हिमाचल बना कांग्रेस हाईकमान की परीक्षा

Created on Monday, 04 March 2024 12:41
Written by Shail Samachar

क्या हिमाचल का घटनाक्रम कांग्रेस हाईकमान के लिये एक चेतावनी है? यह सवाल इसलिये प्रसांगिक है कि हाईकमान ने उसके पास सुक्खू सरकार को लेकर आ रही शिकायतों का समय रहते संज्ञान नहीं लिया। यह संज्ञान न लेने का परिणाम प्रदेश वर्तमान घटनाक्रम है। कांग्रेस जब विपक्ष में थी तब जयराम सरकार के खिलाफ यह आरोप लगाती थी कि इस सरकार ने प्रदेश को कर्ज के चक्रव्यूह में डाल दिया है। कर्ज के इन आरोपों का अर्थ था कि कांग्रेस को प्रदेश की वित्तीय स्थिति का पूरा ज्ञान था। लेकिन कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिये दस गारंटीया जारी कर दी। सरकार ने इन गारंटीयों पर कोई कदम न उठाने के लिये प्रदेश की जनता के श्रीलंका जैसे हालात होने की चेतावनी दे दी। यह चेतावनी देने के बाद सरकार ने छः सीपीएस और एक दर्जन से अधिक गैर विधायकों को सलाहकार आदि बनाकर अपने खर्च बढ़ा लिये। दूसरी ओर आम आदमी के लिये सेवाओं और वस्तुओं के दाम बढ़ाकर उस पर बोझ डाल दिया। इस तरह सरकार की कथनी और करनी का विरोधाभास साफ सामने आ गया। ऊपर से पार्टी के कार्यकर्ताओं का सरकार में समायोजन न होने से अधिकांश लोग हताश होकर घर बैठ गये। इसी के साथ सरकार ने हर माह एक हजार करोड़ से ज्यादा कर्ज लेना शुरू कर दिया। इस स्थिति ने विपक्षी भाजपा को आक्रामक होने का अवसर दे दिया और उसने आरटीआई के माध्यम से कर्ज के तथ्य जुटाकर सार्वजनिक कर दिये। इस वस्तुस्थिति से कांग्रेस के अन्दर भी विचार-विमर्श चला लेकिन मुख्यमंत्री स्थिति का सही आकलन नहीं कर पाये। जब मुख्यमंत्री के स्तर पर कुछ नहीं हुआ तब शिकायतें हाईकमान के पास पहुंची। लेकिन अंतिम परिणाम वहां भी शून्य रहा। लोकसभा चुनाव के परिदृश्य में सरकार के खिलाफ उभरता रोष हर कांग्रेस जन के लिये चिन्ता का कारण बनता गया। क्योंकि फील्ड से यह स्पष्ट संकेत उभरने लगे की पार्टी चारों सीटों पर हार जायेगी। कोई भी मंत्री लोकसभा चुनाव लड़ने के लिये तैयार नहीं हुआ। क्योंकि सरकार एक भी फैसला जनहित का प्रमाणित नहीं हुआ। यह विभिन्न वर्गाे के धरने प्रदर्शनों से रोज सामने आ रहा था। मुख्यमंत्री व्यवस्था परिवर्तन के जुमले से बाहर नहीं निकल पाये। प्रदेश की इस स्थिति पर हाईकमान पर कुछ सीधे सवाल उठते हैं। क्या दस गारंटीयां जारी करते हुये प्रदेश की वित्तीय स्थिति का ज्ञान नहीं था? क्या इन गारंटीयों को पूरा करने के लिए प्रदेश पर और कर्ज भार बढ़ाने का रास्ता चुना गया था? क्या कर्ज लेने के बाद भी कोई गारंटी पूरी हो पायी है? क्या गारंटीयां अंतिम वर्ष में पूरी करने का वायदा किया गया था। जब प्रदेश की वित्तीय स्थिति ठीक नही थी तो फिर सीपीएस और सलाहकारों का ब्रिगेड खड़ा करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। क्या पार्टी का प्रभारी भी इस वस्तु स्थिति का आकलन नहीं कर पाया? जब हाईकमान के पास प्रदेश को लेकर शिकायतें जा रही थी तो उनका संज्ञान लेकर चीजें सुधारने का प्रयास क्यों नहीं किया गया? आज प्रदेश की जो परिस्थितियां हैं क्या उनमें कांग्रेस को अपनी राज्य सरकारों पर बराबर नजर नही रखनी चाहिये थी? राज्य सरकारों का आचरण ही हाईकमान की नीतियों का आईना बनता है। पांच राज्यों के चुनाव में भी हिमाचल सरकार की परफॉरमैन्स रिपोर्ट कार्ड चर्चा में रहा है। छत्तीसगढ़ में हिमाचल की गारंटीयों पर विशेष चर्चा हुई है। इस समय प्रदेश की चारों सीटों पर कांग्रेस की हार पुख्त्ता हो गयी है। नाराज विधायकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। आज हाईकमान ने मुख्यमंत्री न बदलकर प्रदेश से कांग्रेस को लम्बे समय के लिये सत्ता से बाहर रखने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। क्या मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री कार्यकर्ताओं को संदेश देने के लिये लोकसभा चुनाव लड़ने को तैयार होंगे? यदि इस संकट के लिये बागी दोषी हैं तो इसका जवाब इन मंत्रियों या इनके परिजनों को लोस उम्मीदवार बनाकर ही दिया जा सकता है अन्यथा नेतृत्व परिवर्तन के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है। यदि ऐसा नहीं होता है तो इसका अन्य राज्य पर भी प्रभाव पड़ेगा यह तय है।