क्या अब बनेगा भ्रष्टाचार केंद्रीय मुद्दा

Created on Tuesday, 24 May 2022 13:34
Written by Shail Samachar
जयराम सरकार को प्रदेश में घटे पुलिस भर्ती पेपर लीक मामले की जांच अन्ततः सी बी आई को देनी पड़ी है। क्योंकि अब तक 73 लोगों की गिरफ्तारी करीब आठ लाख की रिकवरी और वाराणसी तथा बिहार के दलालों का पकड़ा जाना ऐसे बिंदु रहे हैं जिनके परिदृश्य में प्रदेश की एसआईटी के लिये इस मामले की जांच कर पाना आसान नहीं रह गया था। फिर प्रदेश उच्च न्यायालय में इस आश्य की एक याचिका भी दायर हो चुकी थी। इसलिए गुड़िया मामले की तर्ज पर उच्च न्यायालय के निर्देश आने से पहले ही सरकार को ऐसा फैसला लेना पड़ा है। सी बी आई जांच कब पूरी होती है और उसमें क्या सामने आता है तथा अदालत का उस पर क्या फैसला आता है इसका पता आने वाले दिनों में लगेगा। सरकार यह जांच सी बी आई को देकर अपनी निष्पक्षता का प्रचार कर रही है तो विपक्ष इसे अपने दबाव की जीत बता रहा है। सरकार और विपक्ष के इन दावों में कोई हारा है तो वह है आम आदमी। यह सही है कि इस मामले ने भ्रष्टाचार को चुनावों में केंद्रीय मुद्दा बनाये जाने के स्पष्ट संकेत दे दिये हैं। क्योंकि इस मामले ने जयराम के कार्यालय में घटे हर मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित कर लिया है। प्रदेश में अब तक पेपर लीक के पांच प्रकरण घट चुके हैं। पुलिस में ही जो 2019 के प्रकरण में संलिप्त पाये गये थे उनकी अब भी सक्रिय भूमिका सामने आ गयी है। शिक्षा विभाग में किस तरह से पेपर लीक को प्रश्न पत्रों का जल जाना कहा गया यह जांच में सामने आ गया है। कॉलेज प्रवक्ताओं कि 2017 से कोई भर्ती नहीं हुई है और अब उसके लिए जो पद भरने की अधिसूचना जारी की गयी है उसमें इस भर्ती के मानक प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा एच ए एस, एच पी एस, एच एफ एस आदि सेवाओं के लिये निर्धारित किये गये मानकों से अलग कर दिये गये हैं। जयराम सरकार इस दौरान जितने लोग विभिन्न विभागों में सेवानिवृत्त हुये हैं उतने पद भी नियमित रूप से भर नहीं पायी है। यह विधानसभा में पूछे गये प्रश्नांे और उनमें आये उत्तरों के आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है। पुलिस भर्ती प्रकरण में कांगड़ा के जिस व्यक्ति का नाम चर्चा में आ रहा है उसके संबंध शासन और प्रशासन के शीर्ष में बैठे किन लोगों से हैं यह सवाल आने वाले दिनों में उछलना तय है।
प्रदेश में घटा यह पेपर लीक मामला उस परिदृश्य में और भी संवेदनशील हो जाता है जब यह सामने आता है कि हिमाचल का नाम बेरोजगारी में देश के टॉप छः राज्यों में आ जाता है। यह उस प्रदेश की हालत है जिस पर देश में जनसंख्या के अनुपात में सिक्किम के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देेने का आरोप लगा था। केंद्रीय वित्त आयोग ने उसका संज्ञान लेकर इसे कम करने के निर्देश दिये थे। इन निर्देशों पर फेयर लान्ज में प्रदेश के अधिकारियों की वित्त आयोग के साथ तीन दिन की बैठक हुई थी। जिसमें दो वर्ष से खाली चले आ रहे पदों को समाप्त करने का फैसला लिया था। विधानसभा में ऐसे फैसले के लिये कांग्रेस और भाजपा ने एक दूसरे की सरकारों को जिम्मेदार ठहराया था। आज प्रदेश की जो हालत हो गयी है उसमें शासन और प्रशासन के शीर्ष पर बैठे लोगों को पूर्व में घटे इस सब का स्मरण रखना चाहिये था। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और प्रदेश कर्ज तथा बेरोजगारी के मुकाम पर पहुंच गया। प्रदेश की जनता इस सब का कैसे और क्या संज्ञान लेगी यह आने वाला वक्त बतायेगा।
इस समय यह सवाल इसलिये अहम हो जाते हैं कि प्रदेश में इसी वर्ष विधानसभा के लिये चुनाव होने हैं और नई सरकार बनेगी। भाजपा सत्ता में वापसी करने के लिये किसी भी हद तक जाने को तैयार होगी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रदेश का अगला चुनाव जयराम के नेतृत्व में लड़ा जायेगा। क्योंकि भाजपा पुष्कर सिंह धामी और जयराम जैसे युवाओं को भविष्य के नेतृत्व का प्रयोग कर रही है। धामी को हार के बाद भी नेता बना देना और धूमल की हार के कारणों की जांच से साफ इंकार कर देना इसके स्पष्ट प्रमाण है। जयराम पांचवी बार के विधायक हैं और उनके परिवार से कोई राजनीति में नहीं है। इससे यह माना गया था कि उनके कामकाज में व्यक्तिगत हित कभी प्रभावी नहीं रहेंगे। उनके अपने परिवार के किसी सदस्य का राजनीतिक दखल कभी चर्चा में नहीं आया है। लेकिन इसके बावजूद उनके कार्याकाल में प्रदेश का बहुत अहित हुआ है। जो आज चुनावी वर्ष में पेपर लीक प्रकरण से भाजपा और जयराम दोनों को सवालों के कटघरे में खड़ा कर देता है। यह सवाल जवाब मांगेंगे कि प्रदेश का यह कर्ज कहां निवेशित हुआ? मुख्यमंत्री बनने के बाद चंडीगढ़ में आयोजित पत्रकार वार्ता में हिमाचल के 7.19% शेयर के फैसले पर अमल करवाने के दावों का क्या हुआ। इन्वेस्टर मीट के दावों और कई मामलों में श्रेष्ठता के प्रमाण पत्रों के बाद अब कठिन जन योजनाओं के प्रचार के लिये दिल्ली में मीडिया सेंटर स्थापित और प्रचार एजेंसी की सेवायें लेने की व्यवस्था क्यों आयी? क्या नेतृत्व के ऐसे प्रयोग प्रदेश के आम आदमी की कीमत पर किये जायेंगे? शीर्ष प्रशासन के खिलाफ कोई भी कदम न उठा पाने की व्यवस्था क्यों है? निश्चित है कि आने वाले दिनों में भाजपा संघ जयराम और उनके सलाहकारों से यह सवाल पूछे ही जायेंगे। ऐसे में नेतृत्व के ऐसे प्रयोगों से प्रदेश की जनता कितनी देर और भ्रमित रह पायेगी यह देखना दिलचस्प होगा।