क्या कोरोना अर्थव्यवस्था पर सुनियोजित हमला है

Created on Tuesday, 14 July 2020 06:51
Written by Shail Samachar

 

क्या कोरोना विश्व अर्थव्यवस्था के खिलाफ एक जीवाणु युद्ध है। यह सवाल पिछले कुछ दिनों से उठना शुरू हो गया है। विश्व के अधिकांश देश कोरोना से ग्रस्त हैं। हर प्रभावित देश की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है। कोरोना के कारण आर्थिक गतिविधियों पर विराम लग गया है। कोरोना चीन से फैला या अमेरीका से इसको लेकर उठी बहस अभी तक बेनतीजा है। लेकिन इसके लिये अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका पर गंभीर आरोप लगाये हैं। उसने डब्लयूएचओ का वित्त पोषण करने से इन्कार कर दिया है और संगठन से बाहर भी चला गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पर फार्मा कंपनीयों का दबाव होने का आरोप लगा रहा है। मधूमेह और उच्च रक्त चाप के लिये जिस तरह से मानको में पिछले कुछ अरसे से बदलाव किया गया है उससे सीधे दवा निर्माता कंपनीयों को ही लाभ हुआ है क्योंकि जब भी किसी रोग के निदान के मानक बदले जायेंगे तो उसका लाभ दवा निर्माताओं को ही पहुंचेगा यह स्वभाविक है। विश्व में हर दस पन्द्रह साल के अन्तराल में कोई न कोई महामारी आती रही है और उससे भारी संख्या में लोग मरे भी हैं। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ है कि किसी ने आने वाली बिमारी के नाम की घोषणा वर्ष/छः महीने पहले ही कर दी हो और यह भी दावा कर दिया हो कि वह उस बिमारी की दवा की खोज में भी लग गया है। परन्तु कोरोना के मामले में बिल गेट्स को लेकर कुछ विडियोज़ वायरल हुए हैं जिनमें वह कोरोना की भविष्यवाणी कर रहा है और साथ ही उसकी दवा खोजने का दावा भी कर रहा है। 18 अक्तूबर 2019 को न्यूयार्क में हुई एक बैठक में बिल गेट्स का यह दावा बहुत चर्चा में है। इस बैठक में बिल गेट्स ने यह कहा है कि अगला विश्वयुद्ध हथियारों से नही बल्कि कोरोना जीवाणु से लडा जायेगा।
बिल गेटस की इस भविष्य वाणी पर भारत में कई डाक्टरों ने कई सवाल उठाये हैं और गंभीर आरोप भी लगाये हैं। इनमें प्रमुख रूप से डा. तरूण कोठारी और डा. विश्वरूप राय चैधरी जैसे डाक्टर हैं जिन्होंने चुनौती देकर यह कहा है कि कोरोना एक सामान्य फ्लू है। डाक्टर कोठारी ने तो यहां तक कहा है कि वह कोरोना को महामारी सिद्ध करने वाले को एक लाख का ईनाम देंगे। इन डाक्टरों ने केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को पत्र ई-मेल भेजकर अपना पक्ष रखने के लिये समय मांगा जो उन्हें नही मिला। महामारी के रूप में प्रचारित करने को फार्मा कंपनीयों का प्ले करार देते हुए अर्थव्यवस्था पर एक सुनियोजित जीवाणु युद्ध कहा है। फार्मा कंपनीयां अपने बिजनैस प्रोमोशन के लिये किस तरह के हथकण्डे इस्तेमाल करती हैं इसका खुलासा नागपुर स्थित एनजीओ ‘‘साथी’’ द्वारा अजी़म प्रेमजी के सहयोग से किये गये एक अध्ययन में सामने आ चुका है। डा. वाजेपयी की 2016 की एक रिपोर्ट को सरकार और जनता के सामने रखा गया है। इन डाक्टरों के मुताबिक  In fact, the competition among a large number of private pharmaceutical companies has led them to depend on " the tried and tested 3Cs: convince if possible,  confuse if necessary, and corrupt if nothing else works". दवाई उद्योग में कितना मुनाफा है और यह कितना कमीशन इस पर डाक्टरों और अन्य को आॅफर करते हैं इसका खुलासा हिमाचल सरकार को सीजीए द्वारा सौंपी वित्तिय वर्ष 2017-18 की रिपोर्ट से सामने आ जाता है। इस रिपोर्ट में सीएमओ मण्डी द्वारा लोकल मार्किट से खरीद की गयी दवाईयों पर 10%से लेकर 83% तक कमीशन दिये जाने का खुलासा किया गया है। हिमाचल का नालागढ़ क्षेत्र फार्मा हब के रूप में जाना जाता है। यहां कई फार्मा कंपनीयों की दर्जनों दवाईयां टेस्टों में फेल हो चुकी हैं। एक कंपनी की दवाई से तो एक दर्जन के करीब बच्चों की मौत हो गयी थी। इस पर कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था क्योंकि यह एक बड़ा मुद्दा बन गया था। लेकिन यह मामला दर्ज होने से आगे शायद नही बढ़ा है। किसी भी कंपनी का आज तक कोई लाईसैन्स तक रद्द नही हुआ है। दवाईयांे के रेट लागत से कितने गुणा ज्यादा चार्ज किये जा रहे हैं इसका खुलासा अलीशेर कादरी के फेसबुक पर आये विडियो से हो जाता है। लेकिन आज तक किसी कंपनी के खिलाफ सरकार कोई कारगर कारवाई नही कर पायी है। इससे फार्मा कंपनीयों के राजनीतिक प्रभाव का अन्दाजा लगाया जा सकता है।
 इस दिशा में ताजा उदाहरण आईसीएमआर का सामने आया है। आईसीएमआर भारत वायोटेक इन्टरनेशनल लि. के साथ संयुक्त रूप से कोरोना वैक्सीन पर काम कर रहा है। जब योग गुरू रामदेव ने यह घोषणा की कि पंतजलि ने कोरोना के लिये दवाई तैयार कर ली है तब आईसीएमआर ने उन बारह संस्थानों को पत्र लिखकर कहा कि यह वैक्सीन पन्द्रह अगस्त तक तैयार हो जानी चाहिये। इन संस्थानों को इसके ट्रायल परीक्षण के लिये चुना गया है यह संस्थान इस तरह के ट्रायल परीक्षण के लिये कितने सही पात्र हैं इसका खुलासा पीएमएसएफ के राष्ट्रीय संयोजक डा. हरजीत भट्टी और कार्यकारिणी के सदस्य डा. विकास वाजपेयी के पत्र से हो जाता है। इसी पत्र के दौरान वायरौलौजी विशेषज्ञ डा. कंग के त्यागपत्र से स्थिति और स्पष्ट हो जाती है क्योंकि आईसीएमआर ने जिस तरह से ट्रायल सहयोगियों का चयन किया है उनकी पात्रता पर यह कहा गया है। Of the Principal investigators, there is no pulmonologist (chest and lungs physician), only two are specialists in MD general medicine, two pharmacologists, three general physicians, two experts of Preventive and Social Medicine (PSM). The qualifications of others could not be verified. Surprisingly, even though director AIIMS, New Delhi is a ‘distinguished’ pulmonologist, but the principal investigator from the institute is a professor of PSM, while there is no representation from department of ‘Pulmonary medicine.’
One of the principal investigators is one Jitendra Singh Kushwaha, director of Prakar Hospital Pvt. Ltd., Kanpur, who it seems runs a business of conducting clinical trials. He apparently has expertise not just in allopathic drugs but also ayurvedic drugs, for the Clinical Trials Registry of ICMR mentions his name as a principal investigator for a trial of ‘Herbal Oil application in the prevention of mosquito bite.’ Another PI, Dr Vivek Sagar, it seems has no institutional affiliation. He is mentioned as located in Village Dhargal, Tal – Pernem on the Mumbai Goa Highway.
It is no coincidence that this ‘Vaccine fixing’ trial of ICMR comes so soon after the flabbergasting claim made by the pro BJP Yoga Guru, Babs Ramdev, of having discovered the Ayurvedic cure for COVID. This sadly has been the fate of science in the country over past few years. Unfortunately, this has been met with pliant silence by the larger medical and scientific community. Indeed, some of the leading members of the profession have demeaned their own professional credibility and reputation to serve as willing instruments of those who currently occupy political power. Rather than serving the cause of the people of India, these craftsmen of shenanigans have chosen to conspire against the very people they were to serve.
इस तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर हमारे आईसीएमआर तक सबकी विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। लेकिन इस सब पर सरकार की खामोशी से यह सन्देह होना स्वभाविक है कि यह सब फार्मा कंपनीयों के दवाब में हो रहा है क्योंकि जनता को कोरोना से इस कदर डरा दिया गया है कि वह कुछ भी सोचने और समझ पाने की स्थिति में ही नही आ पा रही है।