अभी कुछ ही समय पहले जयराम सरकार ने 2600 करोड़ का कर्ज लिया है। यह कर्ज लेने के लिये सरकार को प्रतिभूतियों की नीलामी करनी पड़ी है। निश्चित है कि जब सरकार को कर्ज लेने के लिए प्रतिभूतियों की नीलामी करने पड़ जाये तो कर्ज लेने के अन्य सारे मार्ग समाप्त हो चुके होतेे हैं। प्रतिभूतियां सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा उठाये जाने वाले कर्ज की एवज में सरकार द्वारा दी जाती है। इस समय यदि सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों के कर्ज को मिलाकर देखें तो यह कर्ज एक लाख करोड़ से भी बढ़ जाता है। कर्ज की यह स्थिति इसलिये है क्योंकि एफ.आर.बी.एम. में संशोधन करके वित्तीय आकलनोे के फेल हो जाने को अपराधिक जिम्मेदारी से बाहर निकाल दिया गया है। इस परिदृश्य में आज जब मुख्यमंत्री प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र में जाकर करोड़ों की योजनाओं की घोषणाएं कर रहे हैं तो यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि क्या यह घोषणाएं जमीन पर उतर पायेगी या नहीं? इन घोषणाओं को पूरा करने के लिये कितना कर्ज लिया जायेगा और उसके लिए क्या-क्या गिरवी रखा जायेगा। यह सवाल इसलिये प्रसांगिक हो जाते हैं क्योंकि इन घोषणाओं को पूरा करने के लिये प्रदेश सरकार को अपने ही स्तर पर संसाधन जुटाने पड़ेंगे। केन्द्र की ओर से प्रदेश को अब तक क्या मिला है इसका सच प्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और अन्त में मुख्यमंत्री द्वारा प्रधानमन्त्री के सामने रिज मैदान की सार्वजनिक सभा में रखें आंकड़ों से पता चल जाता है। प्रधानमंत्री ने मण्डी में यह आंकड़ा दो लाख करोड़ परोसा था। चम्बा में गृहमन्त्री ने एक लाख बीस हजार करोड़ तथा नड्डा 72000 करोड़ और रिज मैदान पर मुख्यमन्त्री ने 12000 करोड़ बताया था। सूचना और जनसंपर्क विभाग के प्रेस नोट में यह दर्ज है।
जबकि 31 मार्च 2020 को सदन के पटल पर रखी कैग रिपोर्ट के मुताबिक 2019 तक केन्द्रीय योजनाओं में प्रदेश को एक भी पैसा नहीं मिला है। कैग के मुताबिक ही सरकार 96 योजनाओं में कोई पैसा नहीं खर्च कर पायी है। बच्चों को स्कूल बर्दी तक नहीं दी जा सकी है। कर्मचारियों को संशोधित वेतनमान के एरियर की किस्त तक नहीं दी जा सकी है क्योंकि सरकार के पास पैसा नहीं था। लेकिन 2019 में लोकसभा के चुनाव थे। 2019-20 के बजट दस्तावेज के मुताबिक इस वर्ष सरकार के अनुमानित खर्च और वास्तविक खर्चे में करीब 16,000 करोड़ का अन्तर आया है। कैग रिपोर्ट में यह दर्ज है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि जब केन्द्र ने कोई वितिय सहायता नही दी है तो इस बड़े हुये खर्च का प्रबन्ध कर्ज लेकर ही किया गया होगा। कैग रिपोर्ट पर आज तक कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के माननीय और मीडिया तक ने इस रिपोर्ट को शायद पढ़ने समझने का प्रयास नही किया है। इसी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि कुल बजट का 90% राजस्व व्यय हो चुका है। विकास कार्यों के लिए केवल 10% ही बचता है। वर्ष 2022-23 के 51,365 करोड़ का 10% ही जब विकास के लिये बचता है तो उसमें आज मुख्यमन्त्री द्वारा की जा रही घोषणाएं कैसे पूरी हो पायेगी? स्वभाविक है कि इसके लिये कर्ज लेने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह जाता है।
आज मुख्यमन्त्री अपनी सरकार की सत्ता में वापसी के लिये हजारों करोड़ों दाव पर लगा रहे हैं। हर विधानसभा क्षेत्र में करोड़ों की घोषणाएं की जा रही है। अभी अगला चुनावी घोषणा पत्र तैयार हो रहा है। उसमें भी वायदे किये जायेंगे। विपक्ष भी इसी तर्ज पर घोषणा पत्रों से पहले ही गारटियों की प्रतिस्पर्धा में आ गया है। केन्द्र द्वारा प्रदेश को जो कुछ भी देना घोषित किया गया है वह अब तक सैद्धांतिक स्वीकृतियों से आगे नहीं बढ़ पाया है। प्रदेश के घोषित 69 राष्ट्रीय राजमार्ग इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर सरकार श्वेत पत्र जारी करने के लिये तैयार नहीं है और न ही विपक्ष इसकी गंभीरता से मांग कर रहा है। जयराम सरकार को विरासत में 46,385 करोड़ का कर्ज मिला था लेकिन आज यह कर्जभार कहां पहुंच गया है इस पर कुछ नहीं कहा जा रहा है। 1,76,000 करोड़ की जी.डी.पी. वालेे प्रदेश में सार्वजनिक क्षेत्र के कर्ज को मिलाकर यह आंकड़ा एक लाख करोड़ तक पहुंचना क्या चिन्ता का विषय नहीं होना चाहिये यह पाठकों के आकलन पर छोड़ता हूं।