क्या कंगना प्रकरण में हिमाचल सरकार और प्रदेश भाजपा का दखल जायज़ है? यह सवाल पूछा जाना इसलिये महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि प्रदेश भाजपा ने इसके लिये एक हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है और इसका श्री गणेश भी स्वयं प्रदेश अध्यक्ष सांसद सुरेश कश्यप ने शुरू किया है। इस अभियान के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार से कंगना का मकान बीएमसी द्वारा तोड़े जाने से हुए नुकसान की भरपाई की मांग की जा रही है। कंगना को हिमाचल सरकार ने सुरक्षा प्रदान कर रखी है। हिमाचल सरकार की सिफारिश पर केन्द्र सरकार ने भी कंगना को वाई प्लस सुरक्षा उपलब्ध करवा रखी है। फिल्म अभिनेत्राी कंगना रणौत हिमाचल से ताल्लुक रखती हैं। हिमाचल की बेटी है और इस नाते उन्ही की ही नहीं बल्कि प्रदेश के हर नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करना राज्य सरकार का दायित्व हो जाता है। लेकिन कंगना प्रकरण को जिस तरह से प्रदेश और देश की जनता के सामने परोसा जा रहा है उससे यह संदेश जा रहा है कि मामला भाजपा बनाम विपक्ष हो गया है क्योंकि केन्द्र सरकार ने कंगना को वाई प्लस सुरक्षा प्रदान करने में जो शीघ्रता दिखाई है उससे यही संकेत उभरते हैं। जबकि सुरक्षा प्रदान करने से पहले और वह भी वाई प्लस वर्ग की उसके लिये एक सुनिश्चित प्रक्रिया अपनाई जाती है। खतरे की गंभीरता का आकलन किया जाता है। इस प्रकरण में जो शीघ्रता दिखाई गयी है उससे यही उभरता है कि इस सबकी तैयारी बहुत पहले से चल रही थी।
इस परिदृश्य में यह जानना आवश्यक हो जाता है कि कंगना-शिव सेना विवाद है क्या और क्यों शुरू हुआ। सिने अभिनेता स्व. सुशान्त सिंह राजपूत की मौत के बाद यह विवाद खड़ा हुआ कि आत्म हत्या ही है या हत्या है। यह सवाल इतना उलझ गया है कि चलते-चलते बिहार बनाम महाराष्ट्र राज्य पुलिस बनाम सीबीआई तक हो गया। ड्रग्स का सवाल इससे जुड़ गया है। ड्रग्स को लेकर पहला संकेत भापजा नेता डा.स्वामी के ब्यान से उभरा। आज इस मामले की जांच में केन्द्र की अलग-अलग ऐजैन्सीयों के दर्जनों अधिकारी उलझे हुए हैं और अभी तक यह मामला हल नही हो पाया है। यह माना जा रहा है कि बिहार विधानसभा के चुनावों में भी यह मुद्दा बनेगा। इस सुशान्त प्रकरण में उस समय और गंभीरता बढ़ गयी जब इस मामले में हिमाचल की बेटी पदमश्री कंगना रणौत का अर्णब गोस्वामी के टीवी चैनल रिपब्लिक को दिया साक्षात्कार सामने आया। 19 जुलाई के इस साक्षात्कार में कंगना रणौत ने सुशान्त सिंह राजपूत की आत्म हत्या को एक सुनियोजित हत्या करार दिया। कंगना ने पूरे दावे के साथ सुशान्त की मौत को हत्या करार दिया और यहां तक कह दिया कि यदि वह इस आरोप को प्रमाणित नही कर पायेगी तो वह अपने पदमश्री सम्मान को वापिस कर देंगी।
कंगना ने इस साक्षात्कार में फिल्म जगत पर गंभीर आरोप लगाये हैं। पूरे दावे के साथ सिने जगत में मूवी माफिया के आप्रेट करने के आरोप लगाते हुए कई बड़े नामों का सीधे जिक्र किया है। आत्म हत्या तक के लिये उकसाने के आरोप कुछ लोगों पर लगाये हैं। इन्हीं आरोपों में कुछ तो सत्तारूढ़ शिव सेना को सीधे आहत करते हैं। इन आरोपों पर हर तरह की प्रतिक्रियाएं आना स्वभाविक था और आयीं। अर्णब गोस्वामी को दिये साक्षात्कार के बाद कंगना और शिव सेना में वाकयुद्ध शुरू हो गया। कंगना ने जब पूरे दावे के साथ यह कहा कि सुशान्त की हत्या की गयी है और वह उसे प्रमाणित कर सकती है। तब यह स्वभाविक और आवश्यक हो जाता है कि इस मामले की जांच कर रही एजैन्सीयां कंगना का ब्यान दर्ज करती। उसके दावों की पड़ताल की जाती। कंगना को इस संद्धर्भ में अपना ब्यान दर्ज करवाने के लिये बुलाया गया था लेकिन मनाली में होने के कारण वह नही गयी। जब कंगना ने सुशान्त की मौत को लेकर इतना बड़ा खुलासा कर दिया था और डा. स्वामी जैसा बड़ा भाजपा नेता इस प्रकरण में ड्रग्स माफिया की भूमिका की ओर संकेत कर चुका था तब शासन-प्रशासन की हर आॅंख का खुलना भी स्वभाविक हो जाता है। संभवतः इसी परिप्रेक्ष में बीएमसी भी सक्रिय हुई और कंगना के कार्यालय में हुए अवैध निर्माण पर दो वर्ष पहले दिये गये नोटिस पर सक्रिय हुई। इसी सक्रियता में अवैध निर्माण तोड़ दिया गया। जब तोड़ फोड़ की कारवाई चल रही थी उस समय उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी। इस पर उच्च न्यायालय ने स्टे आदेशित करते हुए यथा स्थिति बनाए रखने को कहा है। लेकिन स्टे आदेशित होने से पहले ही तोड़ फोड़ पूरी हो चुकी थी। बल्कि उच्च न्यायालय ने यहां तक कहा कि यह अवैधताएं एक रात में खड़ी नही हो गयी हैं। कंगना के निर्माणों में अवैधता है इससे कंगना ने इन्कार नही किया है। सवाल सिर्फ इतना है कि क्या इसे तोड़ने के लिये कंगना का वहां होना आवश्यक था? क्या कंगना जैसी पदमश्री से सम्मानित अभिनेत्राी को ऐसी अवैधताओं की वकालत करनी चाहिये?कंगना ने पूरे फिल्म जगत पर ड्रग्स के गंभीर आरोप लगाये हैं और प्रत्युत्तर में उस पर भी यही आरोप लगे हैं। इन आरोपों की जांच होना आवश्यक है। क्या कंगना को ऐसी जांच में सहयोग नही करना चाहिये? यदि उसे जांच के लिये बुलाया जाता है तो क्या उसे बदले की कारवाई कहा जाना चाहिये?
कंगाना ने महाराष्ट्र और उद्धव ठाकरे को लेकर जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया है क्या उसका स्वागत किया जाना चाहिये? जिन लोगों के खिलाफ देशद्रोह के मामले दर्ज किये गये है क्या उनके आरोप और भाषा कंगना से भिन्न रहे हैं? आज जिस तरह से प्रदेश सरकार और भाजपा ने इस मामले में अपने को शामिल कर लिया है वहां पर उसके अपने ही खिलाफ दर्जनों ऐसे सवाल खड़े हो जाते हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही हो जाता है कि क्या सरकार और भाजपा अवैध निर्माणों के पक्ष में है।