‘‘मोदी है तो अब मुमकिन नहीं है’’

Created on Monday, 02 March 2020 17:23
Written by Shail Samachar

दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद राजधानी के कुछ हिस्सों में उभरी हिंसा में मरने वालों का आंकड़ा चालीस से उपर चला गया है और यह कहां जाकर रूकेगा यह कहना कठिन है क्योंकि सैंकड़ो की संख्या में है घायल और गुमशुदा। इस हिंसा के लिये कौन जिम्मेदार है इसके लिये सत्तापक्ष और विपक्ष दोनो ने एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया है। इसमें अन्तिम सच क्या निकलेगा इसे सामने आने में समय लगेगा। अभी तक जो कुछ सामने आ चुका है उसके मुताबिक शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों के कारण यातायात में हो रही असुविधा के लिये सर्वोच्च न्यायालय में आयी याचिकाओं पर शीर्ष अदालत ने वास्तविक स्थिति का मौके पर जाकर पता लगाने के लिये कुछ लोगों की एक कमेटी बनाई थी और कमेटी को अपनी रिपोर्ट अदालत में रखने के निर्देश दिये थे। इन निर्देशों की अनुपालना में केमटी ने धरना स्थल का निरीक्षण करने के बाद अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी है। इसमें भारत सरकार के मुख्य सूचना आयुक्त रहे वजाहत हबीब ऊल्लाह ने वाकायदा शपथ पत्र के साथ यह कहा है कि प्रदर्शनकारियों के कारण लोगों को आने जाने में असुविधा नही हो रही है। बल्कि असुविधा का कारण वहां के अन्य मार्गों पर पुलिस द्वारा लगाये गये बैरिकेडज़ हैं जिनका धरना स्थल के साथ कोई लिंक ही नही है। उन्होंने शपथपत्र में यह भी कहा है कि यह पता लगाया जाना चाहिये कि पुलिस को यह बैरिकेडज़ लगाने के आदेश किसने दिये थे। यह शपथपत्र दायर होने के बाद धरना स्थल पर भाजपा नेता कपिल मिश्रा पहुंच जाते हैं। वहां वह बड़ा उत्तेजित भाषण देते हैं। वहां मौजूद पुलिस को साफ कहते हैं कि आप आज यह रास्ता खुलवा दो वरना हमें सड़क पर आना पड़ेगा। कपिल मिश्रा के इस भाषण के बाद रात को हिंसा शुरू हो जाती है। दिल्ली में भड़की हिंसा को रोकने में पुलिस तन्त्र बुरी तरह असफल रहा है। इस हिंसा की गुप्तचर ऐजैन्सीयों को कितनी जानकारी थी और कितना उन्होंने इसे बड़े अधिकारियों तथा शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व से शेयर किया था यह अभी सामने नही आया है।
इस हिंसा को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में पहुंची याचिका पर रात को ही जस्टिस डा.एस मुरलीधर और जस्टिस तलवन्त सिंह की पीठ ने सुनवाई की और घायलों को अस्पतालों में पहुंचाने के निर्देश दिये। इन निर्देशों के बाद अलगी सुनवाई दूसरे दिने की और दिल्ली पुलिस को फटकार लगायी। अदालत में चुनाव प्रचार के दौरान अनुराग ठाकुर प्रवेश वर्मा और विधायक वर्मा तथा कपिल मिश्रा के भाषणों के वीडियो अदालत में प्ले हुए। अदालत ने पुलिस को इन भाषणों पर एफआईआर बनती है या नहीं यह निर्णय चैबीस घण्टों में लेने के निर्देश दिये। लेकिन उसी रात को यह निर्देश देने वाले जज को पंजाब हरियाण उच्च न्यायालय में तत्काल प्रभाव से पदग्रहण करने के सरकार ने निर्देश दे दिये। दूसरे दिन दिल्ली उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई करने के लिये लिये नया बैंच गठित कर दिया जाता है और यह बैंच दिल्ली पुलिस को एफआईआर का फैसला लेने के लिये एक माह का समय दे देता है। उच्च न्यायालय की नाराज़गी के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करते हैं। जब उनसे इस सब पर सवाल पूछे जाते हैं तो वह भी सेम पित्रोदा की ही भाषा में जवाब देते हैं कि ‘‘जो हो गया वह हो गया’’ एनएसए के बाद दिल्ली पुलिस कमीशनर प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करते हैं।
जब कपिल मिश्रा के भाषण को हिंसा का तात्कालिक कारण कहा जाने लगा तब भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने मिश्रा के खिलाफ कारवाई की मांग कर दी। इस पर देश के कई भागों में हिन्दु समर्थकों ने गंभीर को काफी कोसा और कपिल मिश्रा के साथ खड़े होने की बात की। इस हिंसा पर कांग्रेस ने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपकर गृह मन्त्री के त्यागपत्र की मांग कर दी। यह मांग आने के बाद हिन्दु समर्थक दिल्ली चुनावों के दौरान आये सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के भाषणों के वीडियो लेकर सामने आ गये। इनके खिलाफ एफआईआर किये जाने की मांग हो गयी। यही नहीं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के काल में वहां महाधिवक्ता रहे वकील ने इस आश्य की अदालत में शिकायत भी डाल दी और इस शिकायत पर इन्हें नोटिस भी जारी हो गया है। इस नोटिस के बाद कांग्रेस प्रवक्ता और वरिष्ठ वकील डा. सिंघवी ने एक पत्रकार वार्ता में सरकार से पन्द्रह सवाल पूछ लिये हैं। इन सवालों में पुलवामा प्रकरण पर जैशे मोहम्मद के संद्धर्भ में गृहमन्त्री और एनआईए चीफ के त्यागपत्र की मांग कर दी है। दिल्ली में हुई हिंसा के बाद भी प्रदर्शनकारियों ने धरना और धरना स्थल नही छोड़े हैं और इस हिंसा की यही सबसे बड़ी असफलता है। इसके बाद ही कानून मन्त्री रवि शंकर प्रसाद ने फिर कहा है कि सरकार अपने ऐजैण्डे पर अडिग है। विश्व के कुछ हिस्सों में इस हिंसा पर विरोध प्रदर्शन भी सामने आये हैं। इसी दौरान यह भी आरोप सामने आया है कि सरकार ने झारखण्ड में अंबानी-अदानी को चार चार हजार एकड़ जमीन दे दी है जिस पर आदवासी बैठे हैं। आदवासीयों से जमीन छुड़ाने के लिये एनपीआर का सहारा लिये जाने की योजना है। संभवतः बिहार में नीतिश सरकार ने इसी कारण से एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया है जिसका वहां बैठी भाजपा विरोध नही कर पायी है। इस तरह आज स्थिति यहां आकर खड़ी हो गयी है कि एनआर सी, एनपीआर और सीएए को लेकर भाजपा के भीतर भी मतभेद उभरने शुरू हो गये हैं। बिहार भाजपा का विधानसभा में खामोश रहना भले ही आने वाले चुनावों के कारण हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर यह खामोशी राष्ट्रीय नेतृत्व के लिये एक बड़ी चुनौती है। अदालत में भड़काऊ भाषणों पर अन्ततः चर्चा आनी ही है। भाजपा नेता और वरिष्ठ वकील अश्वनी उपाध्याय ने विधि आयोग की 267 बी रिपोर्ट की सिफारिशों पर अमल करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय में याचिका डाल दी है। इस रिपोर्ट में ऐसे भाषणों से निपटने के लिये ही कहा गया है। इस परिदृश्य में भाजपा एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ी हुई है जहां उसे अपने हिन्दु ऐजैण्डे पर ईमानदारी से पुनर्विचार करने की आवश्यकता आ खड़ी हुई है। क्योंकि दिल्ली चुनाव में धारा 370, 35 A और तीन तलाक तथा राम मन्दिर फैसले आदि उपलब्धियों का कोई लाभ भाजपा को नही मिल पाया है। बल्कि भाजपा कार्यकताओं में जो धारणा आ गयी थी कि शाह की चुनावी योजना के आगे कोई न ही ठहर सकता तथा ‘‘मोदी है तो मुमकिन है’’ को जो धक्का लगा है उस आघात से उबरना बहुत कठिन है। जब नेतृत्व को लेकर बनी धारणा आधारहीन होना सिद्ध हो जाती है तब संगठन को बिना बदलाव के बड़ी देर तक एक स्थान पर खड़े रहना कठिन हो जाता है। बहुत संभव है कि इस जन नकार को नकारने में समय लगे और इसे पुनः खड़ा करने के लिये कट्टरता की आखिरी सीमा तक भी जाने का प्रयास हो। लेकिन आज जब हिंसा के बाद भी महिलायें शाहीन बाग में खड़ी हैं तब ‘‘मोदी है तो मुमकिन है’’ को पुन खड़ा करना असभंव है क्योंकि 1984 के दंगों की आंच अब तक सुलग रही है तो 2020 के दंगे कब तक सुलगते रहेंगे और किसके सिर इसकी गाज गिरेगी यह कहना कठिन नही होगा।