हिमाचल में सत्ता परिवर्तन हो गया है कांग्रेस की सरकार बन गयी है। नई सरकार के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह ने दावा किया है कि वह इस सत्ता परिवर्तन के माध्यम से प्रदेश की व्यवस्था बदलने का प्रयास करेंगे। मुख्यमंत्री के इस दावे की चर्चा करने से पहले प्रदेश की इस समय की व्यवस्था को समझना आवश्यक हो जाता है। परिवार से लेकर प्रदेश और देश के संचालन तक के लिए कुछ नियम कानून तथा प्रथाएं स्थापित की जाती है। जब इन स्थापित मानकों की किसी भी कारण से अनदेखी की जाने लगती है तभी व्यवस्था के गड़बड़ाने के आरोप लगने शुरू हो जाते हैं। यह अनदेखी उस समय और भी गंभीर सवाल बन जाती है जब व्यवस्था के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति अपने ही फैसलों को अंतिम सच मानना और प्रचारित करना शुरू कर देता है। आज राष्ट्रीय स्तर पर यह स्थिति उस मोड़ तक पहुंच गयी है जहां सर्वोच्च न्यायालय को भी यह कहना पड़ा है कि जब कानून है तो उसे मानना ही पड़ेगा। नियमों कानूनों की अनुपालना ही व्यवस्था होती है। प्रदेश में दर्जनों मामले हैं जहां पर नियमों कानूनों की अवहेलना हुई है। इसमें सबसे पहले प्रदेश की वित्तीय स्थिति आती है। जब जयराम सरकार ने सत्ता संभाली थी तब प्रदेश का कर्ज भार 46,000 करोड़ था जो आज बढ़कर 70,000 करोड़ भी कहीं ज्यादा हो गया है। जबकि एफ.आर.बी.एम. के मुताबिक यह कर्ज डी.जी.पी. के 3% से अधिक नहीं होना चाहिये। कर्ज को 3% के दायरे में ही रखने के लिये केंद्र एक बार प्रदेश को चेतावनी भी दे चुका है। पिछले मानसून सत्र के बाद प्रदेश के करीब हर विधानसभा क्षेत्र में करोड़ों की योजनाएं घोषित हुई हैं। क्या इस आश्य के प्रशासनिक प्रस्तावों को अनुमोदित करने से पहले वित्तीय अनुमोदन लिया गया है? क्या ऐसे अनुमोदन पर कर्ज के बिना भी धन की उपलब्धता रही है? क्या कर्ज लेकर घी पीने की प्रथा व्यवस्था पर एक गंभीर सवाल नहीं बन जाता है। रेवड़ी संस्कृति पर राष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठने के बाद यह मामला भी सर्वाेच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है। केन्द्र सरकार जयराम की सरकार को कोई आर्थिक सहायता नहीं दे पायी है तो सुक्खु सरकार को ऐसी सहायता मिल पाना कठिन लगता है। सरकार को 10 गारन्टीयां पूरी करनी है और कुछ तो पहली बैठक में ही पूरी करनी होगी। वित्त विभाग कर्ज के अतिरिक्त और कोई उपाय पिछली सरकार को नहीं सुझा पाया है तो अब कैसे कर पायेगा। यह सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। जबकि प्रदेश की जानकारी रखने वालों का मानना है कि कर्ज और करों का बोझ बढ़ाये बिना भी सरकार चलाई जा सकती है। इसके लिए जनता को विश्वास में लेना होगा और इस विश्वास के लिए श्वेत पत्र जारी करना पहली आवश्यकता होगी। कांग्रेस ने जनता से वादा किया है कि वह पिछले छः माह में लिये गये फैसलों की समीक्षा करके उन्हें बदलेगी। क्या गलत फैसलों के लिये किसी को जिम्मेदार भी ठहराया जायेगा यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा। क्योंकि इस दौरान कुछ विभागों में भ्रष्टाचार के कई गंभीर मामले घटे हैं। पिछली सरकार प्रशासन के साथ कितना तालमेल बिठा पायी थी इसका पता इसी से चल जाता है कि सात मुख्य सचिव बदलने पड़े क्योंकि वरीयता को नजरअन्दाज करने का जो कदम पहले दिन से ही उठ गया उसे अन्त तक सुधारा नहीं जा सका। यदि किसी ने मत विभिन्नता प्रकट की तो उसे विरोधी मानकर कुचलने का प्रयास किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि भ्रष्टाचार मुख्य संस्कृति बन गयी और भ्रष्टाचार के किसी भी प्रकरण पर कोई कार्यवाही नहीं हो पायी बल्कि विपक्ष तक को अपरोक्ष में धमकियां दी गयी। आज सुक्खु सरकार विरासत में मिली इस वस्तुस्थिति से बाहर निकल कर व्यवस्था परिवर्तन तभी कर पायेगी यदि वरीयता और नियम कानूनों को अभिमान दे पायी अन्यथा यह सिर्फ कागजी दावा होकर रह जायेगा।