घातक होगा अग्निपथ पर बढ़ता विरोध

Created on Monday, 27 June 2022 09:29
Written by Shail Samachar

अग्निपथ योजना का विरोध लगातार बढ़ता और उग्र होता जा रहा है। सरकार और उसके समर्थकों का कोई भी तर्क यह युवा सुनने को तैयार नहीं है। सेना की इस चेतावनी कि जिनके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज होगी उनके लिये यह दरवाजे बंद हो जायेंगे का भी असर नहीं हुआ है। जनसाख्यिकी के अनुसार देश की 50% जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है। 55 से ऊपर के 15% और 25 से 55 के बीच 35% हैं। आज जो अग्निपथ का विरोध कर रहे हैं वह सब 25 से कम आयु वर्ग के हैं और सेना में निश्चित रूप से स्थाई रोजगार के पात्र यही लोग थे। यह चाहे मैट्रिक, प्लसटू या ग्रेजुएशन करके सेना का रुख करते वहां पर उन्हें 20-25 वर्ष का रोजगार मिलने की संभावना थी। जो केवल 4 वर्ष की ही रह गई है। 4 वर्ष बाद जब यह 23 लाख लेकर वापस आएंगे तो फिर बेरोजगारों की कतार में खड़े होंगे। इन्हें यह आश्वासन दिया जा रहा है कि उन्हें सरकारी सेवा में प्राथमिकता दी जाएगी। प्राइवेट सैक्टर में उन्हें सिक्योरिटी गार्ड रखने का आश्वासन दे रहा है। लेकिन क्या यही आश्वासन इनसे पहले भूतपूर्व सैनिकों को नहीं दिये गये हैं? क्या कोई भी सरकार यह दावा कर सकती है कि उसने सभी भूतपूर्व सैनिकों को रोजगार दे रखा है शायद नहीं। फिर 25 से 55 वर्ष के बीच भी तो रोजगार है और इसीलिए सभी सरकारों ने सरकारी सेवाओं के लिए अधिकतम आयु सीमा 40 से ऊपर कर रखी है। इस व्यवहारिक स्थिति के परिदृश्य में क्या इन युवाओं को कोई भी तर्क सरकार पर भरोसा करने के लिए प्रेरित कर सकता है। क्योंकि दूसरा कड़वा सच यह है कि जिन सरकारी अदारो में रोजगार सृजित होता था उन्हें विनिवेश और मौद्रीकरण के नाम पर सरकार प्राइवेट सैक्टर के हवाले कर चुकी है। प्राइवेट सैक्टर हाथ का विकल्प रोबोट लगाकर छटनी कर रहा है। इस छंटनी का विरोध न हो इसीलिए कोविड काल में लॉकडाउन के दौरान श्रम कानूनों में संशोधन करके हड़ताल का अधिकार समाप्त किया गया। लॉकडाउन के दौरान वर्क फ्रॉम होम के नाम पर उद्योगों में हाथ की जगह मशीनों ने ले ली है। फिर यह सारे तथ्य एक खुली किताब की तरह हर युवा के सामने है। ऐसे में कोई बताये की युवा इस के सामने रोजगार की उम्मीद कहां बची है? आज क्या बीस लाख रूपये से कोई व्यवसाय शुरू किया जा सकता है? क्या आज बीस लाख बैंक में जमा करवा कर इतना ब्याज मिल सकता है जिसके सहारे वह अपने और परिवार के लिए कोई निश्चित योजना बना सकता है। फिर उसे तो भूतपूर्व सैनिक का दर्जा भी हासिल नहीं होगा। ऐसे में जो प्राथमिकताएं उन्हें आश्वासित की जा रही है वही भूतपूर्व सैनिकों को हासिल है। क्या इससे इनमें अपने में ही हितों के टकराव की स्थिति पैदा नहीं हो जायेगी? इन सारे पक्षों पर एक साथ विचार करते हुए रोजगार के दृष्टिकोण से इस योजना को लाभदायक नहीं माना जा सकता है। रोजगार से हटकर इस योजना का दूसरा पक्ष और भी गंभीर है। इसके माध्यम से सेना में भी प्राइवेट सैक्टर के दखल का रास्ता खोला जा रहा है। इस समय देश में 35 सैनिक स्कूल चल रहे हैं जिनमें से 33 रक्षा मंत्रालय की सोसाइटी द्वारा संचालित हो रहे हैं और दो राज्य सरकारों के संचालन में हैं। लेकिन इस अग्निपथ योजना के साथ जो 100 सैनिक स्कूल खोले जाएंगे वह निजी क्षेत्र की पार्टनरशिप में खोले जा रहे हैं। इस भागीदारी में कोई भी एनजीओ, सोसाइटी, स्कूल आदि हो सकता है। यह स्कूल पहल से चल रहे स्कूलों से भिन्न होंगे। यह योजना में ही कहा गया है इस कड़ी में वर्ष 2022-23 से 21 स्कूल चालू हो जायेंगे। इनकी सूची जारी कर दी गयी है। इनमें अधिकांश स्कूल आर.एस.एस विद्या भारती के माध्यम से चल रहे हैं। स्वभाविक है कि जब एक विचार धारा की संख्या के साथ पार्टनरशिप रक्षा मंत्रालय की सोसाइटी की हो जाएगी तो दूसरी विचारधारा की संख्या के साथ यह भागीदारी कैसे मना की जायेगी। स्वभाविक है कि जो भागीदार स्कूल चलाने में निवेश करेगा उसके भी अपने कुछ नियम और शर्तें रहेगी। ऐसे में विभिन्न विचारधाराओं द्वारा संचालित स्कूलों से यह बच्चे सेना में एक साथ पहुंचेंगे तो एक अलग ही तरह का परिदृश्य खड़ा हो जायेगा। इसलिए सैनिक स्कूलों के संचालन में प्राइवेट सैक्टर की भागीदारी के प्रयोग से पहले इस पर एक खुली बहस से सर्वसहमति बनायी जानी आवश्यक थी और इसके अभाव में इस पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। ऐसे में जो विरोध उठ खड़ा हुआ है उसके परिदृश्य में इस योजना को वापिस लेना ही हितकर होगा।