कर्ज, मंहगाई और बेरोजगारी बनाम विकास

Created on Monday, 18 October 2021 11:51
Written by Shail Samachar


प्रदेश की तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट के लिये उपचुनाव हो रहे है। इन उपचुनावों के लिये प्रदेश के बारह में से आठ जिलों में चुनाव आचार संहिता लागू है । प्रदेश के 68 विधानसभा क्षेत्रों में से 20 में मतदान होगा। विधान सभा के लिये आम चुनाव दिसम्बर 2022 में होना है वैसे यह संभावना भी बनी हुई है कि कहीं यह आम चुनाव तय समय से पहले ही उतर प्रदेश के चुनावों के साथ ही फरवरी-मार्च में ही न करवा लिये जायें। इस व्यवहारिक स्थिति को सामने रखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन उपचुनावों के परिणाम आने वाले आम चुनावों के परिणामों का भी साफ और स्पष्ट संकेत एवम संदेश होंगे। 2014 के लोकसभा चुनावों से लेकर 2017 के विधानसभा और फिर 2019 के लोकसभा के लिये हुए प्रदेश के सारे चुनाव भाजपा ने ही जीते हैं यह एक व्यवहारिक सच है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि 2014 से लेकर 2021 में हुए बंगाल चुनावों से पहले तक प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर भाजपा हर चुनाव जीतती आयी है। जहां जीत नही पायी वहां पर तोड़ फोड़ से सरकार बना ली। बंगाल चुनावों में पहली बार नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, जगत प्रकाश नड्डा और आर एस एस के नाम पर ऐसी हार मिली है जिसने मोदी है तो मुनकिन है की धारणा को बुरी तरह तोड़कर रख दिया है। बंगाल चुनावों के बाद जो भी चुनाव देश में हांगे उन पर बंगाल की हार का साया साफ देखने को मिलेगा यह भी स्पष्ट है। क्यांकि बंगाल चुनावों के बाद मोदी सरकार के सारे आर्थिक और राजनीतिक फैसले चर्चा में आ गये हैं। बढ़ती मंहगाई बेराजगारी, भ्रष्टाचार और कर्ज ने आम आदमी को इसके कारणों पर विचार करने के लिये बाध्य कर दिया है।हिमाचल में हो रहे इन उपचुनावों को भी इसी आईने में देखना होगा। विपक्ष मंहगाई और बेरोजगारी को मुद्दा बना रहा है। भाजपा और उसकी सरकार इस दौरान हुए विकास के नाम पर जनता से समर्थन मांग रही है। इसलिये सरकार के विकास के दावे को बिना किसी पूर्वाग्रह को परखना आवश्यक हो जाता है। जयराम सरकार ने दिसम्बर 2017 में चुनाव जीतकर जनवरी 2018 में प्रदेश की सता संभाली और 9 मार्च को विधानसभा में अपना पहला बजट भाषण पढ़ा़। मुख्यम़न्त्री जयराम ठाकुर ने अपने पहले बजट भाषण में यह आंकड़े रखे थें कि दिसम्बर 2017 में प्रदेश का कर्जभार 46385 करोड़ हो गया था जो कि पिछले पांच वर्षां की तुलना में 246% अधिक था। जयराम ने यह आरोप लगाया था कि वीरभद्र सरकार ने 18787 करोड़ का अतिरिक्त ऋण लिया था। दिसम्बर 2012 में सरकार छोड़ते समय यह कर्ज 27598 करोड़ था जो आज 46385 करोड़ हो गया है। लेकिन आज जयराम के ही चार वर्षां से भी कम समय में यह कर्ज 65000 करोड़ से पार चला गया है। जितना कर्ज वीरभद्र सरकार ने पांच वर्षां में लिया था उससे ज्यादा यह सरकार साढ़े तीन वर्षां मे ले चूकी हैं। यह कर्ज लेने के बावजूद इस सरकार को उपचुनाव घोषित होने के बाद खाद्य तेलों की कीमत बढ़ानी पड़ी है। आज प्रदेश भर में सड़कां की हालत क्या है यह किसी से छूपी हुई नही है। स्कूलों में अध्यापक नही है और अस्पताल में डाक्टर नही है। इस पर प्रदेश उच्च न्यायालय कई बार चिन्ता व्यक्त कर चुका है। रोजगार के जो आंकड़े आर्थिक सर्वेक्षण के माध्यम से विधानसभा पटल पर रखे गये हैं उनके मुताबिक 2019 में सरकार में नियमित कर्मचारियों की संख्या 1,81,231 थी जो 2020 में 1,81,430 हो गयी है। जिसका अर्थ है कि एक वर्ष में केवल 200 लोगो को नियमित रोजगार मिल पाया है। पार्ट टाईम 2019 में 3334 थे जो 2020 में 3619 हो गये। दैनिक वेतन भोगी 2019 में 7253 थे जो 2020 में 6256 रह गये हैं। यह सदन में रखे आंकड़े हैं । इनके अतिरिक्त जो भी और रोजगार दिया गया है वह सारा आउट सोर्स के माध्यम से है जिसमें रोजगार का माध्यम बनने वाली कम्पनी को हर व्यक्ति पर कमीश्न मिलता है। आज प्रदेश में आउटसोर्स के व्यापार में लगी कम्पनियों की संख्या 100 से ज्यादा हो गयी है। और इन्हें कमीश्न के नाम पर करोड़ों रूपये मिल रहे हैं। आउट सोर्स के माध्यम से लगने वाले कर्मचारी नियमित नही हो सकते क्योंकि वह सरकार के कर्मचारी है ही नही। ऐसे में आउटसोर्स के माध्यम से मिले रोजगार को क्या शोषण की संज्ञा नही दी जानी चाहिये।
मंहगाई के कारण आज पैट्रोल और रसोई गैस के दाम कहां पहुंच गये है यह किसी से छिपा नही है। लेकिन सरकार मंहगाई को यह कहकर जायज़ ठहरा रही है कि यह तो कांग्रेस के समय भी बढ़ी थी परन्तु यह नही बता रही कि तब गैस सिलैन्डर 450 रूपये मिलता था जो आज 1000 से उपर हो गया है। 2014 में जो बैंकों में जमा पुजी पर ब्याज मिलता था वह आज आधा रह गया है। क्योंकि आज बढ़ते एन पी ए के कारण सरकार को बैड बैंक बनाना पड़ गया है। बैड बैंक का स्पष्ट अर्थ है कि देश की बैंकिग व्यवस्था कभी भी फेल हो सकती है। लेकिन सरकार इन कारणों को जनता में ला नही पा रही है। क्योंकि इससे सरकार की आर्थिक नीतियां पर एक सार्वजनिक बहस छिड़ जायेगी जो सरकार के लिये घातक होगी। ऐसे में मंहगाई बेरोजगारी और बढ़ता कर्ज सबके सामने है। अब देखना यह है कि जनता इस सबके बाद भी सरकार को समर्थन देती है या नही।