मोदी बनाम राहुल होगा 2024

Created on Saturday, 10 June 2023 13:13
Written by Shail Samachar

क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प बन पायेंगे? क्या 2024 में कांग्रेस केन्द्र में सरकार बना पायेगी? क्या एन.डी.ए. से बाहर बैठे राजनीतिक दल कांग्रेस के नेतृत्व में इकट्ठा हो पायेंगे? क्या एनडीए में टूटन आयेगी? क्या भाजपा कांग्रेस में कोई तोड़फोड़ कर पायेगी? इस समय यह सारे सवाल राजनीतिक विश्लेषकों के लिये अहम बने हुये हैं। क्योंकि राजनीतिक दलों ने 2024 के चुनाव के लिये अभी से विसात बिछानी शुरू कर दी है। इस समय राजनीतिक परिदृश्य मोदी बनाम राहुल और भाजपा बनाम कांग्रेस होता जा रहा है इसमें कोई दो राय नहीं है। यह क्यों हो रहा है इसके लिये 2014 से पूर्व और बाद की परिस्थितियों पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है।
देश 1947 में आजाद हुआ। 1950 में संविधान लागू हुआ। 1952 में देश में पहला आम चुनाव हुआ। 1952 से मई 1964 तक स्व.पंडित जवाहर लाल नेहरू बारह वर्ष तक देश के प्रधानमंत्री रहे कांग्रेस सत्ता में रही लेकिन हर चुनाव में जनसंघ और दूसरे दल कांग्रेस को चुनावी चुनौति भी देते रहे। उस समय का मतदाता प्रत्यक्ष रूप से जानता था की आजादी की लड़ाई में किसका क्या योग योगदान रहा है। इतिहास को लेकर जो सवाल आज उठाये जा रहे हैं यह उस समय नहीं थे। क्योंकि उस समय की जनता उस समय का स्वंय ही इतिहास थी। लेकिन उस दौर में भी जब रियासतों के एकीकरण के बाद कृषि सुधारों की बात आयी थी जब भी सी राजगोपालाचार्य जैसे नेताओं ने इन सुधारों का विरोध किया था। इसी विरोध की पृष्ठभूमि थी कि स्व. इन्दिरा गांधी जी को सत्ता संभालने के लिये कांग्रेस में विघटन तक का सामना करना पड़ा। बैंकों के राष्ट्रीयकरण को उस समय सुप्रीम कोर्ट में स्व.प्रो.बलराज मधोक और अन्य ने चुनौती दी थी। जिसे संविधान में संशोधन करके प्रस्तुत किया गया था। 1964 से 1975 तक का राजनीतिक परिदृश्य किस तरह का रहा है यह भी आम आदमी जानता है। इसी काल में कई राज्यों में संबिद्ध सरकारों का भी गठन हुआ था। आपातकाल के बाद कांग्रेस कितना और विपक्ष कितना केन्द्र की सत्ता पर काबिज रहा है यह सब जानते हैं। 2014 तक कांग्रेस और अन्यों के सत्ता काल में ज्यादा अन्तर व्यवहारिक रुप से नहीं रहा है यह एक स्थापित सत्य है।
1948 से आज तक आर.एस.एस. ने देश में अपने को किस तरह स्थापित किया। कितने उसके सहयोगी संगठन बने और कितने उसकी विचारधारा के स्नातक बनकर निकले हैं उसकी पूरी जानकारी भले ही अधिकांश को न रही हो लेकिन 2014 के बाद आयी भाजपा नीत सरकार के व्यवहारिक पक्ष से सबके सामने आ गयी है। भारत जैसे बहुभाषी और बहुधर्मी देश में इस तरह की विचारधारा की वैचारिक स्वीकारोक्ति कितनी हो सकती हैं यह सामने आ चुका है। क्योंकि विचारधारा के प्रसार के लिए जिस तरह का सामाजिक और आर्थिक परिवेश खड़ा करने का प्रयास किया गया वह अब लगातार अस्वीकार्य होता जा रहा है। 2014 का चुनाव जिन नारों पर लड़ा गया था जो वायदे उस समय किये गये थे वह 2019 के लोकसभा और इस दौरान हुये विधानसभा चुनाव में कैसे बदले गये हैं यह देश देख चुका है। एक भी मुस्लिम को टिकट न देकर भाजपा तो मुस्लिम मुक्त हो सकती है लेकिन देश नहीं। राहुल गांधी को पप्पू प्रचारित प्रसारित करने में जितना समय और संसाधन लगा दिये गये हैं उन्हीं के कारण आज मोदी का राजनीतिक कद अब हल्का पड़ता जा रहा है। महंगाई और बेरोजगारी ने हर आदमी को सरकार की कथनी और करनी को समझने के मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है। जिस तरह की राजनीतिक वस्तुस्थिति 2014 में कांग्रेस के लिए निर्मित हो गयी थी वहीं आज भाजपा और मोदी की होती जा रही है। विदेशों में बैठे भारतीयों को जिस मोदी ने एक समय हथियार बनाया था अब राहुल भी उसी हथियार का प्रयोग करते जा रहे हैं और इसी से सारी राजनीतिक लड़ाई स्वतः ही मोदी बनाम राहुल होती जा रही है।