बैंकों में फ्राड के माध्यम से आम आदमी के पैसे की लूट कब तक जारी रहेगी? जो प्रधानमंत्री यह कहते थे ‘‘ना खाऊंगा न खाने दूंगा’’ वह इस लूट पर चुप क्यों है? क्या प्रधानमंत्री ने चौकीदार की भूमिका छोड़ दी है या इस पर अपनी मौन सहमति दे रखी है? इस तरह के कई सवाल गुजरात स्थित एबीजी शिपयार्ड कंपनी द्वारा 22842 करोड़ का बैंक फ्राड सामने आने के बाद उठ खड़े हुये हैं। क्योंकि इस कंपनी ने यह फ्राड 2012 से 2017 के बीच में किया है। 2012 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और आज देश के प्रधानमंत्री हैं। फिर यह फ्राड पहला फ्राड नहीं है बल्कि पहले पिछले 7 वर्षों में करीब 6 लाख करोड़ के बैंक फ्राड हो चुके हैं और अभी तक एक भी गुनाहगार पकड़ा नहीं गया है। इस फ्राड के सामने आने के साथ ही इस दौरान बैंकों के 25.24 लाख करोड़ के एनपीए में से 7 लाख करोड़ का राइट ऑफ किया जाना भी चर्चा में आ गया है। करीब 13 लाख करोड़ का धन बैंक फ्राड और एनपीए के राइट ऑफ किये जाने से नष्ट हो गया है। जबकि इस वित्तीय वर्ष 2022-23 में सरकार की कुल आय ही 23 लाख करोड़ होने का अनुमान है। इस आय में भी 65 हजार करोड़ सरकारी संपत्तियों के विनिवेश से जुटाया जायेगा। ऐसे में जिस भी व्यक्ति को सरकार के वित्तीय प्रबंधन की यह जानकारियां रहेंगी उनके लिये यह सारे मुद्दों से बड़ा सवाल होगा। क्योंकि इसके कारण महंगाई और बेरोजगारी बढ़ेगी जिसका सब पर असर पड़ेगा।
आज यदि 2014 की तुलना में महंगाई और बेरोजगारी का आकलन किया जाये तो इसमें 100 प्रतिशत से भी ज्यादा की बढ़ौतरी हुई है और इसी अनुपात में देश की 80 प्रतिशत से अधिक की जनता के आय के साधन नहीं बढ़े हैं। बल्कि इस दौरान बैंकों में जमा आम आदमी के जमा पर ब्याज दर कम हुई है। यही नहीं जीरो बैलेंस के नाम पर खोले गये बैंक खातों में न्यूनतम बैलेंस 1000 और डाकघरों में 500 रखने की शर्त लागू है। इस न्यूनतम पर खाता धारक को कुछ नहीं मिल रहा है। जबकि बैंकों को इससे कमाई हो रही है। इस संदर्भ में यह कहना ज्यादा सही होगा कि सरकार इन लुटेरों की लूट की भरपाई आम आदमी की जेब पर अपरोक्ष में डाका डाल कर रही है। इस लूट और डाके पर हिंदू-मुस्लिम मंदिर-मस्जिद हिजाब और धारा 370 तथा तीन तलाक के मुद्दे खड़े करके बहस को लंबित किया जा रहा है। लेकिन यह तय है कि देर सवेर महंगाई और बेरोजगारी जब बर्दाश्त से बाहर हो जायेंगी तब जो रोष का सैलाब आयेगा वह सब कुछ अपने साथ बहाकर ले जायेगा। क्योंकि जब बैंकों का एनपीए सरकार की राजस्व आय से बढ़ जाता है तो उस बैंकिंग व्यवस्था को डूबने से कोई नहीं बचा सकता। यह सरकार इस लूट के लाभार्थियों पर हाथ डालने की स्थिति में नहीं है। सरकार ने क्रिप्टो को अभी तक लीगल करार नहीं दिया है लेकिन इससे हुई कमाई पर टैक्स लेने की घोषणा बजट में कर रखी है। यह अपने में स्वतः विरोध है और इसी तरह के विरोधों पर यह सरकार टिकी हुई है। अब नीति आयोग सीधे नीति बनाकर सरकार को दे रहा है। नीति निर्धारण में संसद की भूमिका नहीं के बराबर रह गई है।
इस परिदृश्य में यह सवाल और भी अहम हो गया है कि प्रधानमंत्री इस सब पर चुप क्यों है? क्या सत्तारूढ़ भाजपा को इस लूट में हिस्सा मिल रहा है? यह हिस्से की चर्चा इसलिये उठ रही है क्योंकि इस समय भाजपा की घोषित संपत्ति वर्ष 2019-20 के लिए 4847.78 करोड़ दिखाई गई है। यह संपत्ति कार्यकर्ताओं के चंदे से संभव नहीं है। तय है कि इसके लिये बड़े घरानों से चुनावी बॉंडस के माध्यम से बड़ा चंदा आया है और यह बॉंडस गोपनीयता के दायरे में आते हैं इसलिए सार्वजनिक नहीं हो रहे। इसी कारण से लूट पर चुप्पी साधनी पड़ रही है। लेकिन इन चुनावों में जिस तरह से किसान समुदाय ने भाजपा का विरोध किया है उसमें आने वाले दिनों में जब महंगाई और बेरोजगारी से पीड़ित आम आदमी भी शामिल हो जायेेगा तो एकदम स्थितियां बदल जायेंगी यह तय है।