कहां है यह 50000 करोड़ का निवेश

Created on Tuesday, 01 January 2019 04:43
Written by Shail Samachar

जयराम सरकार ने सत्ता में एक वर्ष पूरा कर लिया है। इस अवसर पर सरकार की ओर से धर्मशाला में वैसा ही एक बड़ा आयोजन किया गया जैसा कि एक वर्ष पहले सत्ता संभालते हुए शिमला में किया गया था। दोनो अवसरों पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी मौजूद रहे हैं। यह सरकार के लिये एक अच्छा संदेश रहा है। इस एक वर्ष का आंकलन प्रधानमन्त्री और केन्द्र सरकार की नज़र में क्या रहा है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमन्त्री के अनुसार इस समय प्रदेश में केन्द्र की ओर सेे 36000 करोड़ की योजनाएं चल रही है। यह जानकारी प्रधानमन्त्री ने धर्मशाला मे अपने संबोधन में दी है। इससे पूर्व सोलन के पन्ना प्रमुखों के सम्मेलन में केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा ने यह दावा किया है कि प्रदेश के लिये 5000 करोड़ की और परियोजनाएं पाईप लाईन में है। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर पहले ही 9000 करोड़ की योजनाएं प्रदेश को मिल चुकी होने की जानकारी प्रदेश की जनता के साथ सांझा कर चुके हैं। इस तरह प्रधानमन्त्री, केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा और मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर सबके द्वारा दिये गये आंकड़ो को जोड़कर देखा जाये तो यह राशी 50,000 करोड़ बन जाती है। अब जब इतने बड़े स्तर के नेता यह आंकड़े प्रदेश की जनता को परोस रहे हैं तो स्वभाविक है कि इसे झूठ नही माना जा सकता। इसलिये आज प्रदेश की जनता को यह जानने का हक है कि इस 50000 करोड़ के आंकड़े का पूरा विवरण क्या है? वह कौन -कौन सी योजनाएं हैं जिन पर 36000 करोड़ के निवेश का काम चल रहा है और शेष 14000 करोड़ की योजनाएं कौन सी हैं जो प्रदेश को मिली हैं और उन पर काम कब तक शुरू हो जायेगा। क्योंकि यह पचास हजार करोड़ का आंकड़ा प्रदेश के लिये एक बहुत बड़ी बात है। जबकि इस समय प्रदेश का कर्जभार ही पचास हजार करोड़ को पहुंच चुका है। प्रदेश सरकार अब तक बजट में दर्ज पूंजीगत प्राप्तियों के अतिरिक्त ही 3500 करोड़ का कर्ज ले चुकी है।
इस परिदृश्य में यदि प्रधानमन्त्री की जानकारी सही है कि प्रदेश में केन्द्र की ओर से 36000 करोड़ की योजनाएं चल रही हैं तो यह आंकड़ा प्रदेश के कुल बजट के आंकड़े से कहीं बड़ा है। क्योंकि 36000 करोड़ के निवेश से प्रदेश में बेरोजगारी की समस्या पर कुछ तो अंकुश लगना चाहिये था। प्रदेश सरकार को आऊटसोर्स के माध्यम से एक चैथाई वेतन पर कर्मचारियों की भर्ती करने की नौबत नही आती है। आज जिस ढंग से चुतर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती के लिये बी.ए. और एम.ए. पास नौजवानों के कतारों में खड़े होने की खबरें आ रही हैं उससे इन निवेश के आंकड़ो की प्रमाणिकता पर स्वतः ही एक बड़ा सवाल लग जाता है। अभी अगले वर्ष मई में लोकसभा चुनाव होने हैं। राजनीतिक दल अभी से इन चुनावों की तैयारीयों में जुट गये हैं। ऐसे में यह निवेश का आंकड़ा एक दोधारी तलवार सिद्ध हो सकता है। यदि यह सही हुआ तो इससे विपक्ष का गला कटेगा और यदि यह गलत हुआ तो यह अपनी ही गर्दन काट देगा। क्योंकि इस समय प्रदेश पर जो पचास हजार करोड़ का कुल कर्ज है वह एक लम्बे अरसे से इकट्ठा होता चला आ रहा है इसमें हर वर्ष कुछ न कुछ जुड़ता रहा है। इसका बड़ा भाग प्रदेश के कर्मचारियों के वेतन भत्तों और पैन्शन पर खर्च होता रहा है। यहां तक की कर्ज का ब्याज चुकाने के लिये भी कर्ज लिया जाता रहा है। लेकिन अभी किसी सरकार ने केन्द्र सरकार की ओर से प्रदेश में एक मुश्त इतने बड़े निवेश का दावा नही किया है। ऐसे में दावे की हकीकत जानने का हर आदमी को हक है।
मुख्यमन्त्री ने अपने इस एक वर्ष के कार्यकाल को ‘‘ईमानदार प्रयास का एक वर्ष’’ कहा है। मुख्यमन्त्री के इस कथन को एक हदतक माना जा सकता है क्योंकि उन्होने कोई बड़ा दावा अब तक ऐसा नही किया है जिस पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया जायें लेकिन इसके बावजूद एक पक्ष यह भी है कि जयराम 1998 से लगातार विधायक चले आ रहे हैं। इस दौरान दो बार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकारें रह चुकी हैं और वह एक बार मन्त्री तथा एक बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इस नाते उन्हे प्रदेश का अनुभव होना ही चाहिये। बतौर विपक्ष जयराम के नेतृत्व में भी वीरभद्र शासन के खिलाफ आरोप पत्र सौंपा गया है। विपक्ष में रहते हुए लगातार वीरभद्र सरकार पर प्रदेश को कर्ज में डूबोने का आरोप लगाते रहे हैं। 1993 से 1998 के बीच हुई चिट्टो पर भर्तियांे की जांच रिपोर्ट भी जयराम के सामने ही आयी है। उन रिपोर्टों पर कोई कारवाई क्यों नही हुई वह भाजपा और जयराम अच्छे से जानते हैं मैं उस ब्योरे में नही जाना चाहता लेकिन इस सबके जिक्र से यह सवाल तो उठता ही है कि जो गलतियां पिछली सरकारों के वक्त में हुई हैं क्या उनको आज दोहराने के लिये लाईसैन्स के रूप में इस्तेमाल करना जरूरी है? शायद नही। जयराम को कर्ज विरासत में मिला है लेकिन आज उसको दोहराने में फिजूल खर्ची का आरोप लग रहा है। राजभवन से लेकर मन्त्रीयों तक की मंहगी गाड़ियां चर्चा में आ चुकी हैं। चिट्टो पर भर्तियांें के स्थान पर आऊटसोर्स पर भर्तीयां की जाने लगी है। इस तरह ऐसे अनेक मामलें हैं जहां सरकार की दूरदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं। बेशक कांग्रेस का आरोप पत्र कोई बड़ा प्रभावी दस्तावेज नही है लेकिन अब जिस तरह से वीरभद्र और उनका बेटा अपने स्वर बदलते जा रहे हैं उसे हल्के में लेना गलत होगा। फिर सरकार में जिस तरह से कुछ मन्त्रीयों की असहजता चर्चा में आ गयी है और कुछ विधायक भी मुखर होते जा रहे हैं यह जयराम के भविष्य के लिये कोई अच्छे संकेत नहीं है। जयराम को मोदी का पूरा सहयोग और समर्थन हासिल है यह धर्मशाला में सामने आ चुका है। जयराम ने भी बदले में मोदी को यह भरोसा दिला दिया है कि वह हर समय उनके साथ खड़े रहेंगे। पांच राज्यों में मिली हार के बाद केन्द्र में जिस तरह से गडकरी जैसे लोगों की प्रतिक्रियाएं आयी हैं वह केन्द्र के भविष्य के प्रति भी गंभीर संकेत है। इस परिदृश्य में प्रदेश में पचास हजार करोड़ के निवेश का जो आंकड़ा अचानक सामने आ गया है वह घातक भी सिद्ध हो सकता है।