अराजकता की पराकाष्ठा है उन्नाव प्रकरण

Created on Tuesday, 06 August 2019 06:57
Written by Shail Samachar

सर्वोच्च न्यायालय ने उन्नाव दुष्कर्म प्रकरण से जुड़े सारे मामले तुरन्त प्रभाव से दिल्ली स्थानान्तरित करने और उपचाराधीन पीड़िता को पच्चीस लाख की तत्काल राहत देने तथा दैनिक आधार पर सुनवाई करते हुए इस मामले का फैसला पैंतालीस दिन के भीतर करने के निर्देश जारी किये हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने यह कारवाई तब की है जब मीडिया में यह खबर छपी की पीड़िता के परिजनों ने उनकी दुर्घटना होने से पहले ही बारह जुलाई को शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायधीश को पत्र लिखकर सुरक्षा की गुहार लगाई थी और उनके संज्ञान में लाया था कि कैसे इस प्रकरण के मुख्य अभियुक्त भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर के लोगों ने इन्हें घर में आकर डराया धमकाया। इस पत्र में डराने-धमकाने की वीडियों रिकार्डिंग भी साथ संलग्न की गयी थी। यह कौन लोग थे यह खुलासा इस पत्र में था। लेकिन 12 जुलाई का लिखा यह मुख्य न्यायधीश के संज्ञान मे मीडिया के माध्यम से 30 जुलाई को आया। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायधीश को लिखे इस पत्र की प्रतियां मुख्य न्यायधीश इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रशासनिक न्यायमूर्ति न्यायालय लखनऊ, प्रमुख गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक, पुलिस महानिरीक्षक, शाखा प्रमुख सीबीआई, एसीबी और पुलिस अधीक्षक उन्नाव को भी भेजी गयी थी। लेकिन इस पत्र का कहीं पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया और  उसके बाद इनका ऐक्सीडैन्ट हो गया जिसमें दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गयी। इस दुर्घटना में प्रयुक्त हुए ट्रक की नम्बर प्लेट पर काली ग्रीस लगाई हुई थी ताकि शिनाख्त न हो सके। इस दुर्घटना में उत्तर प्रदेश के एक मंत्री के दामाद का नाम भी सामने आया है। यह दुष्कर्म 4 जून 2017 को विधायक के घर पर हुआ था। विधायक सेंगर 2018 में तब गिरफ्तार किया गया जब पीड़िता ने मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ के आवास पर आत्मदाह करने का प्रयास किया। इस प्रकरण में दर्ज हुए मामलों को उत्तर प्रदेश से बाहिर ट्रांसफर करने के लिये आयी याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल में नोटिस जारी किये थे लेकिन इन पर कारवाई 28 जून के बाद शुरू हुई।
 इस प्रकरण के इस संक्षिप्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह पूरा मामला सत्ता के दुरूपयोग का एक ऐसा कड़वा सच है जो शायद अब अधिकांश की नीयती बनता जा रहा है। क्योंकि सत्ता का यह घिनौना चेहरा आये दिन किसी न किसी रूप में सामने आता जा रहा है। आरोपी भाजपा का विधायक है और 2018 से गिरफ्तार भी चल रहा है और गिरफ्तारी के बावजूद उसकी सत्ता का डंका बराबर बजता आ रहा है। आज जब इस प्रकरण पर संसद तक में सवाल उठ गया और पार्टी द्वारा इस दंबग के खिलाफ कोई कारवाई नही किये जाने का सच सामने आया तब यह कहा गया कि इसे बहुत पहले ही पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। यह निष्कासन हुआ है या नहीं आज इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह हो गया है कि इस प्रकरण पर प्रधानमंत्री, पार्टी अध्यक्ष अमितशाह और कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी है। शायद यह प्रतिक्रिया न आने का ही परिणाम है कि एक मन्त्री का दामाद भी सेंगर की मद्द के लिये हद तक आ गया है। इससे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि पार्टी में बाहुबलियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। मध्यप्रदेश और, उत्तराखण्ड में भी विधायक बाहुबल का परिचय दे चुके हैं। यदि इस बढ़ते बाहुबल पर समय रहते अंकुश न लगाया गया तो यह पार्टी की सेहत के लिये आने वाले दिनों में घातक होगा। क्योंकि उन्नाव प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं रह गयी है। ऐसा लगता है कि भाजपा पार्टी और सरकार का इस समय एक मात्र लक्ष्य विपक्ष को येनकेन प्रकारेण खत्म करने का ही रह गया है। अब तो यह आम चर्चा का विषय बन गया है कि देश को कांग्रेस मुक्त करवाने के लिये भाजपा को कांग्रेस मुक्त होने से कोई परहेज नहीं रह गया है।
उन्नाव प्रकरण ने जहां व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किये हैं वही पर सर्वोच्च न्यायालय को भी सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। पिछले दिनों प्रधान न्यायधीष ने सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री पर सवाल उठाते हुए वहां पर सीबीआई से कुछ लोगों को तैनात करने का कदम उठाया था। जिन आशंकाओं पर यह कदम उठाने की नौबत आयी थी आज उन्नाव प्रकरण ने उन आशंकाओं को और पुख्ता कर दिया है। आज सर्वोच्च न्यायालय ने उन्नाव प्रकरण में 45 दिनों के भीतर ट्रायल पूरा करने के निर्देश दिये हैं यह एक स्वागत योग्य कदम है लेकिन यहीं पर शीर्ष अदालत को यह भी मंथन करने की आवश्यकता है कि उसने बहुत पहले माननीयों के खिलाफ आये मामलों का ट्रायल एक वर्ष के भीतर करने के निर्देश किये हुए हैं। लेकिन इन निर्देशों के बाद यह फीड बैक नही लिया गया कि इन पर अनुपालना कितनी हुई है। पुलिस जांच भी समयबद्ध होने के निर्देश हैं। लेकिन जबतक निर्देशों पर कड़ाई से अमल सुनिश्चित नही किया जायेगा तब तक कागजा़ें में निर्देश जारी करने का कोई लाभ नही रह जाता है। जिन अधिकारियों को पीड़िता के परिजनों ने पत्र की प्रतियां भेजी थी आज यदि उन सबसे यह पूछा जाये कि उन्होंने इस पर क्या कदम उठाये थे और उचित कदम न उठाने पर उनकों भी दण्डित किया जायेगा तभी एक कड़ा संदेश जा पायेगा अन्यथा यह फिर राहत देने तक ही सीमित होकर रह जायेगा और यह अराजकता बढ़ती ही चली जायेगी।