इस समय केंद्र सरकार की विकसित भारत संकल्प यात्रा चल रही है। इस यात्रा के माध्यम से मोदी सरकार की योजनाएं और उनके लाभ जनता को परोसे जा रहे हैं। इस यात्रा के समापन के साथ ही राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन भी किया जा रहा है। संभव है कि इन आयोजनों के साथ ही लोकसभा चुनावों की भी घोषणा कर दी जाये। क्योंकि नरेंद्र मोदी विपक्ष को व्यवहारिक रूप से एकजुट होने का कम से कम समय देना चाहेंगे। इस समय विपक्ष का इन आयोजनों के राजनीतिक पक्षों की ओर बहुत कम ध्यान है। ऐसे में इस यात्रा में योजनाओं को लेकर जो कुछ परोसा जाएगा आम आदमी उसी पर भरोसा करने और उसे सच मानने लग जाएगा। यह भी संभावना बनी हुई है कि इन योजनाओं और राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद देश को धर्मनिरपेक्ष की जगह धार्मिक देश भी घोषित कर दिया जाए। क्योंकि अब की बार 400 पार का जो लक्ष्य देश के सामने परोसा गया है वह तभी पूरा हो सकता है जब राजनीतिक और आर्थिक प्रश्नों को पीछे धकेलते हुए धार्मिक प्रश्न को बड़ा बना दिया जाए। राजनीति में संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता यह एक स्थापित सच है।
2024 का लोकसभा चुनाव कई मायनो में महत्वपूर्ण होगा। क्योंकि जब नए संसद भवन में प्रवेश के अवसर पर सांसदों को संविधान की प्रति दी गई थी तो उसकी प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष गायब था। इसी के बाद इंडिया बनाम भारत का द्वंद सामने आया। सनातन धर्म को लेकर विवाद उभरा। यह विवाद आज भी अपनी जगह बने हुए हैं। इन सवालों को उभार कर छोड़ दिया गया और सार्वजनिक बहस का विषय नहीं बनने दिया गया। इसी पृष्ठभूमि में पांच राज्यों के चुनाव और हिंदी पट्टी के तीनों राज्यों में कांग्रेस राहुल के सारे प्रयासों के बावजूद अप्रत्याशित रूप से हार गई । अब कांग्रेस की इस हार के बाद विपक्ष के गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो गई है। जिन राज्यों में गठबंधन के दलों की सरकार है वहां पर यह दल कांग्रेस को कोई अधिमान नहीं देना चाहते। यह व्यवहारिक और कड़वा सच बनता जा रहा है।
इस समय देश की आर्थिक स्थिति को लेकर जो आंकड़े सरकार की ओर से परोसे जा रहे हैं उनकी प्रमाणिकता पर सवाल उठाने वाला कोई नहीं है। जबकि 80 करोड़ जनता को इतनी योजनाओं के बाद भी जब सरकारी राशन पर निर्भर रहना पड़ रहा है तो योजनाओं की प्रासंगिकता पर स्वत: ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। अभी संसद से विपक्ष के 151 सांसदों को निलंबित कर दिया गया क्योंकि वह संसद की सुरक्षा में हुई चूक पर गृह मंत्री के बयान की मांग कर रहे थे। सांसदों के इस निलंबन से लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने का आरोप स्वत: ही प्रमाणित हो जाता है। लेकिन इन प्रश्नों पर राज्यों में बैठे कांग्रेस और अन्य घटक दलों के नेता और कार्यकर्ता कितने मुखर हैं? हिमाचल में तो कांग्रेस की सरकार है और सरकार आने के बाद सरकार और संगठन इन प्रश्नों पर एकदम मौन साधे बैठे हैं । जब कांग्रेस की सरकार होते हुए भी कांग्रेसी भाजपा और मोदी सरकार के खिलाफ ऐसे मौन हैं तो जहां सरकारें नहीं है वहां क्या हाल होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।