जयराम सरकार ने प्रदेश में 80,000 करोड़ का निवेश लाने का एक स्वप्न देखा है और इसे पूरा जमीन पर उतारने के लिये देश के भीतर और प्रदेश के बाहर विदेशों में भी निवेशकों के साथ बैठकें आयोजित करने जा रही है। इस संद्धर्भ में मुख्यमन्त्री/उद्योगमंत्री तथा मुख्य सचिव की अध्यक्षता में दो कमेटीयों का गठन किया जा रहा है। विदेशों में संभावित निवेशकों के साथ यह बैठकें आयोजित करवाने के लिये दूतावासों का भी सहयोग लेगी। इस निवेश के लिये उद्योग, ऊर्जा, पर्यटन एवम् स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र भी सरकार ने चिन्हित कर लिये हैं। इस पूरे देश/विदेश के आयोजन पर करीब 50 करोड़ प्रदेश सरकार खर्च करने जा रही है।
जिस प्रदेश का कर्जभार 50 हजार करोड़ को पहुंच चुका हो उस प्रदेश में 80 हजार करोड़ का देशी /विदेशी निवेश लाने का स्वप्न देखना एक बहुत बड़ी बात है। ईश्वर करे कि यह प्रयास एक दिवा स्वप्न बन कर ही न रह जाये। क्योंकि इस सरकार के पहले पूर्व सरकारों ने भी ऐसे प्रयास किये थे। निवेशकों को सुविधायें उपलब्ध करवाने के लिये कई नियमों/कानूनो का सरलीकरण किया गया था लेकिन अन्तिम परिणाम लगभग शून्य ही रहे हैं। आज उद्योगों के संद्धर्भ में प्रदेश का वर्तमान परिदृश्य क्या है यह देखना और समझना बहुत आवश्यक होगा। वीरभद्र शासन में जब ऐसा प्रयास किया गया था उस समय उद्योग विभाग ने इस आश्य का एक प्रपत्रा तैयार किया था। इस प्रकरण के मुताबिक प्रदेश में छोटे-बड़े पंजीकृत उद्योगों की संख्या 40 हजार कही गयी थी। इनमें निवेशकां का 17 हजार करोड़ निवेश बताया गया था तथा इन उद्योगों में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 2,58000 कही गयी थी। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक इन उद्योगों को 2005 से 2014 के बीच 35000 हजार करोड़ के आद्यौगिक पैकेज भी मिले हैं। इस तरह 52 हजार करोड़ के निवेश से केवल तीन लाख लोगों को ही लाभ मिल पाया है। इसी के साथ एक कड़वा सच्च यह भी है कि प्रदेश का खादी बोर्ड और वित्त निगम जैसे संस्थान जो केवल उद्योगों को वित्तिय एवम् अन्य सुविधायें देने के लिये ही स्थापित किये थे आज बन्द होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। दोनो संस्थान अपने कर्जदारों का अता-पता खोजने के लिये कई योजनाएं तक घोषित कर चुके है लेकिन हर प्रयास असफल ही रहा है। यदि वित्त निगम द्वारा बांटे गये ट्टणों और उनकी वसूली में बरती गयी अनियमितताओं का गंभीरता से संज्ञान लिया जाये तो इसके प्रबन्धन बोर्डों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किये जाने की नौबत आ जायेगी। पर्यटन का पर्याय बन चुके होटल व्यवसाय की अनियमितताओं का संज्ञान सारी शीर्ष अदालतें ले चुकी हैं। इस प्रदेश को ऊर्जा प्रदेश घोशित करते हुए यह माना और प्रचारित-प्रसारित किया गया था कि अकेले ऊर्जा से प्रदेश के सारे संकट हल हो जायेंगे। लेकिन आज ऊर्जा का व्यवहारिक पक्ष यह है कि हर साल इससे आय में कमी होती जा रही है। सीएजी के मुताबिक ऊर्जा का योगदान प्रदेश के राजस्व में लगातार कम होता जा रहा है इस क्षेत्रा का 2012-13 में 46.28% योगदान गैर कर राजस्व के रूप में था जो कि कर 2016-17 में घटकर 41.95% रह गया है। इसी तरह कर राजस्व 2012-13 में 5.68% से घटकर 2016-17 में 4.54% रह गया है जबकि ऊर्जा के क्षेत्रा में सार्वजनिक क्षेत्रा के कुल निवेश का करीब 86% निवेशित है। ऊर्जा से हर वर्ष कर और गैर कर राजस्व में कमी आ रही है। सीएजी के मुताबिक जब उत्पादन लागत तो 4.50 रूपये यूनिट आ रही है और इसकी बिक्री करीब 2.80 यूनिट हो रही है। तब ऐसे में इस क्षेत्र के सहारे प्रदेश कर्ज के चक्रव्यूह से कैसे और कब बाहर निकल पायेगा?
आज के व्यवहारिक परिदृश्य में यदि प्रदेश की आद्यौगिक स्थिति का आंकलन किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारी औद्योगिक नीतियां प्रदेश की स्थितियांं के संद्धर्भ में प्रसांगिक नही रह पायी है क्योंकि जब भी सत्ता परिवर्तन हुआ तभी आने वाली सरकार नई नीति लेकर आ गयी। यहां तक हुआ है कि 1990 से आज चार बार भाजपा सत्ता में और चारों बार अलग- अगल पॉलिसियां आयी। यही हालत कांग्रेस की रही है। किसी भी सरकार ने प्रदेश की जनता को यह नही बताया कि पिछली पॉलिसी का मूल्यांकन क्या रहा है और उसमें क्या व्यवहारिक कमियां रही है। प्रदेश में 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार आयी थी तब पहली बार औद्योगिक पॉलिसी लायी गयी। प्रदेश में चिन्हित हुए हर उद्योग के लिये सब्सिडी दी गयी। लेकिन आज उस समय के लगे उद्योगों में से शायद पांच प्रतिशत भी मौजूद नही हैं। जब - जब उद्योगों को राहतें उपलब्ध रही उद्योग यहां पर रहे और जिस दिन राहत पैकेज समाप्त हो गया उसके बाद उद्योग पलायन कर गये। इसका सीधा सा अर्थ है कि हमारी पॉलिसीयों में व्यवहारिक कमीयां रही हैं।
पिछले दिनों प्रदेश के बैंको के साथ सरकार की बैठक हुई थी बैठक में यह सामने आया था कि हमारे बैंकों के पास लोगों की जितनी जमा पूंजी है उसके अनुपात में क्रैडिट बहुत कम है। क्रैडिट कम होने की चिन्ता करते हुए ऋण प्रक्रिया को और सरल करने तथा कई प्रोत्साहन देने की बात की गयी थी। सरकार ने कई घोषणाएं भी की थी लेकिन व्यवहार में ऐसा कुछ भी नही हो सका है। बैंक ऋण देते हुए सरकार की घोषणाओं से अपने को बांध नही पा रहे हैं क्योंकि बैंको को ऋणों के एनपीए होने का भी बराबर डर बैठा हुआ है। माना जा रहा है कि प्रदेश के बैंकों में जमा पड़े पैसे के निवेश के लिये ही सरकार निवेशकों को आमन्त्रित करने का प्रयास कर रही है। स्वभाविक भी है कि जब निवेशक प्रदेश के बैंको की अच्छी सेहत देखेगा तो वह निवेश के लिये यहां आ जाये। क्योंकि हर निवेशक अपनी जेब से केवल 25 से 30% तक ही निवेशित करता है और शेष वह वित्तिय संस्थानों से ऋण लेता है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना होगा कि क्या यह निवेशक सरकार के प्रोत्साहनों से प्रभावित होकर यहां निवेश करेंगे अन्यथा स्थिति होगी कि जिस दिन प्रोत्साहन खत्म उसी दिन का पलायन।
इसलिये आज सरकार को यह बड़ा प्रयास करने से पहले एक श्वेतपत्र प्रदेश के मौजुदा उद्योगों पर जनता के सामने रखना चाहिये। जिसमें यह दर्ज रहे कि उद्योग का कुल निवेश क्या है और उसमें ऋण का अनुपात कितना है। उसमें कितने लोगों को प्रत्यक्ष /अप्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध है। उस उद्योग से सरकार को कितना कर और गैर कर राजस्व प्राप्त हो रहा है इस प्रयास पर पचास करोड़ सरकार खर्च करने जा रही है। यह प्रदेश की जनता का पैसा है और वह भी कर्ज का। यह प्रयास कहीं एक सैर सपाटा ट्रिप होकर ही न रह जाये इसलिये प्रदेश की जनता को यह जानने का हक है।