आपदा को अवसर में बदलना है भाजपा के नौ सौ कार्यालयों का निर्माण

Created on Monday, 03 August 2020 12:43
Written by Shail Samachar

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में केन्द्र में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता संभाली थी। 2014 के चुनावों में अच्छे दिन और प्रत्येक के खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख आने के वायदे किये गये थे। देश की जनता से कहा गया था कि उसने कांग्रेस को राज करने के लिये साठ वर्ष दिये हैं और उसे केवल साठ महीने दिये जायें। कांग्रेस जो साठ वर्षों में नही कर पायी है भाजपा ने वह सब साठ महीनों में करने का वायदा किया था। 1,76,000 करोड़ के टूजी स्कैम जैसे जो भ्रष्टाचार के मामले उस दौरान सामने थे और उनमें गिरफ्तारीयां तक हुई थी। उनको अंजाम तक पहुंचाने का वायदा किया गया था। देश में लाखों करोड़ों के कालेधन की समस्या से निपटना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। पांच वर्ष के कार्यकाल में इतने कामों को अन्जाम देना आसान नही था। फिर इन कामों में रोड़ा अटकाने के लिये तो टूटा फूटा विपक्ष सबसे बड़ी बाधा था। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा तो दिया गया था लेकिन इसी से काम हल होने वाला नही था। क्योंकि वामदल, चन्द्रबाबू नायडू, ममता बैनर्जी, बहन मायावती और अखिलेश यादव जैसे भी कई लोग थे जिनसे निपटना कोई आसान काम नही था। इस तरह की बहुत सारी आपदायें थी जिनको अवसर में बदलना बड़ी चुनौती था। इस तरह की  राजनीतिक विरासत से पार पाकर देश को आज आत्मनिर्भरता के मुकाम तक पहुंचाना सही में मोदी सरकार और भाजपा की एक बड़ी उपलब्धि है।
आज भाजपा के देशभर में 900 कार्यालय बनने जा रहे हैं। जब भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने कार्यकर्ताओं को यह जानकारी  दी कि पार्टी के पांच सौ कार्यालयों के निर्माण का कार्य अमितशाह के समय ही पूरा हो गया था और शेष बचे चार सौ कार्यालयों का निर्माण वह शीघ्र ही पूरा कर लेंगे। तो निश्चित रूप से यह कार्यकर्ताओं के लिये एक बहुत बड़े गर्व का विषय था। तब उन्हे सही में यह एहसास हुआ होगा कि जब पार्टी के अच्छे दिन आ गये हैं तो अब आगे कार्यकर्ताओं की ही बारी आयेगी। वैसे तो प्रधानमन्त्री मुद्रा ऋण योजना में दिया गया ग्यारह लाख करोड़ का ऋण भी तो कार्यकर्ताओं के ही काम आया है। इसीलिये तो इसमें कागजी औपचारिकताओं को गौण ही रखा गया था। इसी उद्देश्य से तो अब बैकों को निर्देश दिये गये हैं कि वह खुले मन से ऋण बांटे। उन्हें सीबीआई, सीबीसी और सीएजी से डरने की कोई जरूरत नही है। आखिर सरकार इससे ज्यादा उदारता कैसे ला सकती है। वर्ष 2019 में बैंकों में डेढ लाख करोड़ के फ्राड के मामले घटे हैं। आरटीआई में सूचना भी बाहर आ गयी है लेकिन किसी बैंक के खिलाफ कोई बड़ी कारवाई नही की गयी है। इस फ्राड से भी कुछ लोगो ने तो कमाया है। सरकार इसी सबके लिये तो डिजिटल व्यवस्था पर बल दे रही है।
 कालाधन एक बड़ी  समस्या थी। इससे निपटने के लिये नोटबन्दी से बढ़िया कोई दूसरी योजना हो ही नही सकती थी। दो हजार का नोट लाकर संग्रहण और आसान कर दिया गया। 99.6ः पुराने नोट आसानी से नये नोटों के साथ बदल लिये गये और कालेधन से अपने आप छुटकारा मिल गया। इसीलिये 2014 से पहले बाबा रामदेव जैसे व्यापारी जो हर रोज कालेधन के आंकड़ों का ही हिसाब लगाते रहते थे। अब 2300 करोड़ का एनपीए मुआफ करवाकर इस समस्या से निजात पा चुके हैं। ऐसे दर्जनों लोग हैं जिनका लाखों करोड़ का एनपीए खत्म कर दिया गया और देश ने इसे आराम से स्वीकार भी कर लिया है। आज तो एलआईसी में भी तीस हजार करोड़ का एनपीए हो गया है। जीपीएफ, ईपीएफ संकट में आ गये हैं। संासदो/विधायकों के वेतनभत्तों में सरकार को 30ः की कटौती करनी पड़ी है। केन्द्र सरकार का बजट चार माह में ही दम तोड़ गया है। सारी नयी योजनाओं को 31 मार्च तक के लिये स्थगित कर दिया गया है। सरकारें राजस्व की कमी से जूझ रही हैं। महामारी के संकट में कई सरकारें डाक्टरों तक को नियमित वेतन नही दे पा रही हैं। सरकारों की ऐसी हालत के बावजूद भी भाजपा की वर्चुअल रैलियां अपनी जगह नियमित चल रही हैं। हजारों करोड़ का पार्टी कार्यालयों के निर्माण का प्रौजैक्ट पूरी रफ्तार से चल रहा है। नोटबदी के संकट काल में पार्टी कार्यालयों के लिये जमीनें खरीदी गयी। भले ही आम आदमी को उस दौरान नये नोट मिलने में लम्बा इन्तजार करना पड़ा हो लेकिन उस दौरान भाजपा को यह करोड़ो का लेन-देन करने में कोई दिक्कत नही आयी है। अच्छे दिनों की परिभाषा इससे बेहतर और क्या हो सकती है।
 राष्ट्रीय बैंकों की एक बड़ी खेप निजिक्षेत्र को दी जा रही है। यह करके भाजपा अपने जनसंघ के समय के उस वायदे को पूरा करने जा रही है जो उस समय बैंकों के राष्ट्रीयकरण के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में तब के जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. बलराज मद्योक और उनके मित्रों मीनू मसानी तथा रूस्तमजी, कावासजी कपूर ने याचिका डालकर किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीयकरण के खिलाफ फैसला दिया था जिसे स्व.श्रीमति इन्दिरा गांधी ने संविधान के पच्चीसवें संशोधन से निरस्त किया था। आज मोदी सरकार पूरी मेहनत के साथ देश को उस दौर में ले जाने के लिये दिन रात काम कर रही है। कांग्रेस इस पुनीत कार्य में व्यवधान पैदा कर रही है इसलिये उसकी सरकारें गिराना समय की जरूरत बन गयी है। आज अगर करोड़ो लोग बेरोज़गार होकर भुखमरी के कगार पर पहुंच गये हैं तभी तो वह आत्मनिर्भरता का महत्व समझकर सरकार पर बोझ बनने से परहेज करेंगे।