत्री परिषद वरिष्ठ विधायकों की है क्या इनको सदन में पारित होते रहे बजटों की समझ नहीं थी। यह स्थापित नियम है कि राज्य सरकारों को अपना राजस्व व्यय अपने ही साधनों से पूरा करना पड़ता है। केवल विकासात्मक आय बढ़ाने वाले कार्यों के लिये ही एक सीमा तक कर्ज लेने का प्रावधान है। जो राज्य कर्ज सीमा बढ़ौत्तरी के लिये सुप्रीम कोर्ट गये थे उन्हें शीर्ष अदालत ने इन्कार कर दिया है। इस वित्तीय स्थिति को सामने रखते आने वाला समय और कठिन होने वाला है। लेकिन सरकार ने प्रशासनिक स्तर पर जो फैसले आज तक ले रखे हैं वह सरकार पर भारी पढ़ने जा रहे हैं। आज सरकार के मुख्य सचिव के सेवाविस्तार को उच्च न्यायालय में चुनौती मिली हुई है क्योंकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सीबीआई ने चला रखा है। सरकार के मुख्य सलाहकारों के खिलाफ मुख्यमंत्री स्वयं बतौर विपक्षी विधायक सदन में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा चुके हैं। पावर कारपोरेशन में व्यापक भ्रष्टाचार ने एक व्यक्ति की जान ले ली है और इस पर सारा शीर्ष प्रशासन उच्च न्यायालय में नंगा हो गया है। प्रशासन में हर स्तर पर व्यवस्था का अतिक्रमण हो रहा है। भ्रष्टाचार को संरक्षण देना सरकार के साथ प्रदेश के स्वास्थ्य पर भी कुप्रभाव डाल रहा है। आज सरकार अपने ही कर्ज भार से दबने के कगार पर पहुंच चुकी है। जिस तरह के आरोप शिमला के एस.पी. ने पत्रकार वार्ता में लगाये हैं उनका जवाब भी देर सवेर जनता की अदालत में तो देना ही पड़ेगा। मुख्यमंत्री को सोचना होगा कि भ्रष्टाचार को संरक्षण देना व्यवस्था परिवर्तन नहीं अतिक्रमण होता है।