संसद का विशेष सत्र पुराने भवन में शुरू हुआ और दूसरे ही दिन नये भवन में चला गया। नये भवन में जब सांसदों ने प्रवेश किया तो उन्हें देश के संविधान की एक-एक प्रति दी गयी। संविधान की प्रति को जब खोल कर देखा गया तो उसकी प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द गायब मिले। कुछ सांसदों ने जब इस ओर इंगित किया तो जवाब मिला कि बाबा साहेब अम्बेडकर के मूल प्रतिवेदन में जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था उसमें इन शब्दों का उल्लेख नहीं है। यह शब्द आपातकाल के दौरान 1976 में लाये गये 42वें संविधान संशोधन से इसमें जोड़ गये हैं। नये संसद भवन में प्रवेश से पहले जो जी-20 देशों का शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था उसमें राष्ट्रपति की ओर से आयोजित राजकीय भोज के जो आमंत्रण पत्र सामने आये थे तो उनमें भी इण्डिया के राष्ट्रपति की जगह भारत का राष्ट्रपति लिखा हुआ था। शब्दों के इस चयन से इण्डिया बनाम भारत का विवाद अनचाहे ही खड़ा हो गया। इसी दौरान सनातन धर्म को लेकर आयी टिप्पणियों पर प्रधानमंत्री ने जिस तर्ज पर अपनी प्रतिक्रिया दी है और अपने सहयोगी मंत्रियों को इसका कड़ा विरोध करने के निर्देश दिये हैं उससे भी कुछ अलग ही संकेत उभरते हैं।
इसी परिदृश्य में हुए संसद के विशेष सत्र को लेकर जो जो क्यास लगाये जा रहे थे उन सबसे हटकर अन्त में महिला आरक्षण विधेयक सामने आया है। इसमें महिलाओं को संसद और राज्यों की विधानसभाओं में 33% स्थान आरक्षित रखने की सिफारिश की गयी है। संसद के दोनों सदनों में यह विधेयक ध्वनि मत से पारित हो गया है। किसी भी दल ने इसका विरोध नहीं किया है। बल्कि इसमें अन्य पिछड़े वर्गों और मुस्लिम महिलाओं को भी इस संशोधन का लाभार्थी बनाने की मांग की है। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति दिलाने और ओ.बी.सी. समाज की बदनामी के मुद्दे पर राहुल गांधी की सांसदी छीनने वाली सरकार इन वर्गों की महिलाओं को इस आरक्षण के दायरे में क्यों नहीं ला पायी यह सवाल अपने में गंभीर हो जाता है। यह महिला आरक्षण आने वाले लोकसभा चुनाव में लागू नहीं होगा क्योंकि इससे पहले जन गणना और फिर परिसीमन आयोग बैठेंगे। ऐसे में यह सवाल भी प्रमुख हो जाता है की जो प्रावधान अभी लागू ही नही होना है उसे विशेष सत्र बुलाकर पारित करने का औचित्य क्या है? फिर इस में ओ.बी.सी. और मुस्लिम समाज को लेकर जो सवाल खड़े हो गये हैं उनका निराकरण किया जाना भी आवश्यक होगा जो आने वाले समय का बड़ा सवाल होगा।
इस परिप्रेक्ष में यदि इस सब को इकट्ठा मिलाकर देखें तो साफ दिखाई देता है कि आने वाले चुनावों में नये मुद्दे उछालने के लिये ही इण्डिया बनाम भारत और सनातन की रक्षा करने जैसे विषय खड़े करने की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। क्योंकि इण्डिया से भारत करने और संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद हटाने के लिये संविधान संशोधनों का मार्ग अपनाने की जगह जो यह भावनात्मक कार्ड उभारने का प्रयास किया गया है इसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे। इस आशंका की पुष्टि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के उस वीडियो से हो जाती है जिसमें वह यह कह रही हैं कि आने वाला चुनाव धर्म और अधर्म के बीच होगा। इसी विशेष सत्र में भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने बसपा सांसद दानिश अली के लिये सदन के पटल पर जिस भाषा और तर्ज का इस्तेमाल किया है उसके मायने भी कुछ स्मृति ईरानी के वक्तव्य की ही पुष्टि करते हैं।