प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता संभाले आठ वर्ष पूरे हो गये हैं। इन आठ वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने पर प्रधानमंत्री ने इसे गरीब कल्याण सम्मेलन का नाम देते हुये देश को संबोधित किया। इस संबोधन के लिये शिमला का चयन किया गया था। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर एक बड़ी बात यह कही है कि आठ वर्षों में उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिस पर देश को शर्मिंदा होना पड़ा। प्रधानमंत्री केे इस दावे का आकलन करने के लिए 2014 के अन्ना आंदोलन के दौरान देश के सामने क्या परोसा गया था उस पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। उस समय की सरकार को भ्रष्टाचार का पर्याय प्रचारित किया गया था। क्योंकि उस समय 2G स्पेक्ट्रम पर सीएजी की रिपोर्ट आ गई थी। इस रिपोर्ट में 2G स्पेक्ट्रम के आवंटन में 176000 करोड़ का घपला होने का खुलासा किया गया था। लेकिन इस पर चली जांच में उसी सी ए जी विनोद राय ने यह कहा कि उन्हें इस गणना में गलती लगी है और कोई घपला नहीं हुआ है। इसके लिए विनोद राय ने अदालत से क्षमा याचना भी की है। उसके खिलाफ मानहानि का मामला इसलिए नहीं बना क्योंकि विनोद राय संवैधानिक पद पर थे। अन्ना का आंदोलन संघ का प्रायोजित था यह सब जानते हैं। इस एक कदम झूठे मामले से देश की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचा है। क्या इस झूठ के बेनकाब होने पर आंदोलन के प्रायोजकांे को देश से क्षमा नहीं मांगनी चाहिए थी। आज गरीब के लिए जिन योजनाओं पर सम्मेलन को संबोधित किया जा रहा है क्या उसका एक सच यह नहीं है कि इस गरीब को जो उसके जमा पर 2014 में जो ब्याज मिलता था वहां अब आधा क्यों रह गया है? शुन्य बैलेंस के नाम से खोले गए जन-धन खातों में 1000 और 500 के न्यूनतम शेष की शर्त क्यों लगा दी गई? उस न्यूनतम पर खाता धारक को कोई लाभ क्यों नही मिलता? उज्जवला योजना के तहत बांटे गये गैस सिलेंडरों को हिमाचल में ही 65% लाभार्थी रिफिल नहीं करवा पाये हैं क्या यह गर्व करने का विषय है या शर्म महसूस करने का? गरीब के कल्याण के नाम पर क्या गरीब को ही महंगाई और बेरोजगारी की मार से सबसे ज्यादा नहीं ठगा गया? नोटबंदी जब घोषित की गयी थी तब प्रधानमंत्री ने इसके लाभ गिनवाते हुए यह दावा किया था कि भविष्य में जाली नोट छपने बंद हो जाएंगे। नए नोटों में कई सुरक्षात्मक प्रावधान होने के दावे किए गए थे। लेकिन इसका सच यह रहा है कि 99.6% पुराने नोट नये नोटों से बदल लिए गये। शेष बचे 0.4 नेपाल में नोटबन्दी प्रभावी न होने से नहीं बदले जा सके। इस तरह क्या शत प्रतिश्त पुराने नोट नये नोटों से नही बदले गये? फिर अब रिजर्व बैंक ने 2021-22 के लिये जो रिपोर्ट जारी की है उसमें साफ स्वीकारा गया है कि 10 रूपये के नोट से लेकर 2000 रूपये तक के हर मूल्य के जाली नोट अब भी छप रहे हैं। पूरे आंकड़े जारी किये गये हैं। 500 रूपये के नोटों में यह आंकड़ा 101.7% बताया गया है। क्या नोटबंदी के बाद भी जाली नोटों का छपना जारी रहना किसी भी तर्क से गर्व का विषय हो सकता है? अब जब कोरोना आया तब सबसे पहले आरोग्य सेतु एप डाउनलोड करना अनिवार्य किया गया। ऐसा न करने पर बहुत सारी बंदिशे घोषित की गयी। लेकिन जब यह मामला अदालत तक पहुंचा तो सरकार ने इस पर पूरी अनभिज्ञता प्रकट करते हुये साफ कहा कि सरकार ने इसे जारी नहीं किया है। इसी तरह टीकाकरण को लेकर हर तरह की बंदिशे जारी हुई। लेकिन यह मामला भी जब सर्वाेच्च न्यायालय में पहुंचा तो सरकार ने अपने जवाब में कहा कि टीका लगवाना अनिवार्य नहीं किया गया है यह एकदम ऐच्छिक है। कोरोना को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी घोषित नहीं किया है यह सामने आ चुका है। लेकिन इसी कोरोना को भगाने के लिये प्रधानमंत्री के आग्रह पर देश ने ताली थाली बजायी दीपक जलाये। क्या किसी और देश ने बीमारी को भगाने के लिये ऐसा कदम उठाया है? क्या इस पर आप शर्म कर पायेंगे? प्रधानमत्री की व्यक्तिगत बौद्धिकता को लेकर तो कई सवाल चर्चा में है। जिस विषय ‘टोटल पॉल्टिकल साइंस’ में स्नातकोतर होने का दावा करते हैं वह देश के किस विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता है यह आज तक सामने नहीं आया है। आज जब शासन के आठ वर्ष पूरे होने पर देश के सामने इस तरह के दावे किये जाएंगे तो स्वभाविक रूप से आर्थिक स्थिति को लेकर दर्जनों सवाल पूछे जाएंगे। वह सारे सवाल और दावे उछलेंगे ही जो 2014 के आंदोलन के दौरान पूछे जा रहे थे। जिस संसद को अपराधियों से मुक्त करवाने का दावा किया गया था वहां लोकसभा के 539 चयनित माननीय में से 43% अपराधिक छवि के हैं। इसमें कोई भी दल अछूता नहीं है। भाजपा 133 के आंकड़े के साथ शीर्ष पर है क्या यह सब गर्व का विषय है यह निर्णय आप स्वयं करें क्योंकि संभव है कि आपके हिंदुत्व के आगे यह कुछ भी न हो।