नई शिक्षा नीति पर उठे सवाल

Created on Monday, 17 April 2023 09:05
Written by Shail Samachar

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू हो गयी है। इसे लागू करने के साथ ही कक्षा बारहवीं तक के पाठयक्रमों में एन.सी.आर.टी. ने बदलाव किया है। पाठयक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी एन.सी.आर.टी. की है। पिछले दिनों जब देश कोविड से जूझ रहा था और लॉकडाउन लगाना पड़ा था तब सबसे ज्यादा स्कूल पढ़ने वाले बच्चे प्रभावित हुये थे। ऑनलाइन क्लासें लगाई गयी थी। इसका संज्ञान लेते हुये एन.सी.आर.टी. ने 30 प्रतिशत तक पाठयक्रमों में कटौती करने का फैसला लिया। स्वभाविक है कि जब पाठयक्रम घटाया जायेगा तो निश्चित रूप से किताबों से कुछ अध्याय हटाने पड़ेंगे। इससे जिस तरह से अध्याय हटाये गये हैं उससे हटाने वालों की नीयत पर संकाएं उठना शुरू हो गयी है। क्योंकि कोविड के कारण 30 प्रतिशत पाठयक्रम बच्चों का बोझ कम करने के नाम पर घटाया गया लेकिन जब कोविड की आशंका नहीं रहेगी तब फिर से हटाये गये अध्यायों को पाठयक्रम का हिस्सा बना दिया जायेगा यी नहीं कहा जा रहा है। यही सरकार की नीयत पर संदेह का आधार बन रहा है। क्योंकि जो अध्याय हटाये गये हैं उनके बिना शिक्षण और ज्ञान दोनों अधूरे रह जाते हैं।
इस देश में अंग्रेजों से बहुत पहले मुस्लिम आ गये थे। उनका शासन भी देश में रहा है। वह देश में बस गये और यही का हिस्सा बन गये। अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई में उनका भी योगदान रहा है। यह एक ऐतिहासिक सच्चाई जिसे झूठलाया नहीं जा सकता। जो निश्चित रूप से सच हो उसे ही इतिहास कहा जाता है। आजादी की लड़ाई में कांग्रेस का योगदान दूसरों से अधिक रहा है। गांधी उसके नायक रहे हैं। मोतीलाल नेहरू ने आनंद भवन इस लड़ाई में देश के हवाले कर दिया था। क्या इन तथ्यों को झूठलाया जा सकता है शायद नहीं। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की आजादी की लड़ाई में रही भूमिका पर जो सवाल भाजपा नेता डा. स्वामी ने उठाये हैं क्या उनका जवाब किसी ने आज तक दिया है? गांधी, नेहरू और मुगल इतिहास के अध्यायों को पाठयक्रम से हटाकर इतिहास से नहीं मिटाया जा सकता। ईसा को किसी पाठय पुस्तक में अपशब्द कहकर उनकी महानता को कम नहीं किया जा सकता। पाठयक्रमों में मनुस्मृति और श्री मदभगवत् गीता को जोड़कर इतिहास को नये सिरे से नहीं लिखा जा सकता। जो प्रयास संघ के इतिहास लेखन प्रकोष्ठ के माध्यम से किया जा रहा है।
पाठयक्रमों से अध्यायों को हटाने जोड़ने से ज्यादा संवेदनशील मुद्दा यह है कि अब बच्चों को पाठयक्रमों में विस्तृत चुनाव पर विकल्प दे दिये गये हैं। अब पाठयक्रम ‘‘अतिरिक्त पाठयक्रम’’ या सह पाठयक्रम कला, मानविकी और विज्ञान अथवा व्यवसायिक या अकादमिक धारा जैसी कोई श्रेणीयां नहीं होगी। यह विषय बच्चों की रूची के अनुसार पाठयक्रम में शामिल किये जायेंगे। पहले प्लस टू के बाद बच्चा एक धारा विशेष में जाने का पात्र हो जाता था। क्योंकि सारी व्यवसायिक शिक्षा प्लस टू के बाद पंचवर्षीय हो चुकी है। अब क्योंकि कोई धारा ही नहीं होगी तो वह अगला विकल्प क्या और कैसे चुनेगा। दो वर्ष बाद जो बच्चे प्लस टू करके निकलेंगे उनके लिये यह व्यवहारिक कठिनाई खड़ी होगी। इस समय जो बहस पाठयक्रमों में कटौती करके हटाये गये अध्यायो पर केंद्रित होकर रह गई है उसमें प्लस टू के बाद आने वाली स्थिति पर विचार करना आवश्यक है।