क्या विपक्षी एकता बनी रहेगी

Created on Wednesday, 25 October 2023 18:38
Written by Shail Samachar
इस समय देश एक कठिन राजनीतिक दौर से गुजर रहा है क्योंकि 2014 में जिन वायदों पर सत्ता परिवर्तन हुआ था उनका असली चेहरा अब जनता के सामने उजागर होता जा रहा है। 2014 में भ्रष्टाचार के खिलाफ जिन आंकडों और तथ्यों के सहारे एक वातावरण खड़ा किया गया था उनका खोखलापन अब सबके सामने आ चुका है। कैग की जिस रिपोर्ट के सहारे जी स्पैक्ट्रम का 1,76 000 करोड. का घपला होना जनता में परोसा गया था वह घपला हुआ ही नहीं था यह स्वीकारोक्ति है। उस विनोद राय की जिसने कैग रिपोर्ट का संकलन किया था। आज कैग और आर बी आई की जो रिपोर्ट आ चुकी है उनका आंकड़ा कई गुणा बड़ा है । यह सब आने वाले चुनाव में बड़े मुद्दे होंगे। जो लोग बैंकों का लाखों करोड़ का ऋण लेकर देश छोड़कर जा चुके हैं उनकी वापसी वायदों से आगे नहीं बढ़ी है। जिन लोगों के खिलाफ 2014 में भ्रष्टाचार का एक बड़ा आवरण खड़ा किया गया था उन्हें दस वर्षों में चालान अदालत तक ले जाने के मुकाम पर भी नहीं पहुंचाया जा सका है। यही नहीं अब चुनावों से पहले जन विश्वास विधयेक के माध्यम से 183 धाराओं से जेल की सजा का प्रावधान हटाया गया और उनमें ई डी और सी बी आई भी शामिल है। जबकि ई डी, सी बी आई बीते दस वर्षों में सत्ता के मुख्य सूत्र रहे हैं । आज अकेले अदानी के नाम देश के बैंकों का इतना ऋण है कि यदि किन्हीं कारणो से वह इस ऋण को चुकाने में असमर्थ हो जाए तो पूरे देश के बैंक एक क्षण में डूब जाएंगे और जन विश्वास विधयेक के माध्यम से लाये गये संशोधन से अब बैंक ऋण में डिफाल्टर होने पर जेल का प्रावधान हटा दिया है । इस तरह 2014 से अब तक जो कुछ घटा है यदि उस सब को एक साथ जोड़कर देखा जाए तो आज सवाल देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं के भविष्य के सुरक्षित रहने के मुकाम पर पहुंच गया है। पहली बार विपक्षी दलों को इकट्ठे होकर ई डी और सी बी आई के राजनीतिक दुरुपयोग के खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय में गुहार लगानी पड़ी है। जो आशंकाएं विपक्ष में व्यक्त की थी वह काफी हद तक सिसोदिया मामले में सामने आ चुके है।
भविष्य के इन सवालों ने ही विपक्षी दलों को एक मंच पर आने के लिए व्यवहारिक रुप से प्रेरित किया और परिणामस्वरुप इण्डिया गठबन्धन सामने आया है। इस इण्डिया गठबन्धन के कारण ही ‘ एक देश एक चुनाव ‘ और महिला आरक्षण जैसी योजनाएं सामने आयी जिन्हे जमीनी हकीकत बनने में लम्बा समय लगेगा। इन्ही योजनाओं के बीच सनातन धर्म का सवाल खड़ा हुआ। इंडिया भारत बना और संविधान की प्रस्तावना से सामाजिक और धर्मनिरपेक्ष शब्द गायब हुए। इन प्रयोगों से स्पष्ट हो जाता है कि सत्तारुढ. गठबन्धन को सत्ता से बेदखल कर पाना बहुत आसान नहीं होगा। यह गठबन्धन लोकसभा चुनावों के लिए बना है और शायद इसी कारण से एक देश के चुनाव को व्यवहारिक रुप नहीं दिया गया । अभी जो पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उसमें इसी इण्डिया गठबन्धन के दल एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं । बल्कि यही चुनाव तय करेंगे कि लोकसभा चुनावों तक इण्डिया कितना एकजुट हो पाता है। सत्तारुढ. भाजपा एन डी ए इन विधानसभा चुनावों में इण्डिया के घटक दलों के आपसी टकराव को देश में एक बड़े स्तर पर प्रचारित और प्रसारित करेगी। क्योंकि सभी राजनीतिक दलों का जन्म एक दूसरे के विरोध से ही तो होता है। फिर इन चुनावों में कौन सा दल मुफ्ती की कितनी घोषणाएं करता है और उनको पूरा करने के लिए कितने कर्ज का बोझ जनता पर डालता है। यह भी इण्डिया का भविष्य तय करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। क्योंकि इन विधानसभा चुनावों के बाद लोकसभा चुनावों के बीच इतना पर्याप्त समय रह जाता है कि चुनावी घोषणाओं की व्यवहारिकता पूरी स्पष्टता से सामने आ जायेगी। फिर इन विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने के लिये विपक्ष में कांग्रेस की किसी राज्य सरकार को अपदस्थ करने तक की व्यूह रचना कर दी जाये। ऐसे में इण्डिया गठबन्धन को कमजोर करने के लिये आने वाले समय में कुछ भी खड़ा हो जाने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता।