क्या मंहगाई-किसान आन्दोलन पर भारी पड़ेगी

Created on Wednesday, 03 March 2021 13:31
Written by Shail Samachar
पैट्रोल और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों पर सरकार जिस तरह से बेपरवाह चल रही है और इसके लिये पूर्व सरकारों को जिम्मेदार ठहराया गया उससे यह लगने लगा है कि यह कीमतें बढ़ना किसी निश्चित योजना का हिस्सा है। क्योंकि इन कीमतों के लिये आम आदमी अब यह कहने लगा पड़ा है कि विपक्ष भी इस बारे में कुछ नहीं कर रहा है। आम आदमी विपक्ष से यह चाहता है कि कीमतों के बढ़ने का जो विरोध वह नहीं कर पा रहा है वह काम विपक्ष करे। शायद सरकार भी विपक्ष और आम आदमी को कीमतों के विरोध में व्यस्त करके किसान आन्दोलन की ओर से ध्यान हटवाना चाहती है। क्योंकि कच्चे तेल पर केन्द्र और राज्य सरकारें जो शुल्क ले रही हैं यदि उसे आधा कर दिया जाये तो यही कीमत साठ रूपये लीटर पर आ जायेगी। इस समय कच्चे तेल की कीमत करीब तीस रूपये है जिस पर केन्द्र तेतीस और राज्य सरकारें बीस रूपये शुल्क वसूल कर रही हैं जबकि मंहगाई का एक ही कारण है कि जो लाखों करोड़ का कर्ज बड़े उद्योगपतियों का वसूल नहीं किया जा रहा है यदि वह कर्ज वापिस आ जाये तो मंहगाई भी कम हो जायेगी और सरकार को अपने सार्वजनिक उपक्रम भी बेचने नहीं पड़ेंगे। लेकिन सरकार की नीयत और नीति दोनों ही आम आदमी की बजाये बडे़ उद्योग घरानों को लाभ पहुंचाने की है। सरकार की नीतियों के परिणाम स्वरूप ही तो अदानी को फरवरी माह में आठ अरब डालर का लाभ हुआ है। कोरोना काल में आपदा का जितना लाभ अंबानी -अदानी को हुआ है उससे सरकार की नीतियों का सच सामने आ जाता है। इसी सच के सामने आने से अंबानी -अदानी किसान आन्दोलन में एक मुद्दा बन गये हैं।
किसान आन्दोलन पूरे देश में फैलता जा रहा है क्योंकि जैसे जैसे यह कृषि कानून आम आदमी और किसान को समझ आते जायंेगे उसी अनुपात में यह आन्दोलन गति पकड़ता जायेगा। क्योंकि सरकार की नीतियों के कारण मंहगाई और बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है। इसलिये बेरोज़गार युवाओं को इस आन्दोलन का हिस्सा बनने के अतिरक्ति और कोई विकल्प नहीं रह जायेगा। किसान और बेरोज़गार सरकार की इस नीयत और राजनीति को समझ चुका है। इसलिये किसान ने अब अगले चुनावों में सरकार को हटाने का ऐलान कर दिया है। इस समय सरकार मंहगाई, बेरोज़गारी और किसानों की बजाये अपना पूरा ध्यान चुनावों पर केन्द्रित करके चल रही है। चुनावों के लिये सरकार को अंबानी-अदानी से ही इतने संसाधन मिल जायेंगे की उसे किसी तीसरे के पास जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। इन्ही चुनावों के लिये सारे राजनीतिक दलो में तोड़-फोड़ की जा रही है। हर भ्रष्टाचारी को भाजपा में संरक्षण मिल रहा है बल्कि भाजपा किस हद तक भ्रष्टाचार को संरक्षण देती है इसका सबसे बड़ा प्रमाण शान्ता कुमार ने अपनी आत्म कथा में देश के सामने रख दिया है। पूरी भाजपा इस खुलासे के बाद मौन है। इन खुलासों के परिणामों से बचने के लिये चुनावी सफलता ही सबसे बढ़ा साधन है और उसे हालिस करने के लिये साम दाम और दण्ड की नीति पर चला जा रहा है। बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस का ‘‘जी 23’’ कांग्रेस से बाहर निकल कर भगवा हो जाये। राजनीतिक दलों में तोड़-फोड़ और ईवीएम के भरोसे कितनी चुनावी सफलता मिलती है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। क्योंकि ईवीएम की विश्वसनीयता पर उठे सवालों का आज तक कोई जवाब सामने नहीं आया है।
इस समय देश आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुज़र रहा है। आर्थिक संसाधन योजनाबद्ध तरीके से प्राईवेट सैक्टर को सौंपे जा रहे है। एफडीआई के नाम पर विदेशी कंपनीयां आती जा रही हैं। राजनीतिक दलों में तोड़-फोड़ जारी है। असहमति को राष्ट्रद्रोह की संज्ञा दी जा रही है। शीर्ष न्यायपालिका की विश्वयनीयता पर भी सवाल उठते जा रहे हैं। समाज में एक वर्ग हिन्दु राष्ट्र के लिये कोई भी कीमत अदा करने के लिये तैयार है। वह पैट्रोल और गैस इससे भी दो गुणे दामों पर खरीदने को तैयार है। उसे अदानी -अम्बानी सफल व्यापारी नज़र आ रहे हैं। मोदी की वकालत में नेहरू-गांधी परिवार को गाली देना उनका धर्म बन गया है। किसान आन्दोलन उनकी नज़र में देश के लिये घातक है इसे वह कांग्रेस और वाम दलों का खेल मान रहे हैं। मंहगाई और बेरोज़गारी उनके लिये कोई सरोकार नहीं रह गये हैं। सरकार ने बड़ी सफलता के साथ हिन्दुराष्ट्र की वकालत के लिये एक वर्ग खड़ा कर लिया है। कुल मिलाकर एक ऐसा ध्रुवीकरण बनता जा रहा है जिसके परिणामों की परिकल्पना भी भयावह लगती है।