क्या यह महंगाई और बेरोजगारी किसी योजना का हिस्सा है

Created on Sunday, 03 July 2022 17:59
Written by Shail Samachar

अभी जीएसटी परिषद की बैठक के बाद वित्त मंत्री ने सूचित किया है कि कुछ वस्तुओं पर पांच से 18% तक जीएसटी लगेगा। इन वस्तुओं में खाद्य सामग्री भी शामिल हैं। इन वस्तुओं की सूची जारी हो चुकी है। स्वभाविक है कि इस फैसले के बाद महंगाई बढ़ेगी। डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के सबसे निचले पायदान पर पहुंच चुका है। आर बी आई के मुताबिक अभी रुपए में और गिरावट आयेगी। विदेशी निवेशकों ने बाजार से अपना निवेश निकालना शुरू कर दिया है। इसमें भी आर बी आई का मानना है कि विदेशी निवेशक आठ लाख करोड़ तक अपना निवेश निकाल सकते हैं। इस निवेश के निकलने का अर्थ होगा कि आने वाले दिनों में और भी भयानक रूप से बेरोजगारी का सामना करना पड़ेगा। अभी जून में ही आर बी आई ने अपने अध्ययन में देश के दस राज्यों बिहार, केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की आर्थिक स्थितियां चिंताजनक स्तर से भी आगे की हो जायेगी। क्योंकि इन राज्यों के कुल खर्च का 80 से 90% का खर्च केवल राजस्व पर हो रहा है। कैपिटल खर्च के लिए केवल 10% बच रहा है। 31 मार्च 2020 तक की हिमाचल को लेकर आयी कैग रिपोर्ट के मुताबिक यहां भी कुल खर्च का 87% राजस्व पर खर्च हो रहा है। राजस्व के खर्च में केवल वेतन भत्ते पैन्शन और ब्याज की अदायगी ही शामिल रहती है यह सब जानते हैं। केवल ब्याज पर ही 20% से अधिक खर्च हो रहा है। इस समय कुछ राज्यों का आउटस्टैंडिंग कर्ज ही आर बी आई के मुताबिक जी डी पी का 247% से लेकर 296% तक पहुंच चुका है। आर बी आई ने अपने अध्ययन में यह भी स्वीकार किया है कि देश में आर्थिक मंदी का दौर 2018-19 से शुरू है जो आज चिन्ता की सारी हदें पार कर गया है। ऐसे में यह सवाल बड़ा अहम हो जाता है कि क्या हमारी सरकारें केंद्र से लेकर राज्य तक इसके बारे में चिन्तित हैं और इससे बाहर निकलने के उपाय गंभीरता से खोज रही हैं। या सत्ता में बने रहने के लिये अपने संसाधनों को बेचने तक आ गयी है? आम आदमी इससे जैसे-जैसे प्रभावित होता जायेगा वह उसी अनुपात में आक्रोशित होता जायेगा। यह तथ्य है इस समय वित्तीय स्थिति पर आम आदमी कोई सार्वजनिक चर्चा न छेड़ दें इसलिए उसके सामने फर्जी मुद्दे खड़े करके उसका ध्यान बांटने का प्रयास किया जा रहा है। जिसके ताजा उदाहरण नूपुर शर्मा और तीस्ता सितलवाड़ हैं। नूपुर शर्मा पर सर्वाेच्च न्यायालय की टिप्पणी इसका प्रमाण है। इसी तर्ज पर सितलवाड़ के मुद्दे पर उच्च न्यायालय से लेकर सर्वाेच्च न्यायालय के जजों और पूर्व राष्ट्रपति के खिलाफ घृणास्पद टिप्पणियां सोशल मीडिया के मंचों पर आनी शुरू हो गयी है। लेकिन क्या यह टिप्पणियां महंगाई और बेरोजगारी की पीड़ा से आम आदमी को मुक्ति दिला पायेगी? शायद नहीं। आर बी आई ने यह शायद पहली बार स्वीकारा है कि आर्थिक मंदी 2018-19 से शुरू है। स्मरणीय है कि कोरोना का लॉकडाउन और रूस-यूक्रेन युद्ध इसके बाद आये हैं। इसीलिये महंगाई और बेरोजगारी के लिये इन्हें ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इसके लिये सरकार के 2014 से लेकर अब तक के लिये गये कुछ अहम फैसलों पर ध्यान देना होगा। 2014 में सत्ता परिवर्तन के तुरन्त बाद मोदी सरकार ने शांता कुमार कमेटी सार्वजनिक वितरण और कृषि पर बिठाई थी। जिसकी सिफारिशों पर तीन विवादित कृषि कानून आये। 2015 में सरकार प्रापर्टी टैक्स खत्म करके बड़े अमीरों को पहली राहत दी। इसके बाद 2016 में नोटबन्दी लाकर हर आदमी को अपनी जमा पूंजी लेकर बैंक तक पहुंचा दिया। लॉकडाउन में घर से काम में उद्योगों में रोबोट आ गये। विवादित कृषि कानून लाने से पहले श्रम कानूनों में संशोधन करके हड़ताल का अधिकार खत्म कर दिया। अब चुनाव जीतने के लिये प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण से लेकर मुफ्ति योजनाओं का सहारा लिया जा रहा है। इस सब पर गंभीरता और निष्पक्षता से विचार करते हुये आकलन करें कि क्या इसका परिणाम महंगाई और बेरोजगारी नहीं होगा तो और क्या होगा।