इस वर्ष के अन्त में प्रदेश में चुनाव होने हैं मुख्यमंत्री हर क्षेत्र में जाकर नयी-नयी योजनाओं की घोषणाएं कर रहे हैं। इन घोषणाओं को जमीन पर उतारने के लिये कितने करोड़ धन की आवश्यकता होगी। यदि इन आंकड़ों का आकलन किया जाये तो यह योग शायद कुल बजट से भी बढ़ जायेगा। यह धन जुटाने के लिये कर्ज के अतिरिक्त और कोई साधन नहीं होगा। केंद्र हिमाचल को जयराम के कार्यकाल में कितना सहयोग दे चुका है और उसका व्यवहारिक सच क्या है इस पर पिछले अंक में चर्चा कर चुका हूं। क्योंकि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष और स्वयं मुख्यमंत्री जो आंकड़े परोस चुके हैं उन्हीं से इस सहायता पर संदेह होता है। यह संदेह कैग कि 31 मार्च 2020 को समाप्त हुये वर्ष को लेकर आई रिपोर्ट से और पुख्ता हो जाता है। इस रिपोर्ट के दूसरे ही पन्ने पर वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-20 तक भारत सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान के आंकड़े दर्ज हैं। तालिका 1-2 में गैर योजना गत अनुदान, राज्य योजना स्कीमों हेतु अनुदान, केंद्रीय प्रायोजित स्कीमों हेतु अनुदान में वर्ष 2017-18, 2018-19 और वर्ष 2019-20 के लिये इन स्कीमों में शुन्य अनुदान दिखाया गया है। संभव है कि मुख्यमंत्री और विपक्ष तथा मीडिया के विद्वानों ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया हो। लेकिन कैग रिपोर्ट में यह दर्ज है और यह रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी जा चुकी है तथा सरकार ने इसे स्वीकार भी कर लिया है।
प्रदेश का कर्ज भार 70000 करोड से पार जा चुका है। पिछली सरकार 46000 करोड का कर्ज छोड़ कर गयी थी। इस सरकार को हर वर्ष करीब 5000 करोड़ का कर्ज लेना पड़ा है। ऐसे में जब अब की जा रही घोषणाओं पर होने वाले खर्च को इसमें जोड़ा जायेगा तो यह आंकड़ा निश्चित रूप से एक लाख करोड़ तक पहुंच जायेगा। इसका अर्थ होगा कि अगले 5 वर्षों में यह कर्ज कई गुना बढ़ जायेगा। क्योंकि लिये हुए कर्ज की किस्तें और ब्याज चुकाने में ही सारे साधन लग जायेंगे। इसका दूसरा परिणाम होगा कि बेरोजगारी और महंगाई बढ़ेगी। बेरोजगारी में प्रदेश आज ही देश में छठे स्थान पर पहुंच चुका है। और आने वाले समय में स्थिति क्या हो जायेगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। आज ही सरकार राशन कार्डो के पुणे परीक्षण से सस्ते राशन के लाभार्थियों की संख्या कम करने का प्रयास कर रही है। जिस पर फिलहाल उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। मनरेगा में अभी तक नये वर्ष में बजट जारी नहीं हो सका है। हर विभाग में रिक्तियां चल रही है जिन्हें सरकार भरने में असमर्थ है। 2019 में स्कूलों में बच्चों को सरकार वर्दी नहीं दे पायी है। बल्कि अन्य वर्षाे में भी वर्दी वितरण समय पर नहीं हो पाया है। सैकड़ों बच्चों को सिलाई के पैसे का भुगतान नहीं हो सका है। कैग रिपोर्ट में वर्दियों को लेकर गंभीर सवाल उठाये गये हैं। ऐसे दर्जनों मामले कैग रिपोर्ट में ही दर्ज हैं जो सरकार की आर्थिक स्थिति का खुलासा सामने रखते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर डॉलर के मुकाबले में रुपए की कीमत लगातार गिरती जा रही है। सरकार बैंकों को निजी क्षेत्र को सौंपने के लिये हर समय प्रयासरत है। 2014 के मुकाबले सरकार का कर्ज भार दोगुना से भी अधिक हो चुका है। अधिकारी प्रधानमंत्री को आगाह कर चुके हैं कि यदि मुफ्ती की घोषणाओं पर रोक न लगायी गयी तो हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। ऐसी वस्तु स्थिति में केंद्र किसी भी प्रदेश की कोई बड़ी आर्थिक सहायता नहीं कर पायेगा यह तय है। सारी सहायता घोषणाओं से आगे नहीं बढ़ पायेंगी। इसलिए आज सत्ता के लिये प्रदेश को और कर्ज के गर्त में ले जाने के हर प्रयास से बचना होगा। मुख्यमंत्री को यह बताना होगा कि यह घोषणायें चुनावी वर्ष में ही क्यों हो रही है? इनके लिए धन का प्रावधान क्या है। यह स्पष्ट करना होगा कि इसके लिये और कर्ज नहीं लिया जायेगा। कर्ज लेकर खैरात बांटने की नीति से परहेज करना होगा।